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शिक्षण संस्थाओं के खिलाफ उपभोक्ता अदालत के अधिकार पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ इंदू मल्होत्रा और इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि शिक्षण संस्थानों या विश्वविद्यालयों में उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 के प्रावधान लागू होंगे कि नहीं इस पर सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों में मतांतर है।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Thu, 22 Oct 2020 06:23 PM (IST)Updated: Thu, 22 Oct 2020 06:23 PM (IST)
शिक्षण संस्थाओं के खिलाफ उपभोक्ता अदालत के अधिकार पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट
दिल्ली स्थित सुप्रीम कोर्ट का नजारा। (फाइल फोटो)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा कि उपभोक्ता अदालतों को शिक्षण संस्थानों और विश्वविद्यालय के खिलाफ शिकायतें सुनने का अधिकार है कि नहीं। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली एक अपील में उठाए गए इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, इंदू मल्होत्रा और इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि शिक्षण संस्थानों या विश्वविद्यालयों में उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 के प्रावधान लागू होंगे कि नहीं इस पर सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों में मतांतर है।

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इस मामले में मनु सोलंकी व अन्य ने विनायक मिशन विश्वविद्यालय के खिलाफ उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कर सेवा में कमी का आरोप लगाया था। शिकायत में कहा गया था कि विश्वविद्यालय ने 2005-2006 में उन्हें डेंटल कोर्स में प्रवेश पर विदेश में पढ़ाई का प्रलोभन दिया था। उनसे कहा गया था कि इस प्रोग्राम के तहत दो साल की पढ़ाई थाइलैंड में होगी और ढाई साल की पढ़ाई विश्वविद्यालय में होगी।

शिकायत में आरोप लगया गया था कि ये कोर्स न तो विश्वविद्यालय से संबद्ध था और न ही इसे डेंटल काउंसिल आफ इंडिया की मान्यता प्राप्त थी। जबकि विश्वविद्यालय ने उपभोक्ता कानून के तहत दाखिल शिकायत की सुनवाई पर सवाल उठाया। विश्वविद्यालय की दलील थी कि शिक्षा कोई वस्तु नहीं है और न ही शिक्षण संस्थान कोई सेवा प्रदान करते हैं।

विश्वविद्यालय ने अपनी दलील के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों का हवाला दिया। एक केस महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय बनाम सुजीत कौर और दूसरा पीटी कोशी व अन्य बनाम एलेन चैरिटेबल ट्रस्ट था। विश्वविद्यालय ने कहा कि इन फैसलों में कहा गया है कि शिक्षा कोई वस्तु नहीं है और शिक्षण संस्थान कोई सेवा प्रदान नहीं करते। इसलिए प्रवेश, फीस आदि के मुद्दे पर सेवा में कमी का सवाल नहीं उठाया जा सकता। दूसरी ओर शिकायतकर्ता छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट के पी. श्रीनिवासुलू बनाम पीजे एलेक्जेन्डर व अन्य मामले में दिये गए फैसले का हवाला दिया गया जिसमें कहा गया था कि शिक्षण संस्थान उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 के दायरे में आएंगे।

राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के ही एक अन्य मामले अनुपमा कालेज आफ इंजीनियरिंग बनाम गुलशन कुमार के फैसले का भी हवाला दिया। आयोग ने कहा कि शिक्षण संस्थान कोई सेवा प्रदान नहीं करते इसलिए उपभोक्ता अदालतों (उपभोक्ता फोरम) को उनके खिलाफ शिकायतें सुनने का अधिकार नहीं है। आयोग ने यह भी कहा कि जो संस्थान शिक्षा देते हैं, जिनमें वोकेशनल कोर्स और प्रवेश के पहले की एक्टीविटी और प्रवेश के बाद की एक्टीविटी आदि शामिल हैं, वो उपभोक्ता कानून के दायरे में नहीं आते हैं। हालांकि इनमें कोचिंग इंस्टीट्यूट शामिल नहीं हैं।


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