गैर पारसी से शादी करने पर समुदाय ने मां-बेटे को निकाला, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब
गैर पारसी पुरुष से शादी करने पर मां-बेटे को समाज और धर्म से बहिष्कृत करने के फैसले को चुनौती दी गई है। पारसी समुदाय ने नस्ल बिगड़ने के अंदेशे से मां-बेटे को समुदाय से बाहर घोषित कर दिया है।
नई दिल्ली, आइएएनएस। मुंबई की पारसी महिला और उसके सात साल के बच्चे से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। मामले में गैर पारसी पुरुष से शादी करने पर मां-बेटे को समाज और धर्म से बहिष्कृत करने के फैसले को चुनौती दी गई है। पारसी समुदाय ने नस्ल बिगड़ने के अंदेशे से मां-बेटे को समुदाय से बाहर घोषित कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी ने मां और बेटे की संयुक्त याचिका पर नोटिस जारी किया है। याचिका में कहा गया है कि पारसी समुदाय एक नस्ल और समान गुणों वाले लोगों का समूह है। किसी धर्म को मानना हर व्यक्ति का मूल अधिकार है। यह अधिकार हर भारतीय नागरिक को हासिल है। ऐसे में किसी गैर पारसी से शादी करने पर उन्हें पारसी धर्म से कैसे निकाला जा सकता है।
पीठ ने याचिका के अध्ययन में पाया कि मामला के तथ्य कुछ हद तक वैसे ही हैं जैसे कि सबरीमाला मामले में थे। उस पर शीर्ष न्यायालय की बड़ी पीठ ने फैसला सुनाया था। सबरीमाला मंदिर से संबंधित याचिका में कहा गया था कि महिला को भी अपनी पसंद वाली जगह पर पूजा का अधिकार है। इसके लिए उसे समाज या धर्म से बहिष्कृत किए जाने का डर नहीं होना चाहिए।
इस याचिका में भी महिला के अधिकार को परिभाषित करने की मांग की गई है, जिसके तहत वह अपने धर्म में रहते हुए किसी दूसरे धर्म वाले पुरुष शादी कर सकती है या नहीं। मामले में तर्को को सुनने के बाद पीठ ने याचिका पर सुनवाई करने का निर्णय लिया है। याचिका में कहा गया है कि पारसी समुदाय खुद को आर्य समेत किसी भी अन्य समुदाय से श्रेष्ठ मानता है, इसलिए वह अन्य समुदाय में होने वाली शादी से अपनी नस्ल खराब होने का अंदेशा रखता है। इसलिए उस शादी को स्वीकार नहीं करता।