मकान मालिक और किराएदार का कानूनी पेंच सुलझाएगा सुप्रीम कोर्ट
निचली अदालत ने फैसला मकान मालिक के हक में सुनाया और किरायेदार को दुकान खाली करने का आदेश दिया था।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। किराएदार और मकान मालिक के बीच फंसा एक पेचीदा कानूनी सवाल तय करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के सामने पहुंचा है। सवाल है कि बंटवारे में मिली संयुक्त परिवार की संपत्ति के मालिक को अगर किराएदार पूर्ण मालिक न माने तो क्या इसे मालिकाना हक नकारना माना जाएगा और इस आधार पर किराएदार को मकान से निकाला जा सकता है। एक मकान मालिक की ओर से उठाए गए इस कानूनी सवाल पर विचार का मन बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने किराएदार को नोटिस जारी किया है।
न्यायमूर्ति आरएफ नारिमन व न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने मकान मालिक के वकील डीके गर्ग की दलीलें सुनने के बाद मामले में जवाब दाखिल करने के लिए किराएदार को नोटिस जारी किया। मकान मालिक सुरेन्द्र कुमार मित्तल की ओर से बहस करते हुए वकील डीके गर्ग ने कहा कि जिला अदालत का फैसला रद करने का हाईकोर्ट का आदेश सही नहीं है।
जिला अदालत ने माना है कि किरायेदार का मकान मालिक को किराया न देकर कोर्ट में किराया जमा करना गलत था। इसके अलावा किरायेदार ने याचिकाकर्ता मकान मालिक को पूर्ण किरायेदार नहीं माना है। निचली अदालत ने इसे टाइटिल (मालिकाना हक) नकारना माना था और जिला अदालत ने किरायेदारी कानून यूपी एक्ट की धारा 20(4) के तहत किरायेदार को 30 दिन के अंदर दुकान खाली करने का आदेश दिया था।
उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने जिस फैसले को आधार मान कर निचली अदालत का आदेश रद किया है उसके तथ्य अलग थे इसलिए वह फैसला यहां लागू नहीं होगा।
मामला अलीगढ़ का है। याचिकाकर्ता सुरेन्द्र मित्तल के पिता कांति कुमार मित्तल ने 1958 में जब शेखर वैद्य से संपत्ति (दुकानें) खरीदी थीं उस वक्त मामले में प्रतिपक्षी किरायेदार के पिता पहले से उस दुकान में किराये पर थे। कांति लाल के परिवार में 1968 में एक पारिवारिक सहमति से संपत्ति का बंटवारा हुआ जिसमें दोनों दुकानें सुरेन्द्र कुमार मित्तल और संतोष कुमार मित्तल के हिस्से में आईं।
1981 में संतोष कुमार मित्तल की मृत्यु हो गई। जिसके बाद फिर पारिवारिक समझौता हुआ जिसमें सुरेन्द्र कुमार मित्तल और संतोष मित्तल की पत्नी व बच्चों में किराए का हिस्सा बांटने की सहमति बनी, लेकिन आरोप है कि किराएदार ने 1981 के बाद उन लोगों को किराया नही दिया और कह दिया कि वे संपत्ति के अकेले मालिक नहीं है बल्कि संयुक्त मालिक हैं।
निचली अदालत ने फैसला मकान मालिक के हक में सुनाया और किरायेदार को दुकान खाली करने का आदेश दिया था, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत का फैसला रद कर दिया और कहा कि किरायेदार का महज यह कह देना कि मकान मालिक संपत्ति का पूर्ण मालिक नहीं है यह नहीं माना जा सकता कि उसने मकान मालिक का मालिकाना हक नकार दिया है।