Stay Home Stay Empowered: टेलीमेडिसिन का बढ़ा चलन, इलाज हुआ 30% तक सस्ता
लॉकडाउन में वर्क फ्रॉम होम और ऑनलाइन एजुकेशन के साथ ही एक और ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है। यह ट्रेंड है टेलीमेडिसिन का। टेलीमेडिसिन का मतलब फोन या वीडियो कॉल के जरिए इलाज है।
नई दिल्ली, विनीत शरण। लॉकडाउन में वर्क फ्रॉम होम और ऑनलाइन एजुकेशन के साथ ही एक और ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है। यह ट्रेंड है टेलीमेडिसिन का। टेलीमेडिसिन का मतलब फोन या वीडियो कॉल के जरिए इलाज है। लॉकडाउन की स्थिति में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी टेलीमेडिसिन की सलाह दी है, ताकि अस्पताल में लोग कम-से-कम संख्या में पहुंचें और सामान्य मरीज कोविड-19 संक्रमण की चपेट में आने से बचे रहें।
डॉक्टर दे रहे तकनीक पर जोर
दयानंद मेडिकल कॉलेज, लुधियाना के डॉ विवेक गुप्ता ने बताया कि लॉकडाउन होते ही उन्होंने अस्पताल के पुराने मरीजों का इलाज टेलीमेडिसिन के जरिए ही किया है। जिन्हें आने की जरूरत नहीं है, उन्हें फोन पर सलाह देते हैं और दवा बताते हैं। वीडियो कॉल के जरिए भी काफी मरीजों का इलाज किया जा रहा है। वहीं, अभी कोविड-19 के चलते अस्पतालों में परिजनों के रुकने की इजाजत नहीं है। इसलिए वे मरीजों की काउंसिलिंग और उनके परिवार वालों व रिश्तेदारों से बात कराने में भी वीडियो कॉल का इस्तेमाल ही कर रहे हैं।
लोग सबसे ज्यादा अपनी इम्युनिटी को लेकर चिंतित
टेली कंसल्टेशन और कांटैक्टलेस हेल्थकेयर टेक्नोलॉजी प्लेटफार्म HELLoDoX के को-फाउंडर रितुराज ने बताया कि कोविड 19 के चलते कांटैक्टलेस हेल्थ प्लेटफार्म और टेलीमेडिसिन में जबरदस्त उछाल आया है। लोग अस्पताल जाने की जगह फोन, ऐप और वेबसाइट के जरिए डॉक्टर से सलाह से रहे हैं। लोग सबसे ज्यादा अपनी इम्युनिटी को लेकर चिंतित हैं। इसलिए डॉक्टरों से पूछ रहे हैं कि इम्युनिटी बढ़ाने के लिए सही डाइट प्लान क्या है।
HELLoDoX पर भी लोग मैसेज के जरिए डॉक्टर से कंसल्ट कर सकते हैं। वहीं, वे इस ऐप के जरिए डॉक्टर से अप्वाइंटमेंट ले सकते हैं। अपने डाक्यूमेंट भी ट्रांसफर कर सकते हैं। रितुराज की मानें तो पूरी संभावना है कि आने वाले दिनों में कांटैक्टलेस हेल्थ कंसल्टेशन में और इजाफा होगा। वहीं, छोटे शहरों में लोग टेलीमेडिसिन और फोन कॉल के जरिए डॉक्टरों से कंसल्ट करना पसंद करेंगे।
कोविड के दौर में बदला इलाज का तरीका
डॉ विवेक गुप्ता ने बताया कि लॉकडाउन काफी समय से जारी है। इसलिए अब ओपीडी में काफी मरीज आने लगे हैं। इसलिए डॉक्टरों को काफी सावधानी बरतनी पड़ रही है। डॉक्टर मरीज पर पूरा ध्यान देते हैं, पर खुद को संक्रमण से बचाने के प्रति भी जागरूक रहते हैं। विवेक गुप्ता के मुताबिक, कोविड से बचने के लिए अस्पताल सरकार की गाइडलाइन्स का पूरा पालन कर रहे हैं।
अस्पताल के कुछ ऐहतियाती कदम
-बिना मास्क के कोई भी मरीज अस्पताल में नहीं आएगा।
-हाथ धोने या सैनेटाइज करने के बाद ही अस्पताल में एंट्री।
-डॉक्टर मरीजों से सवाल पूछते हैं, ताकि उनकी हिस्ट्री पता चल सके।
-जैसे, मरीज को बुखार, खांसी और सांस की समस्या तो नहीं है।
-कोविड का संदेह होते ही मरीज को जांच के लिए भेजा जाता है।
-सभी डॉक्टर मास्क, ग्लब्स और हैंड सैनेटाइजर का इस्तेमाल कर रहे हैं।
-डॉक्टर हर पेशेंट के लिए ग्लब्स चेंज कर रहे हैं।
-हर मेडिकल प्रोसिजर से पहले डॉक्टर प्रिवेंशन पर जोर दे रहे हैं।
-अस्पताल और ओपीडी में सोशल डिस्टैंसिंग का ख्याल रखा जा रहा है।
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टेलीमेडिसिन के लिए भारत सरकार की गाइडलाइन
स्वास्थ्य मंत्रालय ने नीति आयोग के साथ मिलकर पिछले माह गाइडलाइंस जारी की हैं। टेलीमेडिसिन के जरिए सिर्फ रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर ही इलाज कर सकते हैं। डॉक्टर वीडियो, टेक्स्ट मैसेज, ईमेल और ऑडियो कॉल के जरिए लोगों का इलाज कर सकते हैं।
टेलीमेडिसिन के फायदे
-अस्पताल जाने की अपेक्षा टेलीमेडिसिन सस्ता विकल्प है।
-30 फीसदी तक कम हो जाता है इलाज का खर्च।
-अनुमान है कि टेलीमेडिसिन से 2025 तक 300-375 अरब की बचत होगी।
-भारत टेलीमेडिसिन में दुनिया में टॉप 10 देशों में है।
सीमाएं
जिन मरीजों को पहले से जानते हैं, उनका इलाज आसान होता है।
पर नए मरीजों का टेलीमेडिसिन से इलाज मुश्किल हो जाता है।
कभी-कभी मरीज ठीक से अपनी समस्या नहीं बता पाता है।
इसके बावजूद सामान्य बीमारियों में टेलीमेडिसिन काफी कारगर है।
डॉक्टरों को पता होना चाहिए कि टेलीमेडिसिन की गाइडलाइन्स क्या हैं।
वे कौन सी दवा टेलीमेडिसिन के जरिए दे सकते हैं और कौन सी नहीं।
जरूरत और परिस्थितियों के लिहाज से गाइडलाइन्स में भी बदलाव करना चाहिए।
राज्य सरकारों की पहल
यूपी में स्वास्थ्य विभाग की ओर से टेलीमेडिसिन की सुविधा शुरू की गई है। इसके लिए प्रदेश भर में 698 डॉक्टरों की ड्यूटी लगाई गई है। सभी डॉक्टरों के मोबाइल नंबर सहित सूची जारी की गई है। मरीजों से उनकी परेशानी जानने के बाद डॉक्टर्स उनको दवा उपलब्ध करवाते हैं। फिर डॉक्टरों की सलाह के बाद आशा बहू, एएनएम और आंगनबाड़ी वर्कर मरीज के घर तक दवा पहुंचाते हैं।