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शिक्षा और नौकरियों में मराठाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी महाराष्ट्र सरकार के कानून पर रोक

शिक्षा और नौकरियों में मराठाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी महाराष्ट्र सरकार के कानून पर रोक

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Wed, 09 Sep 2020 04:06 PM (IST)Updated: Wed, 09 Sep 2020 04:28 PM (IST)
शिक्षा और नौकरियों में मराठाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी महाराष्ट्र सरकार के कानून पर रोक
शिक्षा और नौकरियों में मराठाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी महाराष्ट्र सरकार के कानून पर रोक

नई दिल्‍ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा और नौकरियों में मराठाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी महाराष्ट्र सरकार के साल 2018 के कानून (2018 Maharashtra law) के अमल पर रोक लगा दी है। सर्वोच्‍च अदालत (Supreme Court) की जस्टिस एलएन राव (Justice LN Rao) की अध्‍यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने मराठा आरक्षण का मसला संविधान पीठ को सौंप दिया। अब मुख्‍य न्यायाधीश एसए बोबड़े नई पीठ का गठन करेंगे। बता दें कि कई याचिकाओं में शिक्षा और नौकरियों में मराठाओं को आरक्षण देने वाले कानून की वैधता को चुनौती दी गई है। बड़ी पीठ अब इसी आरक्षण के प्रावधान पर विचार करेगी। 

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हालांकि शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि जिन लोगों ने पहले 2018 कानून (2018 Maharashtra law) का लाभ ले लिया है उन्‍हें परेशान नहीं किया जाएगा। मालूम हो कि महाराष्‍ट्र में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) अधिनियम 2018 को नौकरियों और शिक्षा में मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण देने के लिए लागू किया गया था। बॉम्बे हाई कोर्ट ने पिछले साल जून में कानून को बरकरार रखते हुए कहा था कि 16 फीसद आरक्षण उचित नहीं है... इसको रोजगार में 12 प्रतिशत और एडमिशन में 13 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। बाद में इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। 

बीते 27 जुलाई को महाराष्‍ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिया था कि जनस्वास्थ्य, मेडिकल शिक्षा और अनुसंधान को छोड़कर 12 फीसद मराठा आरक्षण के आधार पर भर्ती प्रक्रिया को 15 सितंबर तक आगे नहीं बढ़ाया जाएगा। बाद में महाराष्ट्र सरकार ने मराठा आरक्षण की वकालत करते हुए सुप्रीम कोर्ट से आरक्षण की तय 50 फीसद की अधिकतम सीमा पर पुनर्विचार किये जाने की मांग की थी। राज्य सरकार ने कहा कि आरक्षण की अधिकतम सीमा करीब 30 साल पहले नौ न्यायाधीशों की पीठ ने इन्द्रा साहनी फैसले में व्यवस्था देते हुए तय की थी। अब इस पर पुनर्विचार होना चाहिए। आरक्षण की अधिकतम सीमा पर पुनर्विचार का मामला 11 न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाना चाहिए क्योंकि राज्य की 70-80 फीसद आबादी पिछड़ी है।


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