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उत्तराखंड के बागी विधायकों को सुप्रीम कोर्ट से नहीं मिली राहत

कांग्रेस के 9 बागी विधायकों की अर्जी पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। अदालत ने बागी विधायकों को झटका देते हुए शक्ति परीक्षण के दौरान वोट देने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया।

By Lalit RaiEdited By: Published: Mon, 09 May 2016 10:44 AM (IST)Updated: Mon, 09 May 2016 09:21 PM (IST)
उत्तराखंड के बागी विधायकों को सुप्रीम कोर्ट से नहीं मिली राहत

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली । उत्तराखंड के नौ बागी कांग्रेस विधायकों को सोमवार को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों से झटका लगा। दस मई को होने वाले हरीश रावत के फ्लोर टेस्ट में वोट डालने के उनके मंसूबों पर पानी फिर गया है। सुबह हाईकोर्ट ने उनकी याचिकाएं खारिज करते हुए उन्हें अयोग्य ठहराए जाने के स्पीकर के आदेश पर अपनी मुहर लगा दी तो दोपहर में सुप्रीमकोर्ट ने अयोग्यता पर अंतरिम रोक लगा कर 10 मई को फ्लोर टेस्ट में हिस्सा लेने की गुहार ठुकरा दी। बागियों के विश्वास मत में हिस्सा न लेने से हरीश रावत को थोड़ी राहत जरूर मिली है जो शुरू से उनके मतदान में हिस्सा लेने के खिलाफ थे।

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सोमवार का दिन उत्तराखंड की राजनीति के लिए बड़ा उतार चढ़ाव वाला रहा। अदालती आदेशों के चलते राजनीति का पारा चढ़ता उतरता रहा। नैनीताल हाईकोर्ट ने सुबह सवा दस बजे फैसला सुनाया और कांग्रेस के नौ बागी विधायकों की याचिकाएं खारिज कर दीं। उन्हें अयोग्य ठहराए जाने के आदेश पर मुहर लगा दी। हाईकोर्ट का फैसला आते ही बागी विधायक फैसले के खिलाफ सुबह साढ़े दस बजे सुप्रीमकोर्ट पहुंच गए। उनके वकील ने सुप्रीमकोर्ट में मामले का जिक्र करते हुए तत्काल सुनवाई की मांग की जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। दोपहर में लंबी सुनवाई हुई लेकिन न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह की पीठ बागियों के वकील की दलीलों से बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं दिखी।

कोर्ट ने उनकी उन्हें तत्काल कोई राहत नहीं दी। पीठ ने बागियों की याचिका पर प्रतिपक्षी बनाए गए विधानसभा स्पीकर और इंद्रा हृदेयश को नोटिस जारी करने के बाद याचिका पर सुनवाई 12 जुलाई तक टाल दी। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता बागियों की अंतरिम राहत की मांग जैसे कि उनकी सीट पर याचिका लंबित रहते हुए बाई इलेक्शन नहीं कराया जाए आदि पर भी उसी दिन सुनवाई की जाएगी। उधर स्पीकर की ओर से भी सुबह ही सुप्रीमकोर्ट में कैविएट दाखिल कर दी गई थी। स्पीकर की ओर से पेश वकील मुकेश गिरि ने कोर्ट से जारी नोटिस स्वीकार किया।

संयुक्त ज्ञापन बना गले की फांस

भाजपा विधायकों के साथ मिल कर संयुक्त रुप से राज्यपाल को वित्त विधेयक पर मत विभाजन के प्रस्ताव का ज्ञापन गले की फांस साबित हो रहा है। सोमवार को वैसे तो बागियों के वकील की दलील काफी पुख्ता थी कि उनका कहना था कि जब उन्होंने वित्त विधेयक के पक्ष में मतदान किया जिसके कारण स्पीकर ने वित्त विधेयक को पास घोषित किया है तो फिर उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधयों के लिए अयोग्य कैसे ठहराया जा सकता है। लेकिन कोर्ट का सवाल बार बार एक ही होता था कि क्या 9 बागी विधायकों ने 18 तारीख की सदन की कार्रवाही से पहले राज्यपाल को मत विभाजन कराए जाने की मांग का ज्ञापन दिया था।

संयुक्त ज्ञापन पत्र दिया जाना बागियों के वकील ने स्वीकार किया। कोर्ट का सवाल था कि नियमों में मतविभाजन मांगा जा सकता है इसे पार्टी विरोधी नहीं माना जाएगा। इस पर बागियों का कहना था कि अगर पार्टी ने व्हिप जारी की होती तो फिर उससे इतर जाना पार्टी विरोधी गतिविधि होती लेकिन यहां ऐसा नहीं था। मुख्यमंत्री को हटाने की मांग करना या उसका विरोध करना अथवा स्पीकर का विरोध करना पार्टी विरोधी गतिविधि नहीं माना जाएगा और इसे अपनी इच्छा से पार्टी छोड़ना भी नहीं माना जाएगा।

रावत ने बागियों का किया विरोध

निर्वतमान मुख्यमंत्री हरीश रावत की ओर से बागियों की याचिका का सुप्रीमकोर्ट में जोरदार विरोध किया गया। उनके वकील कपिल सिब्बल का कहना था कि इन लोगों ने भाजपा के विधायकों के साथ मिल कर राज्यपाल को वित्त विधेयक पर विभाजन का संयुक्त ज्ञापन दिया इतना ही नहीं उसमें वित्त विधेयक पर मतदान होने से पहले ही यह भी लिख दिया कि सरकार अल्पमत में है। इसे स्वत: पार्टी छोड़ना नहीं माना जाएगा तो क्या कहा जाएगा

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