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Terrorists are Attacking Through Drones: आतंकी ड्रोन्‍स से भयभीत हुई दुनिया, आखिर क्‍या होते हैं ड्रोन्‍स, किन देशों के पास हैं सबसे ज्‍यादा

आर्मेनिया-अजरबैजान की लड़ाई में इस्तेमाल हुई ड्रोन तकनीक अब पाकिस्तान के जरिए जम्मू कश्‍मीर तक पहुंच गई है। फोटोग्राफी और निगरानी के लिए बनाए गए ड्रोन्‍स का आतंक के लिए इस्‍तेमाल कैसे और कब शुरू हुआ ? क्‍यों पूरी दुनिया को ड्रोन वारफेयर से खतरा है ?

By Ramesh MishraEdited By: Published: Mon, 28 Jun 2021 04:45 PM (IST)Updated: Mon, 28 Jun 2021 10:50 PM (IST)
Terrorists are Attacking Through Drones: आतंकी ड्रोन्‍स से भयभीत हुई दुनिया, आखिर क्‍या होते हैं ड्रोन्‍स, किन देशों के पास हैं सबसे ज्‍यादा
आतंकवादी ड्रोन्‍स के जरिए कर रहे हैं हमला, आखिर क्‍या होते हैं ड्रोन्‍स। फाइल फोटो।

नई दिल्‍ली, ऑनलाइन डेस्‍क। Terrorists are attacking through drones: आर्मेनिया-अजरबैजान की लड़ाई में इस्तेमाल हुई ड्रोन तकनीक अब पाकिस्तान के जरिए जम्मू कश्‍मीर तक पहुंच गई है। पड़ोसी देश पाकिस्तान की जमीन पर ऐसे बहुत से ड्रोन्‍स आ चुके हैं। चूंकि चीन ऐसे ड्रोन बनाने का मास्टर है तो पाकिस्तान के लिए इनकी उपलब्धता बहुत आसान है। आतंकवादी ड्रोन्‍स के जरिए बायोलॉजिकल या केमिकल एजेंट्स भी डिलिवर कर सकते हैं। सवाल यह है कि फोटोग्राफी और निगरानी के लिए बनाए गए ड्रोन्‍स का आतंक के लिए इस्‍तेमाल कैसे और कब शुरू हुआ ? क्‍यों पूरी दुनिया को ड्रोन वारफेयर से खतरा है ?

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क्‍या होते हैं मानव रहित ड्रोन्‍स

दरअसल, ड्रोन्‍स एक तहर के मानवरहित विमान हैं। इसका मुख्‍य रूप से इस्‍तेमाल निगरानी के लिए होता है। इनका आकार सामान्‍य विमान या हेलिकॉप्‍टर्स के मुकाबले काफी छोटा होता है। 1990 के दशक में अमेरिका ड्रोन्‍स का इस्‍तेमाल मिलिट्री सर्विलांस के लिए करता था। हाल के दिनों में ड्रोन्‍स के उपयोग का दायरा बढ़ा है। अब फिल्‍मों की शूटिंग से लेकर फोटोग्राफी, सामान की डिलिवरी से लेकर काफी सारी चीजों में होने लगा है। क्‍वाडकॉप्‍टर ऐसा ड्रोन है, जिसमें चार रोटर होते हैं। दो क्‍लॉकवाइज घूमते हैं और बाकी दो ऐंटी-क्‍लॉकवाइज। इनकी मदद से ड्रोन को किसी भी दिशा में उड़ाया जा सकता है। इन्‍हें बनाना और कंट्रोल करना ज्‍यादा आसान होता है।

आतंकवादियों के लिए छोटे ड्रोन्‍स सुविधााजनक

कॉमर्शियल ड्रोन्‍स साइज में छोटे होते हैं। यह काफी सुविधाजनक होते हैं। इसमें ज्‍यादा शोर नहीं होता है। अपने इन्‍हीं खूबियों के कारण यह आतंकियों को भी खुब भा रहे हैं। यह आसानी से आसमान में डेढ़-दो घंटे उड़ान भर सकते हैं। ये ड्रोन अपने साथ 4-5 किलोग्राम का वजन ले जा सकते हैं। इन ड्रोन्‍स को रडार के जरिए ट्रेस और ट्रैक कर पाना मुश्किल है। ऐसे में आतंकी इन ड्रोन्‍स के जरिए आसानी से हमला कर सकते हैं।

इस्‍लामिक स्‍टेट ने इराक और सीरिया में ड्रोन्‍स से खूब तबाही मचाई

आतंकवादी संगठन इस्‍लामिक स्‍टेट ने इराक और सीरिया में ड्रोन्‍स का इस्‍तेमाल करके खूब तबाही मचाई है। ऐसे ही छोटे ड्रोन्‍स और क्‍वाडकॉप्‍टर्स के जरिए पहली बार भारत में धमाके हुए हैं। भारत में भी आतंकवादियों ने ड्रोन्‍स का इस्‍तेमाल किया है। हाल मे पाकिस्‍तानी आतंकवादियों ने ड्रोन्‍स का तेजी से इस्‍तेमाल शुरू क‍िया है। यह भारत के लिए बेहद चिंता की बात है।

2001 में अफगानिस्‍तान में पहली ड्रोन स्‍ट्राइक

अक्‍टूबर 2001 में अफगानिस्‍तान में पहली ड्रोन स्‍ट्राइक की गई थी। इसके बाद से अमेरिका ने अफगानिस्‍तान के अलावा इराक, पाकिस्तान, सोमालिया, यमन, लीबिया और सीरिया में भी ड्रोन हमले किए हैं। दरअसल, 2000 से पहले तक ड्रोन्‍स का इस्‍तेमाल केवल सेना निगरानी के लिए होता था, मगर 11 सितंबर 2001 को अमेरिका में अल-कायदा के हमले ने सबकुछ बदल दिया। अमेरिका ने अपने प्रीडेटर ड्रोन्‍स पर हथियार लगाने शुरू कर दिए। इसके बाद आतंकवादी गुटों में ड्रोन्‍स हमलों का चलन बढ़ा है।

2029 तक दुनियाभर में 80 हजार से ज्‍यादा होंगे सर्विलांस ड्रोन

दुनिया के कई देशों की सेनाएं सर्विलांस के लिए ड्रोन्‍स का उपयोग करती हैं। वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2029 तक दुनियाभर में 80 हजार से ज्‍यादा सर्विलांस ड्रोन और 2,000 से ज्‍यादा अटैक ड्रोन्‍स मौजूद होंगे। अमेरिका, चीन, रूस, इजरायल, भारत, फ्रांस, ऑस्‍ट्रेलिया समेत कई देशों में ड्रोन्‍स का खूब इस्‍तेमाल होता है।


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