क्या शिक्षण संस्थान और यूनिवर्सिटी उपभोक्ता कानून के दायरे में आते हैं... सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार
क्या शिक्षण संस्थान या विश्वविद्यालयों पर सेवा में कमी के लिए उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत केस किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट इस विषय पर करने जा रहा है। बता दें कि इससे पहले इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट का रुख अलग अलग रहा है।
नई दिल्ली, पीटीआइ। क्या शिक्षण संस्थान या विश्वविद्यालयों पर सेवा में कमी के लिए उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत केस किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट इस सवाल से जुड़ी याचिका पर विचार के लिए तैयार हो गया है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस इन्दु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ कहा कि चूंकि इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट का अलग अलग रुख रहा है इसलिए याचिका पर विचार करने की जरूरत है।
दरअसल, क्या एक शिक्षण संस्थान या विश्वविद्यालय उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 के दायरे में आएंगे या नहीं। इस विषय पर शीर्ष अदालत के परस्पर विरोधी फैसले हैं। यही वजह है कि तीन न्यायमूर्तियों की बेंच ने सेवाओं में खामियों के आरोप में तमिलनाडु के सलेम स्थित विनायक मिशन यूनिवर्सिटी के खिलाफ याचिका स्वीकार कर ली है। यह याचिका मनु सोलंकी और अन्य छात्रों की ओर से दाखिल की गई है।
याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कैविएट दायर करने वाले विश्वविद्यालय की ओर से पेश अधिवक्ता सौम्यजीत से कहा कि वह राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के फैसले के मसले पर छह हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करें। विश्वविद्यालय ने महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी और पीटी कोशी मामलों का हवाला देते हुए कहा कि इन फैसले में अदालत की ओर से व्यवस्था दी गई है कि शिक्षा वस्तु नहीं है। शैक्षणिक संस्थाएं किसी प्रकार की सेवा प्रदान नहीं करती हैं।
यह भी कहा गया है कि प्रवेश और शुल्क के मामले में किसी भी प्रकार की सेवा का सवाल ही नहीं है ऐसे में उपभोक्ता मंच या आयोग सेवा में कमी के सवाल पर विचार कर ही नहीं सकते हैं। वहीं छात्रों की ओर से दूसरे फैसलों का हवाला दिया गया है। वहीं छात्रों की ओर से कहा गया है कि शिक्षण संस्थाए उपभोक्ता संरक्षण कानून के दायरे में आएंगी। छात्रों ने सेवा में खामी शैक्षणिक सत्र गंवाने, मानसिक वेदना के आधार पर संस्थान से 1.4-1.4 करोड़ रुपए का मुआवजा मांगा है।