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Orbit Space Debris Monitoring and Tracking System: स्पेस के मलबे को मॉनिटर करने की टेक्नोलॉजी भारत में हुई डेवलप

अनिरुद्ध की टीम ने ‘ऑर्बिट स्पेस डेब्रीज मॉनिटरिंग एवं ट्रैकिंग सिस्टम’ डेवलप किया है जिससे स्पेस में मौजूद छोटे मलबे के मूवमेंट को मॉनिटर कर हादसों को रोका जा सकेगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 24 Jun 2020 02:43 PM (IST)Updated: Wed, 24 Jun 2020 03:16 PM (IST)
Orbit Space Debris Monitoring and Tracking System: स्पेस के मलबे को मॉनिटर करने की टेक्नोलॉजी भारत में हुई डेवलप
Orbit Space Debris Monitoring and Tracking System: स्पेस के मलबे को मॉनिटर करने की टेक्नोलॉजी भारत में हुई डेवलप

अंशु सिंह। अनिरूद्ध शर्मा लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के बीटेक (कंप्यूटर साइंस) के फाइनल ईयर के स्टूडेंट हैं। लेकिन इन्होंने अब से दो साल पहले देश के पहले स्पेस टेक स्टार्ट अप ‘दिगांतरा रिसर्च ऐंड टेक्नोलॉजीज’ की नींव रख दी थी। उनकी टीम ने ‘ऑर्बिट स्पेस डेब्रीज मॉनिटरिंग एवं ट्रैकिंग सिस्टम’ डेवलप किया है, जिससे स्पेस में मौजूद छोटे डेब्रीज (मलबे) के मूवमेंट को मॉनिटर कर, अंतरिक्ष में होने वाले हादसों को रोका जा सकेगा।

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नासा के एक अनुमान के अनुसार, स्पेस में पांच लाख टुकड़ों से अधिक का मलबा है जो सैटेलाइट्स, स्पेसक्राफ्ट एवं इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को नुकसान पहुंचा रहा है। टेलीस्कोप, रडार या सेंसर जैसे ग्राउंड कंट्रोल सिस्टम से बड़े मलबे (स्पेस डेब्रीज) को तो ट्रैक किया जा सकता है। लेकिन 10 सेंटीमीटर से छोटे 100 मिलियन से अधिक ऑर्बिटल डेबरीज को ट्रैक करने के लिए स्पेस में एक मॉनिटरिंग सिस्टम की जरूरत है, क्योंकि ये छोटे स्पेस टुकड़े भी स्पेसक्राफ्ट या सैटेलाइट के आपस में टकराने का कारण बन सकते हैं।

लेफ्ट टू राइट - अनिरुद्ध शर्मा और राहुल रावत दिगांतरा रिसर्च एवं टेक्नोलॉजीज के सह-संस्थापक

दिगांतरा रिसर्च एवं टेक्नोलॉजीज के सह-संस्थापक अनिरुद्ध शर्मा बताते हैं, 'एविएशन इंडस्ट्री के जानकारों को पता होता है कि एक विमान जब उड़ान भरता है, तो वह किस दिशा में जा रहा है। एयर ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम से उसकी पूरी निगरानी रखी जाती है। इसी प्रकार, इन दिनों विभिन्न देशों एवं एजेंसियों द्वारा स्पेस में काफी सैटेलाइट्स लॉन्च किए जा रहे हैं। लेकिन उन्हें नियंत्रित करने के लिए कोई ट्रैफिक मैनेजमेंट सॉल्युशन नहीं है।’

अनिरुद्ध के अनुसार, हरेक लॉन्चिंग के बाद कुछ न कुछ जंक स्पेस में रह जाता है, जो हाइपर वेलोसिटी से मूव करता रहता है और फिर किसी अन्य सैटेलाइट या स्पेसक्राफ्ट से टकरा जाता है। इससे स्पेस में काफी मलबा इकट्ठा होता रहता है। उन्होंने इसी समस्या का हल निकालने के लिए 'लाइट डिटेक्शन ऐंड रेंजिंग टेक्नोलॉजी’ (लिडार) की मदद से देश का पहला 'ऑर्बिट स्पेस डेब्रीज मॉनिटरिंग एवं ट्रैकिंग सिस्टम’ डेवलप किया है। इससे पृथ्वी के लो ऑर्बिट इकोसिस्टम में मौजूद एक से 10 सेंटीमीटर के स्पेस डेब्रीज के मूवमेंट को मॉनिटर किया जा सकता है। इस प्रोडक्ट को वे अगले साल लॉन्च करने की योजना बना रहे हैं।

