न हारने की जिद: याददाश्त से लड़े, कैंसर को भी हराया और बने सिविल जज
जबलपुर के दो होनहारों ने मिसाल कायम की है। जबलपुर के दो होनहारों ने मिसाल कायम की है। याददाश्त से लड़कर सिविल जज बने तो, स्वाति चौहान ने खुद बच्चों को पढ़ाकर अपनी पढ़ाई की फीस जमा करके सिविल जज बनीं।
जबलपुर, अंजुल मिश्रा/अर्चना ठाकुर। किसी लक्ष्य को पाने की लगन और न हारने की जिद हो तो किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है। जहां लोग कैंसर जैसी बीमारी और गरीबी के आगे घुटने टेक देते हैं, वहां जबलपुर के दो होनहारों ने मिसाल कायम की है। पहले हैं भूपेंद्र मरकाम। नौ साल पहले भूपेंद्र दुर्घटना में याददाश्त खो चुके थे। इसके बाद कैंसर जैसी बीमारी से भी दो-दो हाथ किए। इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सिविल जज बनने का सपना साकार किया।
दूसरी हैं-स्वाति चौहान, जिनके पिता ऑटो चलाते हैं और वे खुद बच्चों को पढ़ाकर अपनी पढ़ाई की फीस जमा करती थीं। वह भी आज सिविल जज बन चुकी हैं।
भूपेंद्र मरकाम: सपने देखे और पूरे किए
सिविल जज की परीक्षा में एससी कैटेगिरी से तीसरी रैंक लाने वाले लार्डगंज निवासी भूपेन्द्र सिंह के पिता एएल मरकाम सेवानिवृत्त शिक्षक हैं। दो बहनों के इकलौते भाई भूपेंद्र ने प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद साइंस कॉलेज में एडमिशन लिया। साल 2009 में बीएससी द्वितीय वर्ष की पढ़ाई के दौरान सड़क दुर्घटना में उनकी याददाश्त चली गई। करीब चार महीने बाद धीरे-धीरे उनकी याददाश्त वापस आई। स्वस्थ होने के बाद भूपेन्द्र ने फिर से पढ़ने की ठानी और आईपीएस कॉलेज इंदौर में दाखिला लिया।
यहां उन्होंने साइंस से ही ग्रजुऐशन की पढ़ाई शुरू की, लेकिन फाइनल के पहले ही कैंसर ने घेर लिया। बीमारी के साथ ही भूपेन्द्र ने परीक्षा दी और इलाज के लिए नागपुर चले गए। नागपुर में इलाज के दौरान ही लॉ (एलएलबी) की डिग्री पूरी की, बल्कि कैंसर को भी मात दी। इसके बाद उन्होंने सिविल जज की परीक्षा की तैयारी की। पहले प्रयास में वे असफल रहे, लेकिन दूसरे प्रयास में वे एससी कैटेगिरी में तीसरी रैंक पर रहे। भूपेन्द्र की बड़ी बहन दंत चिकित्सक हैं, जबकि दूसरी अभी एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही हैं।
स्वाति चौहान हर परीक्षा में रहीं अव्वल
सिविल लाइन निवासी सीएल चौहान की तीन बेटियां एक बेटा है। चौहान ऑटो चलाकर परिवार का भरण-पोषण करते हैं। अब उनकी बड़ी बेटी पीएचडी कर चुकी है। दूसरे नंबर की स्वाति ने हाल ही में सिविल जज की परीक्षा में 40वीं रैंक हासिल की है। स्वाति पढ़ाई में शुरू से ही अव्वल रही। स्कूल से लेकर कॉलेज तक सभी कक्षाओं में टॉप किया। कई दफा बेस्ट स्टूडेंट का खिताब भी मिला। महाकोशल कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद हितकारिणी लॉ कॉलेज से एलएलबी की और फिर सिविल जज की तैयारी करने लगीं।
ग्रेजुएशन की शुरुआत से ही घर-घर जाकर बच्चों को कॉमर्स की कोचिंग देती रहीं और अपनी पढ़ाई का खर्च निकाला। लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद स्वाति ने सिविल जज के लिए कोचिंग ज्वाइन की। यहां जितने भी टेस्ट हुए उसमें उसे कम नंबर मिलते रहे। जिससे कई बार मन में निराशा भी आई और सोचा कि बच्चों को पढ़ाना छोड़कर पूरा ध्यान सिर्फ पढ़ाई में लगा दूं लेकिन जैसे ही पापा और घर की स्थिति का ख्याल मन में आता तो सारी निराशा दूर हो जाती और फिर नए जोश के साथ वे अपनी तैयारी में लग जाती थीं।