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    निठारी कांड का आरोपी सुरेन्द्र कोली आखिरी केस में भी दोषमुक्त, जेल से आएगा बाहर

    Updated: Tue, 11 Nov 2025 10:00 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने निठारी कांड के दोषी सुरेन्द्र कोली को आखिरी मामले में भी दोषमुक्त कर दिया है, जिससे उसकी जेल से रिहाई का रास्ता खुल गया है। अदालत ने पुलिस जांच पर सवाल उठाते हुए कहा कि वास्तविक अपराधी की पहचान स्थापित नहीं हो पाई। कोली पर 2005-2006 में कई बच्चों और युवतियों की हत्या का आरोप था, लेकिन सबूतों की कमी के कारण उसे बरी कर दिया गया।

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    दोषमुक्त होने के बाद कोली का जेल से बाहर आना निश्चित (फाइल फोटो)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नोएडा के निठारी हत्या और दुष्कर्म कांड में दोषी सुरेन्द्र कोली को सुप्रीम कोर्ट ने आखिरी केस में भी दोषमुक्त घोषित कर दिया है। अंतिम तेरहवें केस में दोष मुक्त घोषित होने के बाद कोली का जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा है कि अगर कोली किसी और केस में वांछित नहीं है तो उसे तत्काल रिहा किया जाए।

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    ऐसे में अंतिम तेरहवें केस में दोषमुक्त होने के बाद कोली के जेल से बाहर आना निश्चित हो गया है क्योंकि आज की तारीख में उस पर कोई केस नहीं है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में निठारी कांड में पुलिस की जांच पर सवाल उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला कोली की क्यूरेटिव याचिका पर सुनाया है। विरले मामलों में ही होता है कि सुप्रीम कोर्ट क्यूरेटिव याचिका स्वीकार करता है।

    2005-2006 में कई बच्चे और युवतियां गायब हुए

    क्यूरेटिव याचिका सिर्फ तभी स्वीकार की जाती है जब कोर्ट को लगता है कि अगर इसे नहीं स्वीकार किया गया तो अन्याय हो सकता है। उत्तर प्रदेश के नोएडा के निठारी में 2005-2006 में कई बच्चे और युवतियां गायब हो गई थी जिनके शरीर के कटे हुए अंग बाद में नाले से मिले थे और उस मामले में सुरेन्द्र कोली को 2006 में गिरफ्तार किया था। कोली पर कुल 13 मुकदमे चले और सभी में उसे निचली अदालत से फांसी की सजा हुई थी लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उसे 12 मामलों में बरी कर दिया और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 30 जुलाई 2025 को उन 12 मामलों में कोली को बरी करने के हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए बरकरार रखा था।

    मौजूदा मामला आखिरी मामला था जो रिंपा हलदर की हत्या और दुष्कर्म का था। रिंपा हलदर 2005 में गायब हो गयी थी। इस मामले में निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कोली को मौत की सजा दी गई थी सुप्रीम कोर्ट से उसकी पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो चुकी थी। इसके बाद हाई कोर्ट ने दया याचिका निपटाने में देरी के आधार पर फांसी उम्रकैद में तब्दील कर दी थी। कोली ने पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी जिस पर कोर्ट ने ये फैसला सुनाया है।

    पंधेर पहले ही सभी मामलों में बरी

    इस मामले में एक अन्य आरोपी मोनिंदर सिंह पंधेर पहले ही सभी मामलों में बरी हो चुका है। सुरेन्द्र कोली पंधेर का घरेलू सहायक था। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रमनाथ की पीठ ने कोली की क्यूरेटिव याचिका स्वीकार करते हुए उसे रिम्पा हलदर केस में भी दोषमुक्त घोषित कर दिया है।

    शीर्ष अदालत ने कोली को दोषी ठहराने का सुप्रीम कोर्ट का 15 फरवरी 2011 का फैसला और उस फैसले को सही ठहराने तथा पुनर्विचार याचिका खारिज करने का 28 अक्टूबर 2014 का फैसला वापस लेते हुए रद कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने सुरेन्द्र कोली को रिंपा हलदर केस में मौत की सजा का ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट का फैसला भी निरस्त कर दिया है।

