एमपी-एमएलए के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें जरूरी
सुप्रीम कोर्ट को बताया कि देश के 18 राज्यों के प्रत्येक जिले में मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का गठन किया जाना चाहिए।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट को गुरुवार को बताया कि देश के 18 राज्यों के प्रत्येक जिले में मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का गठन किया जाना चाहिए।
वरिष्ठ वकील और न्याय मित्र (एमिकस क्यूरी) विजय हंसारिया ने सर्वोच्च अदालत को बताया कि उसके 4 दिसंबर के निर्देशों के मुताबिक बिहार और केरल में हाई कोर्ट ने अपने-अपने राज्यों में प्रत्येक जिले में विशेष अदालतों के गठन के लिए दिशा निर्देश जारी किए हैं। उन्होंने कहा कि इन विशेष अदालतों को सांसदों और विधायकों के मामलों को प्राथमिकता के आधार पर सुनने के लिए कहा जा सकता है।
हंसारिया ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू व कश्मीर, झारखंड, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, त्रिपुरा और उत्तराखंड में सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई के लिए कोई विशेष अदालतें नहीं हैं। सामान्य अदालतों में ही ऐसे मामलों की सुनवाई होती है।
बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर आपराधिक मामलों में सजा पाने वाले नेताओं पर आजीवन पाबंदी और ऐसे मामलों पर त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन की मांग की है।
उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हंसारिया को न्याय मित्र नियुक्त किया था। हंसारिया ने सुप्रीम कोर्ट से इन 18 राज्यों के हाई कोर्ट को अपने यहां सत्र और अन्य अदालतों में उनकी क्षमता के मुताबिक नेताओं के खिलाफ मामलों को आवंटित करने के लिए निर्देश देने की अपील भी की।