त्वरित अदालतें देखेंगी आतंकी मामले
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। अगले लोकसभा चुनाव के लिए बनते माहौल के बीच मुस्लिम समुदाय को लेकर सियासत गर्म हो सकती है। अब सरकार की नजर जेलों में बंद उन बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों पर गई है, जिनके मामलों में वर्षो बाद भी आरोपपत्र तक दाखिल नहीं हुआ है। सरकार ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए त्वरित अदालतें बनाएगी। बेगुनाह मुस्लिम युवक
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। अगले लोकसभा चुनाव के लिए बनते माहौल के बीच मुस्लिम समुदाय को लेकर सियासत गर्म हो सकती है। अब सरकार की नजर जेलों में बंद उन बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों पर गई है, जिनके मामलों में वर्षो बाद भी आरोपपत्र तक दाखिल नहीं हुआ है। सरकार ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए त्वरित अदालतें बनाएगी। बेगुनाह मुस्लिम युवकों को फंसाने के दोषी अफसरों, कर्मचारियों पर भी कार्रवाई होगी। साथ ही सरकार ने पिछड़े मुस्लिमों को साढ़े चार फीसद आरक्षण देने की प्रतिबद्धता भी जताई है।
चुनाव के पहले उठाए जा रहे इन कदमों पर सरकार के अपने तर्क हो सकते हैं, लेकिन इसके राजनीतिक मतलब भी हैं। खास तौर से जब तमाम मुस्लिम संगठनों के साथ ही मुसलमानों के मसलों पर खुद को सबसे बड़ा अलंबरदार बताने वाली सपा समुदाय के लिए आरक्षण व निर्दोषों को लेकर अरसे से केंद्र को घेरने में लगी है। डेढ़ महीने के भीतर जमीयत उलेमा-ए-हिंद दिल्ली और लखनऊ में जलसा करके मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व सपा प्रमुख मुलायम की मौजूदगी में इसे उठा चुके हैं। हैदराबाद, दिल्ली, लखनऊ के जलसों में ये मसले कई बार उठ चुके हैं। दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना बुखारी के अलावा, नीतीश कुमार की जदयू, लालू प्रसाद का राजद और रामविलास पासवान की लोजपा भी इस मुद्दे को गरमाते रहे हैं। कई प्रतिनिधिमंडल भी इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री से मिलते रहे हैं।
शनिवार को संपादकों के राष्ट्रीय सम्मेलन में अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री के. रहमान खान ने सरकार की इन तैयारियों की जानकारी दी। खान ने बताया, 'बेगुनाह मुस्लिम युवाओं के मामले में गौर करने के लिए फरवरी में ही गृह मंत्री को खत लिखा गया था। जवाब शनिवार को ही आया है। उन्होंने ऐसे मामलों में जल्द सुनवाई के लिए त्वरित अदालतों के गठन पर सहमति जताई है। मुस्लिम युवाओं को फंसाने के जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई का भी भरोसा दिया है।' जेलों में बंद बेगुनाहों की रिहाई के बाद उन्हें मुआवजे के सवाल पर रहमान ने कहा कि गृह मंत्री के मुताबिक यह कोर्ट तय करता है। हालांकि, गृह मंत्री ने कहा है कि इसे केस टू केस आधार पर देखने की जरूरत है। केंद्रीय नौकरियों व उच्च शिक्षा में मुसलमानों को साढ़े चार प्रतिशत आरक्षण पर उन्होंने कहा, 'हमने इसे केरल व कर्नाटक मॉडल पर दिया था। वहां कोटे के भीतर कोटे का प्रावधान है, लेकिन आंध्र हाई कोर्ट के फैसले के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में इसका वादा किया था। सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है।'
केंद्र अल्पसंख्यकों की उच्चशिक्षा के मद्देनजर मौलाना आजाद फाउंडेशन के जरिए पांच केंद्रीय विश्वविद्यालय भी खोलने की तैयारी में है। सरकार यूजीसी के पूर्व चेयरमैन प्रो. एसके थोराट की अगुआई में बनी समिति की रिपोर्ट पर गंभीरता से विचार कर रही है। केंद्र पर सच्चर समिति और रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशें लागू नहीं करने का आरोप भी लगता रहा है। रहमान ने स्पष्ट किया, 'सरकार ने सच्चर की 76 में 72 सिफारिशें मानी थीं और 69 पर अमल किया गया है। बाकी समान अवसर आयोग, नेशनल डाटा बैंक और डाइवर्सिटी इंडेक्स [विविधता सूचकांक] पर विचार हो रहा है।' समान अवसर आयोग के लिए मसौदा कानून मंत्रालय के पास है। वहां की मंजूरी के बाद विधेयक लाकर कानून बनाया जाएगा। आयोग समूह के रूप में सिर्फ मुसलमानों के अधिकारों के मामले सुनेगा।
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