कश्मीर में आतंक के पीछे पाकिस्तान, फिर सामने आया एक और सच
मेजर जनरल बीएस राजू ने कहा कि बीते कुछ सालों में कश्मीर में अमेरिका निर्मित कोई हथियार आतंकियों से बरामद होने का यह पहला मामला है।
श्रीनगर, जेएनएन। पुलवामा मुठभेड़ में जैश सरगना मसूद अजहर के भतीजे की मौत और मुठभेड़ स्थल से हथियार की बरामदगी ने एक बार फिर कश्मीर में जारी आतंकी हिंसा के पीछे पाकिस्तान और उसकी सेना की सलिंप्तता की पुष्टि कर दी है। राज्य प्रशासन ने मसूद अजहर के भतीजे के शव को उसके वारिसों तक पहुंचाने के लिए उचित माध्यम से पाकिस्तान के साथ संपर्क करने का फैसला भी किया है।
गौरतलब है कि बीती रात दक्षिण कश्मीर के अगलर कंडी में सुरक्षाबलों ने एक भीषण मुठभेड़ में जैश-ए-मोहम्मद के तीन आतंकियों को मार गिराया। इनमें जैश का स्थानीय आतंकी वसीम अहमद और पाकिस्तानी मूल के महमूद भाई और मौलाना मसूद अजहर का भतीजा रशीद तल्हा भी है।
आज यहां आईजीपी कश्मीर मुनीर अहमद खान और सेना की विक्टर फोर्स के जीओसी मेजर जनरल बीएस राजू ने पत्रकारों के साथ बातचीत में कहा कि अगलर का अभियान बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें जैश के डीविजन कमांडर महमूद भाई और अजहर मसूद का भतीजा मारा गया है, जिससे कश्मीर में आतंकवाद को जिंदा रखने व जैश की पांव जमाने की कोशिशों को गहरा धक्का लगा है।
आईजीपी कश्मीर मुनीर अहमद खान ने कहा कि मेरी जानकारी में यह पहला मौका है जब किसी पाकिस्तानी कमांडर के मुठभेड़ में मारे जाने की पुष्टि पाकिस्तान में ही बैठे आतंकियों ने की हो। इसलिए, अब हमने केंद्र सरकार पर उचित माध्यम के जरिए पाकिस्तान से संपर्क कर, रशीद तल्हा के शव को वापस भेजने का फैसला किया है। हमारी कोशिश है कि वह तल्हा का शव ले जाएं। तल्हा और महमूद दोनों ही 10-10 लाख के इनामी आतंकी थे जबकि वसीम पर तीन लाख का ईनाम था।
उन्होंने कहा कि इस मुठभेड़ की सबसे बड़ी उपलब्धि इन आतंकियों के मारे जाने से भी ज्यादा एम4 कार्बाइन की बरामदगी है, क्योंकि यह बीते कुछ दिनों से लगातार सोशल मीडिया पर वायरल हो रही थी। इसके अलावा एक एके-74 राइफल भी मिली है।
मेजर जनरल बीएस राजू ने कहा कि बीते कुछ सालों में कश्मीर में अमेरिका निर्मित कोई हथियार आतंकियों से बरामद होने का यह पहला मामला है। इस तरह के कुछ हथियार और भी हो सकते हैं और यह हथियार बीते कुछ समय के दौरान कश्मीर में दाखिल हुए आतंकियों के पास ही हैं।
एम4 जैसे हथियारों से नहीं पड़ेगा फर्क
मेजर जनरल बीएस राजू ने कहा कि एम4 जैसे हथियारों की आतंकियों के पास मौजूदगी से उनकी मारक क्षमता नहीं बढ़ने वाली है। ऐसे हथियारों को चलाने की ट्रेनिंग, रख-रखाव और इनमें इस्तेमाल होने वाले कारतूस एसाल्ट राइफलों से पूरी तरह भिन्न हैं। यह एसाल्ट राइफल से लंबी होती है, इसे ले जाना, छिपाना और चलाना भी आसान नहीं है। यह एसाल्ट राइफल की तरह ज्यादा मारक और सुविधाजनक नहीं है।
जैश को हिजबुल और लश्कर ने दिया मौका
उन्होंने कहा कि कश्मीर में जैश-ए-मोहम्मद को फिर से पांव पसारने का मौका हिजबुल मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा ने ही दिया है। इन दोनों संगठनों के सरगनाओं व उनकी संरक्षक पाकिस्तानी सेना को लगने लगा था कि अब हिज्ब व लश्कर के लिए स्थानीय युवकों की भर्ती आसान नहीं रही है और उनके मौजूदा कैडर का मनोबल गिरा हुआ है। इस कमी को पूरा करने के लिए ही जैश-ए-मोहम्मद को आगे किया गया और स्थानीय आतंकी कश्मीर में जैश की गतिविधियों को फिर से गति देने के लिए सरहद पार से आए आतंकियों की पूरी मदद कर रहे हैं।
जैश के दो दर्जन आतंकी सक्रिय
आईजीपी मुनीर अहमद खान ने कहा कि हमारे पास कोई पक्की जानकारी नहीं है। लेकिन, विभिन्न सूत्रों से उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर कह सकते हैं कि कश्मीर में जैश के लगभग तीन दर्जन आतंकी थे। जिनमें से लगभग 11 मारे जा चुके हैं। इसलिए अब करीब दो दर्जन आतंकी बचे हुए हैं, हम उन्हें भी जल्द ही मार गिराएंगे।
जिहादी मानसिकता का प्रभाव है खतरनाक
आईजीपी कश्मीर ने कहा कि हम नहीं कहते कि आतंकियों की संख्या घटी है, लेकिन आतंकी गतिविधियों में कमी आई है। लेकिन सबसे ज्यादा खतरनाक बात स्थानीय युवकों में जिहादी मानसिकता का बढ़ता प्रभाव है। इसे रोकने और स्थानीय युवकों को आतंकवाद से दूर रखने के लिए हम विभिन्न मोर्चों पर काम कर रहे हैं।
हमारे युवकों को बरगलाना आसान
तल्हा के कश्मीर में आने और उसकी मौत को नए युवकों की भर्ती के लिए आतंकी संगठनों द्वारा इस्तेमाल किए जाने की संभावना जताते हुए आईजीपी कश्मीर ने कहा कि मैं तो बस इतना ही कहूंगा कि हमारे कश्मीर के यूथ को दलदल में डालना आसान है। वे (पाकिस्तान और आतंकी संगठन) ऐसा करना बंद करें।
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