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सर्वे में खुलासा: कुपोषण के मामलों में हो रही कमी, अब बढ़ रही इससे जुड़ी बीमारियां

कुपोषण के मामले में कई राज्यों में वर्ष 1990 से 2017 के बीच किए गए इस अध्ययन में पता चला है कि इस तरह के मामलों में दो-तिहाई गिरावट हुई है।

By Ayushi TyagiEdited By: Published: Tue, 24 Sep 2019 08:45 AM (IST)Updated: Tue, 24 Sep 2019 01:00 PM (IST)
सर्वे में खुलासा: कुपोषण के मामलों में हो रही कमी, अब बढ़ रही इससे जुड़ी बीमारियां
सर्वे में खुलासा: कुपोषण के मामलों में हो रही कमी, अब बढ़ रही इससे जुड़ी बीमारियां

नई दिल्ली,आईएसडब्लू। हाल ही में एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि कुपोषण के मामले तो कम हो रहे हैं, पर इससे जुड़ी बीमारियों का बोझ बढ़ रहा है। भारतीय शोधकर्ताओं के एक ताजा अध्ययन में यह बात उभरकर आई है। विभिन्न राज्यों में वर्ष 1990 से 2017 के दौरान किए गए इस अध्ययन में पता चला है कि कुपोषण के मामलों में दो-तिहाई गिरावट हुई है। हालांकि, पांच साल से कम उम्र के बच्चों की 68 फीसद मौतों के लिए कुपोषण एक प्रमुख कारक बना हुआ है। 

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बच्चों के अलावा, अलग-अलग उम्र के 17 फीसद लोग भी कुपोषण जनित बीमारियों का शिकार पाए गए हैं। राष्ट्रीय दर की तुलना में कुपोषण के मामले राज्य स्तर पर सात गुना अधिक पाए गए हैं। सबसे अधिक कुपोषण राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, नागालैंड और त्रिपुरा में पाया गया है।

इंडिया स्टेट-लेवल डिसीज बर्डन इनीशिएटिव द्वारा किया गया यह अध्ययन शोध पत्रिका द लैंसेट चाइल्ड एंड एडोलेसेंट हेल्थ में प्रकाशित किया गया है। यह अध्ययन भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया तथा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रलय की संयुक्त पहल पर आधारित है।

इंडिया स्टेट-लेवल डिसीज बर्डन इनीशिएटिव के निदेशक और प्रमुख शोधकर्ता ललित डंडोना ने बताया कि लंबे समय तक पोषक तत्वों की कमी और बार-बार संक्रमण से बच्चों का संज्ञानात्मक, भावनात्मक और शारीरिक विकास प्रभावित होता है, जो कुपोषण के प्रमुख संकेतक माने जाते हैं। कुपोषण से होने वाली मौतों के लिए जन्म के समय बच्चों का कम वजन मुख्य रूप से जिम्मेदार पाया गया है। बच्चों का समुचित विकास न होना भी कुपोषण से जुड़ा एक प्रमुख जोखिम है। उम्र के अनुपात में कम लंबाई और लंबाई के अनुपात में कम वजन बच्चों की मौतों के लिए जिम्मेदार कुपोषण जनित अन्य प्रमुख कारकों में शामिल हैं।

21 फीसद बच्चों का जन्म के समय कम होता है वजन 

शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत में 21 फीसद बच्चों का वजन जन्म के समय से ही कम होता है। उत्तर प्रदेश में यह संख्या सबसे अधिक 24 फीसद और सबसे कम मिजोरम में 09 फीसद है। हालांकि, राष्ट्रीय स्तर पर जन्म के समय बच्चों के कम वजन के मामलों में 1.1 फीसद की दर से वार्षिक गिरावट हुई है।

राज्यों के स्तर पर यह गिरावट दिल्ली में सबसे कम 0.3 फीसद और सिक्किम में सबसे अधिक 3.8 फीसद देखी गई है। वर्ष 2017 में बच्चों के कम विकास दर की राष्ट्रीय स्तर पर व्यापकता 39 फीसद थी। गोवा में यह 21 फीसद से लेकर उत्तर प्रदेश में 49 फीसद तक दर्ज की गई है। सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों में यह दर सबसे अधिक पाई गई है।

झारखंड के हालात चिंताजनक 

अध्ययन में यह भी पता चला है कि देश में अभी भी 33 फीसद बच्चों का वजन सामान्य से कम होता है। मणिपुर में 16 प्रतिशत से लेकर झारखंड में 42 फीसद बच्चे कम वजन से ग्रस्त पाए गए हैं। राष्ट्रीय स्तर पर बच्चों में एनीमिया की व्यापकता 60 फीसद है, जो मिजोरम में 21 प्रतिशत से लेकर हरियाणा में 74 प्रतिशत तक देखी गई है। मिजोरम में 28 फीसद से लेकर दिल्ली की 60 फीसद महिलाओं समेत देश में कुल 54 फीसद महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं।


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