सैटेलाइट डिजाइनिंग से हुई शुरुआत : बेंगलुरु के अनिरुद्ध शर्मा और उत्तराखंड के राहुल रावत लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस में बीटेक कर रहे हैं। स्पेस का कोई बैकग्राउंड नहीं था। फिर इस क्षेत्र में कदम बढ़ाने का फैसला क्यों किया, पूछने पर अनिरुद्ध ने बताया कि हम यूनिवर्सिटी स्टूडेंट सैटेलाइट टीम के अंतर्गत अमेरिका और दक्षिण अमेरिका की कंपनियों को भारत में सैटेलाइट बनाने में मदद करते थे, क्योंकि यहां उन्हें डेवलप और मैन्युफैक्चर करने में कम खर्च आता है। इस तरह, हमने कुछ रेवेन्यू जेनरेट किया और उससे दो साल पहले 2018 में अपनी कंपनी (डीआरटी) शुरू की। स्पेस सेक्टर में काम करने की प्रेरणा के बारे में वे आगे बताते हैं, 'हमने इसरो द्वारा आयोजित एक कांफ्रेंस में अपने रिसर्च पेपर्स पेश किए थे, जिसके लिए हमें अवॉर्ड दिया गया। वहीं एक साइंटिस्ट ने कहा कि कोई भी स्पेस डोमेन में काम कर सकता है। उनके इसे मोटिवेशन से बहुत मदद मिली और हमने अपने नए स्पेस प्रोडक्ट पर काम करना शुरू कर दिया। इसमें हमारे तीसरे सह-संस्थापक तनवीर का भी बड़ा योगदान रहा, जो एक एयरोस्पेस इंजीनियर हैं।’

स्टार्ट अप के नाम हैं कई उपलब्धियां : ‘डीआरटी’ को केंद्र सरकार के एमएसएमई मंत्रालय से भी मान्यता मिली हुई है। इतना ही नहीं, इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल फेडरेशन कमेटी द्वारा चुने गए विश्व के आठ स्पेस स्टार्ट अप्स में से यह एक है। कुछ समय पूर्व भारत स्थित अमेरिकी दूतावास एवं एलायंस फॉर कॉमर्शियलाइजेशन ऐंड इनोवेशन रिसर्च (एसीआइआर) द्वारा आयोजित स्टार्ट अप नेक्सस प्रोग्राम के नौवें जत्थे में भी इसका चयन हो चुका है। अनिरुद्ध बताते हैं, ‘हम बहुत ही खास सेगमेंट में काम कर रहे हैं, जिसके लिए हमें अपने इंस्टीट्यूट के साथ सरकार की मदद की भी जरूरत है। प्रोडक्ट का प्रोटोटाइप डेवलप करने के लिए एमएसएमई मंत्रालय की ओर से हमें 15 लाख रुपये का ग्रांट मिला है। इसके अलावा, यूनिवर्सिटी ने शुरुआती फंड्स निवेश करने, लैब मुहैया कराने से लेकर इंडस्ट्री में नेटवर्क स्थापित करने में काफी सपोर्ट किया।'

निवेशकों से हैं उम्मीदें : सब कुछ सही चल रहा था। लेकिन बिजनेस को कैसे चलाना है, इसे लेकर थोड़ी मुश्किलें थीं अनिरुद्ध और उनकी टीम के सामने। वे बताते हैं, 'हमने कई सारे एक्सलेटर प्रोग्राम्स अटेंड किए। इसमें स्टार्ट अप नेक्सस से बिजनेस का स्वरूप तैयार करने में काफी मदद मिली। उनसे सीखा कि बिजनेस क्या होता है? वह कैसे किया जाता है? इसके अलावा मेरी सहयोगी सुष्मिता चौहान ने भी बिजनेस स्ट्रेटेजी डेवलप करने और फाइनेंस के स्पेस में सहयोग दिया।’ इस समय इनकी टीम में पांच से छह सदस्य हैं, जिनमें तीन सह-संस्थापक हैं। अनिरुद्ध पढ़ाई के साथ अपनी ही कंपनी में इंटर्नशिप भी कर रहे हैं। वे बताते हैं, 'आने वाले समय में हम बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में अपना ऑफिस सेटअप करेंगे। साथ ही, फंड्स रेज करने की भी योजना है। निवेशकों से सकारात्मक दिशा में बातचीत चल रही है। हम भविष्य को लेकर काफी उम्मीद रखते हैं।’


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