सही रास्ते से घाटी नहीं लौटा एक भी आतंकी
आतंकी लियाकत अली शाह की गिरफ्तारी के बाद मचे बवाल ने जम्मू-कश्मीर सरकार की आतंकियों के सर्मपण और पुनर्वास की नीति पर सवालिया निशान लगा दिया है। हालत यह है कि नवंबर 2010 में बनी इस नीति की शर्तो के अनुरूप एक भी आतंकी ने समर्पण नहीं किया है। समर्पण करने वाले आतंकियों के पुनर्वास के बजाय राज्य
नीलू रंजन, नई दिल्ली । आतंकी लियाकत अली शाह की गिरफ्तारी के बाद मचे बवाल ने जम्मू-कश्मीर सरकार की आतंकियों के सर्मपण और पुनर्वास की नीति पर सवालिया निशान लगा दिया है। हालत यह है कि नवंबर 2010 में बनी इस नीति की शर्तो के अनुरूप एक भी आतंकी ने समर्पण नहीं किया है।
समर्पण करने वाले आतंकियों के पुनर्वास के बजाय राज्य सरकार गैरकानूनी तरीके से आतंकियों को घाटी में लौटने को प्रोत्साहित कर रही है। गृह मंत्रालय के पास मौजूद आंकड़ों के अनुसार, समर्पण व पुनर्वास नीति बनने के बाद से अब तक 241 आतंकी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से वापस घाटी में लौट चुके हैं। इनमें से 113 आतंकी तो परिवार के साथ लौटे हैं, लेकिन कोई भी आतंकी निर्धारित पुंछ-रावलकोट, उरी-मुजफ्फराबाद, वाघा और दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के तय रास्ते से नहीं लौटा है। नीति के अनुसार, इन चार रास्तों के अलावा किसी अन्य रास्ते से लौटने वाले आतंकी को पुनर्वास सुविधाएं नहीं दी जाएंगी।
सुरक्षा विशेषज्ञ अजय साहनी का कहना है कि समर्पण नीति को इन रास्तों तक सीमित करना समझ से परे है। नीति में तय रास्तों से न लौटने वाले आतंकियों को पुनर्वास का लाभ नहीं मिलने के बावजूद जम्मू-कश्मीर सरकार उन्हें नेपाल के गैरकानूनी रास्ते से आने के प्रोत्साहित करती रही है, जबकि आतंक से मोहभंग होने के बाद करीब चार हजार आतंकी वतन वापसी को बेताब हैं। अभी तक लौटे पूर्व आतंकियों ने इसी रास्ते का इस्तेमाल किया है। सुरक्षा एजेंसी से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, लियाकत के खिलाफ दिल्ली पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाने से पहले राज्य सरकार को अपनी पुनर्वास नीति बदलनी चाहिए। वैसे ताजा विवाद के लिए अजय साहनी आत्मसमर्पण व पुनर्वास नीति से ज्यादा राज्य सरकार की कार्यप्रणाली को जिम्मेदार मानते हैं। उनके अनुसार, राज्य पुलिस को लियाकत के नेपाल के रास्ते लौटने की जानकारी यूपी, दिल्ली और पंजाब में संबंधित एजेंसियों को देनी चाहिए थी। पूरी दुनिया में समर्पण का काम चोरी छुपे नहीं होता है, लेकिन जम्मू-कश्मीर सरकार यही कर रही है। इस वजह से यह समस्या और बढ़ती जा रही है।
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