अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को रखा सुरक्षित, भूषण को बिना शर्त माफी मांगने का आदेश
न्यायालय की खंडपीठ ने अपने आदेश में प्रशांत भूषण को 24 अगस्त तक बिना शर्त माफी मांगने को कहा है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। न्यायालय की अवमानना मे दोषी ठहराए जा चुके वकील प्रशांत भूषण अभी भी टस से मस होने के तैयार नहीं है। बल्कि उन्होंने अपने ट्वीट पर कायम रहते हुए माफी मांगने से इनकार कर दिया। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने भूषण को बिना शर्त माफी मांगने के लिए एक और मौका दिया है। कोर्ट ने कहा कि अगर भूषण चाहें तो 24 अगस्त तक बिना शर्त माफी दाखिल कर सकते हैं और अगर भूषण बिना शर्त माफी मांगते हैं तो कोर्ट मामले पर 25 अगस्त को फिर विचार करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को प्रशांत भूषण को सजा के मुद्दे पर बहस सुनकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
इस मामले में कोर्ट जल्दी ही सुनवाई करके सजा के पर फैसला सुना सकता है क्योंकि सुनवाई कर रही तीन सदस्यीय पीठ के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा 2 सितंबर को सेवानिवृत होने वाले हैं। ऐसे में भूषण की सजा पर फैसला इससे पहले आने की उम्मीद है।
भूषण ने मोटरसाइकिल पर बैठी तस्वीर पर की थी टिप्पणी
अपने ट्वीटस में भूषण ने मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की मोटरसाइकिल पर बैठी तस्वीर पर टिप्पणी की थी और दूसरे ट्वीट में चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों के कार्यकाल पर टिप्पणी की थी। सुनवाई की शुरुआत में भूषण की ओर से पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की दलील देते हुए कोर्ट से सजा पर सुनवाई टालने का आग्रह किया गया था लेकिन कोर्ट ने आग्रह ठुकरा दिया और बहस सुनी। हालांकि कोर्ट ने भरोसा दिलाया कि अगर सजा दी जाती है तो उस पर पुनर्विचार याचिका दाखिल होने तक अमल नहीं किया जाएगा।
गुरुवार को बहस में भूषण की ओर से ट्वीट्स को एक नागरिक के तौर कर्तव्य निर्वहन बताते हुए सही मंशा से की गई आलोचना बताया गया। भूषण की ओर से वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे और राजीव धवन ने बहस की लेकिन प्रशांत भूषण स्वयं भी कोर्ट के समक्ष पेश हुए और उन्होंने न्यायालय की अवमानना के जुर्म में दोषी ठहराए जाने पर पीड़ा होने की बात कही। भूषण ने कहा कि उन्हें पीड़ा इस बात की नहीं है कि उन्हें दोषी ठहराया गया पीड़ा इस बात की है कि गलत समझा गया।
उनका कहना था कि उन्होंने जो भी कहा वह बहुत सोच समझकर सही मंशा से कहा था और इस पर माफी मांगना उन्हें सही नहीं लगता। भूषण ने महात्मा गांधी के वक्तव्य का हवाला दिया जिसमें गांधी जी ने कहा था कि - वे दया करने या उदारता दिखाने की गुजारिश नहीं कर रहे। वह कानून सम्मत जो सजा होगी उसे भुगतने को तैयार हैं। भूषण ने इस संबंध में कोर्ट को लिखित बयान (कथन) दिया। पीठ ने जब भूषण से कथन पर पुनर्विचार करने के लिए दो तीन दिन का समय दिये जाने की बात कही तो भूषण ने कहा कि इसकी जरूरत नहीं है क्योंकि उन्हें नहीं लगता कि वे अपना कथन बदलेंगे। हालांकि बाद में भूषण राजी हो गए और कहा कि वह इस पर वकीलों से बात करेंगे।
सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट से कहा कि भूषण को दोषी तो ठहराया जा चुका है लेकिन कोर्ट उन्हें दंडित न करे। इस पर पीठ ने वेणुगोपाल से कहा कि भूषण ने अपने लिखित बयान में जिस तरह के शब्दों का प्रयोग किया है उसे देखते हुए कोर्ट उनकी बात नहीं मान सकता। जब भूषण ने कहा समय देने की जरूरत नहीं तो कोर्ट ने कहा कि बाद में मत कहियेगा कि उन्हें समय नहीं दिया गया।
धवन ने कहा कि अवमानना के मामले में मंशा महत्वपूर्ण होती है। वह सही मंशा से की गई आलोचना थी। धवन ने भूषण द्वारा दाखिल की गई जनहित याचिकाओं का हवाला दिया इस पर पीठ ने कहा कि भूषण के किये गए अच्छे कामों का वे स्वागत करते हैं लेकिन अच्छे कामों से गलत चीजें खतम नहीं हो जातीं। हर चीज में संतुलन होना चाहिए। अगर अपनी टिप्पणियों को संतुलित नहीं करते तो आप संस्था को नष्ट कर देंगे। हर चीज की लक्ष्मण रेखा होती है। आपको रेखा पार नहीं करनी चाहिए।