खेल-खेल में अनूठे प्रयोगों के साथ यह टीचर दे रही है स्कूली बच्चों को नवाचार की शिक्षा
ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों और शिक्षकों में अक्सर काफी दूरी रहती है पर शिक्षिका ने बच्चों से मित्रवत व्यवहार शुरू कराया और बच्चे शिक्षक-शिक्षिकाओं के करीब आ गए।
अंबिकापुर, राज्य ब्यूरो। जिस स्कूल में बच्चे नियमित उपस्थिति देने में कतराते थे, वहां एक शिक्षिका ने कलात्मक और सृजनात्मक नवाचार शुरू कर दिशा ही बदल दी। शिक्षिका ने बच्चों को रोल-प्ले से कलात्मक शिक्षा देनी शुरू की और आधुनिक शिक्षा के लिए एक माह के वेतन से लैपटॉप भी खरीदा। शिक्षिका के इस नवाचार से बच्चों में रचनात्मकता के साथ नियमित स्कूल आने की ललक जगी है। जिले के सीतापुर स्थित आदर्शनगर मिडिल स्कूल की शिक्षिका ने अपने दम पर शिक्षा की नई राह बच्चों में दिखाई। बच्चों के लिए अब यह शिक्षिका रोल मॉडल बन चुकीं हैं।
कहा जाता है शिक्षक राष्ट्र निर्माता होता है। इस कथन को शिक्षकों ने साबित भी किया है। वर्तमान में बच्चों को स्कूलों तक लाने शासन स्तर पर तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं, ताकि उनका लाभ बच्चों को मिल सके। बावजूद इसके शत-प्रतिशत सफलता नहीं मिल रही है।
ऐसे समय में किसी स्कूल के शिक्षक-शिक्षिकाओं का व्यक्तिगत प्रयास रंग लाता दिखाई दे रहा है। जिले के सीतापुर स्थित आदर्शनगर मिडिल स्कूल में कहानी, कविता व नई-नई विधाओं से शिक्षा देने की शुस्र्आत करने वाली शिक्षिका स्नेहलता टोप्पो क्षेत्र ही नहीं जिले की उन शिक्षक-शिक्षिकाओं के लिए प्रेरणा हैं, जो स्कूल सिर्फ नौकरी के उद्देश्य से जाते हैं।
स्कूल में कलात्मक एवं सृजनात्मक गतिविधियां
शिक्षिका स्नेहलता ने स्कूल में कलात्मक एवं सृजनात्मक गतिविधियों से पढ़ाई शुरू कराई। इससे बच्चों में उत्साह आया और पहले जहां घर-घर सूचना भेजकर बच्चों को स्कूल बुलाया जाता था, वहीं अब बच्चे रोज उत्साह से स्कूल पहुंचने लगे हैं। शिक्षिका ने बच्चों को प्ले-रोल से अलग-अलग टॉपिक देकर पढ़ाई कराना शुरू किया तो उनमें और रुचि जागृत होने लगी।
पढ़ाई के लिए नए-नए प्रयोग
रोज पढ़ाई के लिए नए-नए प्रयोग भी शिक्षिका द्वारा किए जाते हैं। नृत्य, गीत के साथ रचनात्मक गतिविधियों के लिए कविता, कहानी नियमित लिखने की आदत बच्चों में डाली गई। बालश्रम, नशापान, जनजागरुकता से जुड़ी लघु नाटिका भी स्कूल के खाली समय में कराने लगी।
शिक्षिका की पहल पर प्रधानपाठक विनोदचंद पैकरा, शिक्षिका संविता बरई ने भी योगदान देना शुरू किया। अब यह सरकारी स्कूल बच्चों के लिए किसी निजी स्कूल से कम नहीं है। बच्चों को आधुनिक शिक्षा देने शिक्षिका ने स्वयं पहल कर अपने एक माह के वेतन से लैपटॉप खरीदा और अब उससे पढ़ाई करा रहीं हैं।
ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों और शिक्षकों में अक्सर काफी दूरी रहती है। बच्चे शिक्षक-शिक्षिकाओं से अपनी बातें खुलकर नहीं करते हैं। संकोचवश शिक्षकों से दूरी रखते हैं, पर शिक्षिका स्नेहलता ने बच्चों से मित्रवत व्यवहार शुरू करने चिट से कार्यक्रम शुरू कराया, जिससे हंसी-ठिठोली बढ़ी और बच्चे शिक्षक-शिक्षिकाओं के करीब आ गए।
शिक्षिका को मिल चुका है सम्मान
कविता, गद्य गीत, गजल लिखने की शौकीन शिक्षिका स्नेहलता को धमतरी में शिक्षक सम्मान प्राप्त हो चुका है। सीतापुर में भी विभिन्न् आयोजनों में वह सम्मानित हो चुकीं हैं। राजधानी रायपुर में आयोजित नवाचार प्रदर्शनी में शिक्षिका के नवाचार मॉडल की न सिर्फ सराहना हुई, बल्कि पुरस्कार भी मिला।
शिक्षिका स्नेहलता टोप्पो ने बताया कि स्कूल के बच्चे रोल-प्ले से दी जाने वाली शिक्षा से ज्यादा प्रभावित हैं। खेल-खेल में शिक्षा बच्चों के लिए काफी फायदेमंद रही है। पुस्तक में किसी किसान की कहानी को पढ़कर सुनाने से बेहतर मैंने बच्चों को ही किसान और अन्य पात्र बनाना शुरू किया। अपने-अपने किरदार में बच्चे जब इन कहानियों को पढ़ते हैं तो उनमें अलग भावना जागृत होती है।
किसान बनने वाला बच्चा किसान की पीड़ा को समझता है। शिक्षिका का कहना है कि बच्चों के इसी उत्साह को देख मैंने हर रोज नया कुछ करने की कोशिश की और एक माह का वेतन से लैपटॉप खरीद बच्चों को पढ़ाई करा रही हूं।