    कोली रिंपा हलदर केस में बरी

    सुप्रीम कोर्ट ने कोली को रिंपा हलदर केस में बरी करते हुए कहा है कि सुरेन्द्र कोली को आइपीसी की धारा 302 हत्या, 364 अपहरण, 376 दुष्कर्म और 201 सबूत मिटाने के आरोपों से बरी किया जाता है। कोर्ट ने कहा कि उसे दी गई सजा और जुर्माना रद किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21 निष्पक्ष, न्यायसंगत और उचित प्रक्रिया पर जोर देता है।

    यह बात तब और महत्वपूर्ण होती है जब मृत्युदंड दिया जाता है। कोर्ट ने कहा, हालांकि इस मामले में 28 जनवरी 2015 में मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था लेकिन दोषसिद्धि के गंभीर परिणाम अभी भी जारी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब इन्हीं साक्ष्यों को 12 मामलों में अस्वीकार और खारिज कर दिया गया है तो उसी के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

    'याचिकाकर्ता मामले में खामियां साबित करने में सफल'

    कोर्ट ने कहा कि एक समान मामलों में एक समान रूप माना जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि क्यूरेटिव क्षेत्राधिकार इसी तरह की विसंगतियों को मिसाल बनने से रोकने के लिए है। कोर्ट ने कहा कि हम मानते हैं कि याचिकाकर्ता मामले में खामियां साबित करने में सफल रहा है। और यह केस क्यूरेटिव याचिका स्वीकार करने लायक है। कोर्ट ने निठारी कांड की पुलिस जांच पर सवाल उठाते हुए कहा कि निठारी में हुए अपराध जघन्य थे और परिवारों की पीड़ा अथाह है। यह अत्यंत खेद की बात है कि लंबी जांच के बावजूद, वास्तविक अपराधी की पहचान कानूनी मानकों के अनुरूप स्थापित नहीं हो पाई है।

    कोर्ट ने कहा कि आपराधिक कानून अनुमान या पूर्वाभास के आधार पर दोषसिद्धि की अनुमति नहीं देता। संदेह चाहें जितना भी गंभीर क्यों न हो, संदेह से परे साक्ष्य का स्थान नहीं ले सकता। निर्दोषता की धारणा तबतक बनी रहती है जबतक कि स्वीकार्य और विश्वस्नीय साक्ष्यों के जरिए अपराध सिद्ध नहीं हो जाता, भले ही वह मामला भयानक अपराधों से जुड़ा हो।

    कोर्ट ने पुलिस जांच पर की टिप्पणी

    कोर्ट ने पुलिस जांच पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि जब किसी मामले की जांच समय पर, पेशेवर तरीके और संवैधानिक अनुपालन के अनुसार होती है तो बहुत जटिल मामले भी सुलझाए जा सकते हैं और कई अपराधों को शीघ्र हस्तक्षेप से रोका जा सकता है। इसलिए ये वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है कि वर्तमान मामले में लापरवाही और देरी ने तथ्यों की खोज प्रक्रिया को कमजोर कर दिया और उन रास्तों को बंद कर दिया जिनसे असली अपराधी की पहचान हो सकती थी।

    कोर्ट ने कहा कि खुदाई शुरू होने से पहले घटना स्थल की सुरक्षा नहीं की गई, कथित खुलासे को उसी समय दर्ज नहीं किया गया, रिमांड दस्तावेजों में विरोधाभासी विवरण थे। कोर्ट ने कहा कि इसके अलावा याचिकाकर्ता यानी कोली को अदालत द्वारा निर्देशित समय पर चिकित्सा जांच के बिना लंबे समय तक पुलिस हिरासत में रखा गया। कोर्ट ने ये भी कहा कि महत्वपूर्ण वैज्ञानिक मौके को भी तब खो दिया गया जब पोस्टमार्टम सामग्री और अन्य फरेंसिक निष्कर्षों को तुरंत और उचित रूप से रिकार्ड में नहीं लाया गया।

    कोर्ट ने कहा कि कोठी डी5 में तलाशी के दौरान कोई ऐसे आपराधिक तथ्य नहीं मिले जिन्हें फारेंसिक रूप से घटनाओं से जोड़ा जा सके। प्रत्येक चूक ने साक्ष्य के स्त्रोत और विश्वस्नीयता को कमजोर किया और सत्य तक पहुंचने का रास्ता संकरा कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि इन कारणों से क्यूरेटिव याचिका स्वीकार की जाती है।