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फारूक अब्दुल्ला को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, कोर्ट ने कहा- देशद्रोह नहीं सरकार से अलग राय रखना

जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला(Farooq Abdullah) को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए कहा कि सरकार से अलग राय रखना देशद्रोह नहीं है।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Wed, 03 Mar 2021 12:45 PM (IST)Updated: Wed, 03 Mar 2021 01:02 PM (IST)
फारूक अब्दुल्ला को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, कोर्ट ने कहा- देशद्रोह नहीं सरकार से अलग राय रखना
जम्मू कश्मीर के पूर्व CM फारूक अब्दुल्ला को SC से बड़ी राहत। (फोटो: दैनिक जागरण)

नई दिल्ली, एएनआइ। जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के एक मामले को लेकर दाखिल एक याचिका को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट में जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ देशद्रोह कार्यवाही करने के आदेश जारी करने के लिए याचिका दाखिल की गई थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि 'सरकार की राय से अलग और असहमति वाली राय रखने वाले विचारों की अभिव्यक्ति को देशद्रोह नहीं कहा जा सकता।

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न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने पूर्व जम्मू-कश्मीर के सीएम फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि सरकार की राय से अलग विचारों की अभिव्यक्ति को देशद्रोही नहीं कहा जा सकता है।

इस याचिका में मांग की गई थी कि फारूक अब्दुल्ला के बयान को देखते हुए उन पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ दाखिल देशद्रोह का मुकदमा चलाने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। इसके साथ ही याचिकाकर्ता के ऊपर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।

याचिका किसने डाली और क्या कहा ?

सुप्रीम कोर्ट में रजत शर्मा नाम के एक शख्स ने याचिका दाखिल की थी। इस याचिका में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 के खिलाफ बयान देने पर फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ देशद्रोह की कार्यवाही करने के आदेश देने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि फारूक अब्दुल्ला ने देश विरोधी और देशद्रोही कार्यवाही की है। उनके खिलाफ ना केवल गृह मंत्रालय को कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए बल्कि उनकी संसद सदस्यता भी रद्द की जाए। इसके साथ ही याचिका में कहा गया  कि अगर उनको संसद सदस्य के तौर पर जारी रखा जाता है तो इसका अर्थ है कि भारत में देश-विरोधी गतिविधियों को स्वीकार किया जा रहा है और ये देश की एकता को नुकसान पहुंचाएगा।


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