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सुप्रीम कोर्ट ने नीट के आल इंडिया कोटे में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को सही ठहराया, कहा- कोटा योग्यता में बाधक नहीं

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को केंद्र सरकार को मेडिकल पाठ्यक्रमों में अखिल भारतीय कोटा (AIQ) सीटों में ओबीसी के लिए 27 फीसद और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की अनुमति दे दी।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Thu, 20 Jan 2022 03:43 PM (IST)Updated: Fri, 21 Jan 2022 01:00 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने नीट के आल इंडिया कोटे में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को सही ठहराया, कहा- कोटा योग्यता में बाधक नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल पाठ्यक्रमों में ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को आरक्षण देने की अनुमति दे दी।

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मेडिकल पाठ्यक्रम की परीक्षा नीट के आल इंडिया कोटे में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण को सही ठहराते हुए कहा कि आरक्षण योग्यता में बाधक नहीं है, बल्कि इसका वितरण परिणाम को व्यापक बनाता है। कोर्ट ने कहा कि परीक्षा में उच्च अंक योग्यता का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। योग्यता या मेरिट सामाजिक रूप से प्रासंगिक होनी चाहिए। समानता जैसे आगे बढ़ाने वाले सामाजिक मूल्यों की पुनर्सकल्पना में औजार की तरह इसका इस्तेमाल होना चाहिए। लिहाजा, आरक्षण योग्यता के लिए बाधक नहीं है।

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आरक्षण को हरी झंडी

यह बात न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की पीठ ने नीट के आल इंडिया कोटे में ओबीसी को 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने को हरी झंडी देने वाले गत सात जनवरी के आदेश का कारण जारी करते हुए अपने फैसले में कही है। कोर्ट ने उस दिन आरक्षण के साथ नीट काउंसलिंग की इजाजत देते हुए कहा था कि आदेश का कारण बताने वाला विस्तृत फैसला बाद में जारी किया जाएगा।

इजाजत लेने की जरूरत नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आल इंडिया कोटे में आरक्षण लागू करने से पहले केंद्र सरकार को कोर्ट की इजाजत लेने की जरूरत नहीं थी। इसलिए आल इंडिया कोटे में आरक्षण प्रदान करना सरकार का नीतिगत निर्णय है, जो कि प्रत्येक आरक्षण नीति की तरह न्यायिक समीक्षा के अधीन होगा।

अंक हमेशा योग्यता आंकने का सर्वश्रेष्ठ तरीका नहीं

  • कोर्ट ने कहा, समाज के कई वर्ग सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से लाभ की स्थिति में रहे हैं। यह परीक्षा में उनकी सफलता की वजह बनता है।
  • अंक व्यक्तिगत योग्यता आंकने का हमेशा सर्वश्रेष्ठ तरीका नहीं हो सकता। फिर भी अंकों को अक्सर योग्यता का प्रतिनिधि माना जाता है।

परीक्षा से पता नहीं चलता, पृष्ठभूमि का कितना लाभ मिला

  • सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि किसी खुली प्रतिस्पर्धा वाली परीक्षा में, जो अवसर की समानता केवल औपचारिक रूप से देती हो, योग्यता को प्रदर्शन की संकुचित परिभाषा में नहीं ढाला जा सकता।
  • खुली प्रतियोगी परीक्षाएं यह परिलक्षित नहीं करती हैं कि किसी खास वर्ग को सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से कितना फायदा हुआ, जिसके योगदान के बल पर उसे इन परीक्षाओं में कामयाबी मिली।

योग्यता बनाम प्रतिनिधित्व योग्यता पर ये कहा

कोर्ट ने कहा कि यह समझना आवश्यक है कि 'योग्यता' खुद की बनाई नहीं होती। योग्यता में इर्द-गिर्द का परिवेश, परिवार का माहौल, स्कूली शिक्षा, भाग्य और प्रतिभा का उपहार शामिल होता है, जिसे समाज किसी की उन्नति में सहायक मानता है। 'परीक्षा में प्राप्तांक' के आधार पर योग्यता के विचार की गहरी छानबीन की जरूरत है। परीक्षा शैक्षणिक अवसरों के वितरण का एक आवश्यक और सुविधाजनक तरीका है।

प्रतिनिधित्व पर ये कहा

कोर्ट ने कहा कि समूहों को आरक्षण दिया जाता है, ताकि समानता कायम की जा सके। इससे एक विसंगति आ सकती है कि चिह्नित समूह, जिसे आरक्षण मिला है, उसके कुछ लोग पिछड़े न हों या जिन्हें आरक्षण नहीं मिला है, उनमें से कुछ में पिछड़े होने के चिह्न हों। यह फर्क व्यक्तिगत तौर पर विशेष लाभकारी परिस्थितियों और भाग्य के कारण हो सकता है। लेकिन इस असमानता को हटाने में आरक्षण की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।

क्यों अहम है फैसला

इस समय सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण समेत जातिगत आरक्षण के कई मामले लंबित हैं। इसे देखते हुए नीट के आल इंडिया कोटे में ओबीसी आरक्षण पर शीर्ष अदालत का यह फैसला खास तौर पर महत्वपूर्ण है। आने वाले दिनों में यह फैसला विभिन्न मामलों में उदाहरण के तौर पर पेश किया जा सकता है।


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