तकनीक से 2022 तक देश में काम करने की दिशा में आएगा 360 डिग्री का बदलाव
आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है और तेजी से बढ़ती तकनीक भारत में इसका सूत्रधार बन रही है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है और तेजी से बढ़ती तकनीक भारत में इसका सूत्रधार बन रही है। आब्र्जवर रिसर्च फाउंडेशन और वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के संयुक्त अध्ययन में यह बात सामने आई है कि तकनीक के हस्तक्षेप से 2022 तक देश में काम करने की दशा और दिशा में 360 डिग्री का बदलाव आ जाएगा।
नए मौकों का सृजन
देश की 774 बड़ी और मझोली कंपनियों पर यह अध्ययन किया गया। आमधारणा है कि मशीनें और आने वाली तकनीकें लोगों का रोजगार छीन रही हैं, लेकिन यह अध्ययन बताता है कि भारत में इससे रोजगार का नुकसान नहीं हो रहा है बल्कि नई संभावनाओं के द्वार खोल रही हैं। जिन कंपनियों में अध्ययन किया गया, उनका मानना है कि पिछले पांच साल में आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल के बाद अतिरिक्त दोगुना नई भर्तियां की गईं। हालांकि ऑटोमेशन के चलते कुछ रोजगार अनावश्यक जरूर हुए लेकिन यह स्वागतयोग्य इसलिए भी है क्योंकि ऑटोमेशन से असुरक्षित नौकरियां ही खत्म हुई हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे अहम बात यह है कि यहां 92 फीसद रोजगार असंगठित क्षेत्र से है। यहां पहले से ही ठेके पर ठेके पर मजदूरी, पार्ट टाइम और अस्थायी रोजगार जैसी गैरस्तरीय दशाएं मौजूद हैं। ये ऐसा ट्रेंड है जो अब विकसित अर्थव्यवस्थाओं में तेजी पकड़ रहा है। भारत में ज्यादा संख्या में लोग ऐसी कंपनियों में काम करते हैं जो कानूनी रूप से उन्हें सामाजिक सुरक्षा और संरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं। इसलिए अब काम करने की वैकल्पिक व्यवस्था की तरफ सबका रुझान तेजी से बढ़ रहा है। 19 फीसद कंपनियां मानती हैं कि वे पिछले सालों में फ्रीलांस कामगारों को तवज्जो दे रहे हैं। यह नए तरीके का रोजगार कंपनियों को नवोन्मेष करने, तकनीकी आधुनिकीकरण को बढ़ावा देने में मददगार साबित हो रहा है। हालांकि ये सहूलियतें कामगारों के कल्याण और अच्छे जीवनदशाओं के आड़े नहीं आ रही हैं।
सबको समान मौके
भारतीय जीडीपी में महिलाओं की भागीदारी 17 फीसद है, जबकि अधिकांश अन्य देशों में यह हिस्सेदारी 35-40 फीसद के करीब है। भारत की श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी दर 27 फीसद है जो वैश्विक औसत 50 फीसद से आधी से थोड़ी सी अधिक है। 2011 के रोजगार आंकड़े के अनुसार भले ही बताया जाए कि देश में महिला श्रमशक्ति में इजाफा हो रहा है, लेकिन इस अध्ययन में शामिल 30 फीसद कंपनियों में कोई महिला कर्मचारी नहीं मिली। 71 फीसद कंपनियों में एक से 10 तक महिला कर्मियों की संख्या रही।
पिछले पांच साल के दौरान तेजी से बढ़ रहे क्षेत्रों की नई भर्तियों में महिलाओं की हिस्सेदारी महज 26 फीसद रही। अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि 15 से 30 साल के 64 फीसद युवा न तो शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और न ही रोजगार से जुड़े हैं। ऐसे में मानव संसाधनों का अल्प इस्तेमाल देश की उत्पादकता और आर्थिक विकास के आड़े आ रहा है। तेजी से उभरती तकनीकें भारत को ऐसा अवसर प्रदान कर सकती हैं जिसमें वह अपने महिला श्रमशक्ति के साथ हाशिए पर पड़े समुदायों को रोजगार मुहैया करा सकता है। इसके तहत खेती और फैक्टरी से काम क्लाउड की तरफ और आफिसों से डिजिटल स्पेसेज की तरह स्थानांतरित हो जाएगा।
श्रमशक्ति बने कौशलयुक्त
अध्ययन में सामने आया कि 35 फीसद कंपनियां इसलिए नई तकनीक नहीं अपना पा रही हैं क्योंकि उसके पास प्रशिक्षित कर्मचारी ही नहीं हैं। 33 फीसद कंपनियां मानती है कि नई औद्योगिक तकनीक या मशीनरी लागू करने के लिए उन्हें अपने कर्मचारियों को हुनरमंद बनाना पड़ेगा। उल्लेखनीय यह है कि कंपनियां अपने पुराने कर्मचारियों का कौशल ज्ञान बढ़ाकर इस खालीपन को भरना चाहती हैं।