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पीपल के पत्तों से बनाया ताजिया, मोहर्रम पर हिंदू देंगे कंधा

मध्य प्रदेश के महू में वर्षों से चली आ रही है परंपरा, गैस बत्ती की रोशनी में निकाले जाने वाले इस ताजिये के पीछे चलते हैं शहर के सारे ताजिये।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 12:52 PM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 12:52 PM (IST)
पीपल के पत्तों से बनाया ताजिया, मोहर्रम पर हिंदू देंगे कंधा
पीपल के पत्तों से बनाया ताजिया, मोहर्रम पर हिंदू देंगे कंधा

महू [अरुण सोलंकी]। मध्य प्रदेश के महू के पीपल के पत्ते के ताजिये की कहानी वर्षों पुरानी है। सबसे प्रमुख इस ताजिये के बिना महू में मोहर्रम की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। इसे बनाने व निकालने में पांचवीं पीढ़ी पूरी शिद्दत के साथ परंपरा को निभा रही है। ये ताजिया गैस बत्ती की रोशनी में निकाला जाता है। शहर के सारे ताजिये इसके पीछे चलते हैं। इस ताजिये के निर्माण पर 15 वर्ष पूर्व तीन हजार रुपये का खर्च आता था, जो आज बढ़कर तीस हजार रुपये तक पहुंच गया है। सांप्रदायिक सौहार्द के प्रतीक इस तजिये को आज भी सबसे पहले हिंदू परिवार कंधा देता है।

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शहर में मोहर्रम पर निकलने वाले पीपल के पत्ते के ताजिये का इतिहास भी रोचक व पुराना है। हरि फाटक निवासी नौशाद शाह व उनका परिवार हर वर्ष इस ताजिये को बिना किसी सरकारी आर्थिक मदद के बनाता है। नौशाद शाह की पांचवीं पीढ़ी है, जो इस ताजिये को बना रही है। इसके पूर्व उनके गुलबहार अली शाह, करामत अल्लादिया शाह, दादा गनी शाह व पिता अजीज शाह इस ताजिये को बनाते थे। नौशाद शाह ने बताया कि करीब 15 वर्ष पूर्व उन्होंने इस परंपरा को अपने हाथों में लिया था, तब से अब तक इसका खर्च दस गुना बढ़ गया है।

सात माले से आ गया एक माले पर

नौशाद शाह के अनुसार सन् 1893 में यह ताजिया सात मालों का बनता था। बाद में अंग्रेजी हुकूमत के आदेश पर इसे तीन माले का कर दिया गया। अब लगातार शहर में बढ़ते तारों के जाल व संकरी गलियों के कारण इसे मात्र एक माले का कर दिया गया है।

...और भी हैं कई विशेषताएं

इस ताजिये पर विद्युत सजावट नहीं की जाती। यह अब भी कत्ल की रात गैस बत्तियों की रोशनी में निकलता है। 19 से 21 ताजियों में सबसे आगे यही रहता है। यहां तक कि काली सय्यद की दरगाह पर सलामी देने भी यही एकमात्र ताजिया जाता है। जब तब यह वापस न आ जाए, सभी बाहर इंतजार करते हैं। यह एकमात्र ऐसा ताजिया भी है, जिसे सांप्रदायिक सौहार्द के नाम से जाना जाता है। इसे शहर का अरविंद गुरु शर्मा परिवार सबसे पहले कंधा देता है तब इसे उठाया जाता है।

चार महीने पहले से गलाकर रखते हैं पत्तों को

यह ताजिया पीपल के पत्तों से बनाया जाता है। इसके लिए चार महीने पहले ही करीब एक हजार पत्तों को गलने के लिए रख दिया जाता है। इसमें से कुल पांच सौ पत्तों की लुग्दी से इस ताजिये का निर्माण किया जाता है। पूर्व में इसकी ऊंचाई 13 फीट हुआ करती थी, लेकिन शहर में फैल रहे तारों व केबल के जाल के कारण इस वर्ष इसकी ऊंचाई घटाकर दस फीट कर दी गई है।


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