'न्यायिक ढांचे के बजाय अपने घर बना रहे....', सुप्रीम कोर्ट की पंजाब सरकार को फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को न्यायिक ढांचे के निर्माण की अनदेखी कर अपने अधिकारियों के लिए आवास बनाने पर कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने सरकार की प्राथमिकता पर सवाल उठाते हुए नाराजगी जताई कि न्यायिक कार्यों के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे के निर्माण को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है। अदालत ने चेतावनी दी है कि यदि न्यायिक ढांचे के निर्माण में तेजी नहीं लाई गई, तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट। (पीटीआई)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार को न्यायपालिका के लिए आवश्यक ढांचा नहीं बनाने और इसके बजाय अपने आलीशान घर बनाने के लिए फटकार लगाई है। साथ ही राज्य सरकार पर केंद्रीय अनुदानों के दुरुपयोग का भी आरोप लगाया।
जस्टिस सूर्यकांत और जायमाल्या बागची की पीठ ने राज्य सरकार को बार-बार पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों के बावजूद बुनियादी ढांचा नहीं बनाने की आलोचना की और यह भी बताया कि न्यायपालिका के लिए केंद्र द्वारा प्रदान किए गए फंड का उपयोग राज्य के अधिकारियों द्वारा कहीं और किया जा सकता है।
जस्टिस कांत ने कहा, ''यदि हम जांच का आदेश देते हैं, तो हमें पता चलेगा कि उन्होंने केंद्रीय अनुदान का उपयोग अन्य उद्देश्यों के लिए किया है। वे अपने लिए घर बना रहे हैं, लेकिन अदालतें और न्यायिक ढांचा नहीं बना पा रहे हैं।''
सर्वोच्च न्यायालय पंजाब सरकार की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेशों को चुनौती दी गई थी, जिसमें राज्य के नए बनाए गए मालेरकोटला जिले में न्यायिक अधिकारियों के लिए उचित न्यायिक ढांचा और ट्रांजिट आवास बनाने का निर्देश दिया गया था।
पंजाब सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी से जस्टिस कांत ने कहा, ''आपको नहीं पता कि पंजाब में क्या हो रहा है। मैं राज्य को बहुत अच्छी तरह जानता हूं। भले ही केंद्र द्वारा फंड स्वीकृत किए जाएं, वे एक साइट भी आवंटित नहीं करते। उनके पास अन्य चीजों पर खर्च करने के लिए पर्याप्त पैसा है।''
जस्टिस बागची ने कहा कि अदालत का ढांचा अक्सर केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं पर निर्भर करता है और राज्य के योगदान या तो विलंबित होते हैं या मोड़ दिए जाते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि न्यायपालिका के लिए राज्य और केंद्रीय बजट में कुछ न्यूनतम आवंटन होना चाहिए। वर्तमान में यह जीडीपी का एक प्रतिशत भी नहीं है। सिंघवी ने कहा कि वह राज्य सरकार से परामर्श करना चाहेंगे और उच्च न्यायालय में अपील वापस लेने की अनुमति मांगी।
उन्होंने कहा, ''हम उच्च न्यायालय के समक्ष विस्तृत स्थिति रिपोर्ट पेश करेंगे और समय विस्तार की मांग करेंगे।''
(समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

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