निजता के अधिकार पर कल सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फैसला
निजता के अधिकार की कानूनी स्थिति तय होने के बाद पांच न्यायाधीशों की पीठ आधार की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ गुरुवार को निजता के अधिकार पर फैसला सुनायेगी। कोर्ट तय करेगा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है कि नहीं। गत 2 अगस्त को मामले पर बहस सुन कर कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
निजता के अधिकार की कानूनी स्थिति तय होने के बाद पांच न्यायाधीशों की पीठ आधार की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। निजता के अधिकार पर बहस इसलिए शुरू हुई क्योंकि आधार योजना को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की दलील है कि आधार के लिए बायोमैट्रिक डाटा और सूचनाएं एकत्र करने से उनके निजता के अधिकार का हनन होता है। सुप्रीम कोर्ट दो पूर्व फैसलों में आठ न्यायाधीशों और छह न्यायाधीशों की पीठ कह चुकी है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। ऐसे में भारत सरकार और याचिकाकर्ताओं ने निजता के अधिकार का मुद्दा बड़ी पीठ के द्वारा सुने जाने की अपील की थी। जिस पर नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ गठित हुई थी। पीठ की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने की थी। उनके अलावा पीठ में जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस आरके अग्रवाल, जस्टिस आरएफ नारिमन, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल व जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल थे।
सरकार की दलील
सरकार ने निजता को मौलिक अधिकार घोषित करने का विरोध करते हुए दलील दी थी कि ये सन्निहित अधिकार है लेकिन ये कामन ला में आता है। निजता हर मामले की परिस्थितियों पर तय होती है। इसे मौलिक अधिकार में शामिल करने पर संविधान सभा में बहस हुई थी और संविधान निर्माताओं ने जानबूझकर इसे शामिल नहीं किया था। अब अगर कोर्ट इसे मौलिक अधिकार घोषित करता है तो यह एक प्रकार से संविधान संशोधन होगा जिसका कोर्ट को अधिकार नहीं है। सरकार ने यह भी कहा था कि आंकड़े एकत्रित करना निजता के तहत नहीं आता। भारत की ज्यादातर आबादी गरीब है उसके पास भोजन पानी आदि मूलभूत चीजें नहीं हैं। अगर कोर्ट निजता को मौलिक अधिकार घोषित करता है तो तकनीकी का सहारा लेकर गुड गर्वनेंस के लिए किये जा रहे प्रयास रुक जाएगे। गरीबों को उनका हक नहीं मिल पाएगा।
याचिकाकर्ताओं की दलील
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि निजता सम्मान से जीवन जीने के मौलिक अधिकार का ही एक हिस्सा है। और जब मुख्य अधिकार मौलिक अधिकार है तो उसका हिस्सा भी मौलिक अधिकार ही माना जाएगा। कोर्ट अपने कई फैसलों में निजता के अधिकार को मान्यता दे चुका है। निजता को स्वतंत्रता और जीवन के अधिकार से अलग करके नहीं देखा जा सकता। उन्होंने अमेरिका व अन्य उन देशों का उदाहरण दिया जहां निजता को मौलिक अधिकार माना गया है।
कोर्ट की टिप्पणियां
सात दिन चली सुनवाई के दौरान मामले को समझने के लिए पीठ ने कई सवाल और टिप्पणियां कीं।
- कैसे परिभाषित किया जायेगा निजता के अधिकार को और क्या होगा दायरा। अगर इसे मौलिक अधिकार माना गया तो किस आधार पर दी जाएगी चुनौती
- फैसला लेने का हर अधिकार निजता का अधिकार नहीं हो सकता। ये प्रत्येक मामले पर निर्भर करेगा
- मेरा बच्चा स्कूल जाएगा ये मेरी पसंद है, ये निजता में नहीं आयेगा लेकिन मै बेडरूम में क्या करता हूं ये निजता का अधिकार होगा।
- शादी, सन्तान उत्पत्ति या सैक्सुअल पसंद निजता का अधिकार हो सकती है हालांकि इसे मौलिक अधिकार घोषित करने से नाज फाउंडेशन मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुश्किल में पड़ेगा
- स्वतंत्रता का हर पहलू निजता का अधिकार नहीं होता। निजता का अधिकार स्वतंत्रता के अधिकार का एक छोटा हिस्सा है।
डाटा प्रोटेक्शन के लिए गठित हुई कमेटी
सुनवाई के दौरान ही सरकार ने डाटा प्रोटेक्शन पर सुझाव और डाटा प्रोटेक्शन विधेयक तैयार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश बीएन श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में दस सदस्यीय कमेटी गठित कर दी थी।
यह भी पढ़ें: निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं, SC में फैसला सुरक्षित