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बच्चों को बेचे जाने से ज्यादा खराब कुछ नहीं हो सकता: सुप्रीम कोर्ट

ये नोटिस मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिये।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Thu, 04 Jan 2018 10:31 PM (IST)Updated: Thu, 04 Jan 2018 10:31 PM (IST)
बच्चों को बेचे जाने से ज्यादा खराब कुछ नहीं हो सकता: सुप्रीम कोर्ट
बच्चों को बेचे जाने से ज्यादा खराब कुछ नहीं हो सकता: सुप्रीम कोर्ट

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। बच्चों को बेचे जाने से ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण और कुछ नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों की तस्करी के मामले में इन टिप्पणियों के साथ देश भर के अनाथालयों के प्रबंधन और बच्चों की तस्करी पर सभी राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

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ये नोटिस मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिये। याचिका में पश्चिम बंगाल के अनाथालय में बच्चों की तस्करी के मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई है। बाल आयोग की ओर से पेश एएसजी तुषार मेहता ने कहा कि हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग को मामले में जांच करने से रोक दिया है जबकि कानूनन राष्ट्रीय आयोग को ऐसे मामले में जांच करने का अधिकार है। पीठ ने याचिका का दायरा बढ़ाते हुए कहा कि ये मामला बच्चों की तस्करी से जुड़ा है। ये राष्ट्रीय चिंता का विषय है इसलिए इस पर सुनवाई होनी चाहिए। कोर्ट ने सभी राज्यों को नोटिस जारी करते हुए अपने आदेश में उन प्रसिद्ध पंक्तियों को दर्ज किया जिसमें कहा गया है कि 'चाइल्ड इज दा फादर आफ मैन'।

कोर्ट ने बच्चों पर एक कविता उद्धत करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एमसी मेहता की बाल मजदूरी से जुड़ी एक याचिका पर आदेश में कहा था कि 'बच्चों को फैक्ट्री में काम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जहां खतरा होता है।' कोर्ट ने मौजूदा स्थिति की बात करते हुए कहा कि बच्चों को बेचे जाने से खराब कुछ नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि देश का भविष्य बच्चों के चरित्र और उनके भविष्य पर निर्भर करता है और बच्चों का भविष्य सुरक्षित रखना सरकार की जिम्मेदारी है। पीठ ने कहा कि एक बच्चे को अनाथालय के प्रभारी की इच्छा पर नहीं छोड़ा जा सकता। बच्चा देश का भविष्य होता है।

पीठ ने कहा कि पूरे देश में अनाथालयों के संचालन और उनके प्रबंधन के तौर तरीकों के बारे में एक समग्र नजरिया अपनाए जाने की जरूरत है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता बाल आयोग से कहा कि वह अपनी याचिका में संशोधन कर सभी राज्यों को पक्षकार बनाए। याचिका संशोधित होने के बाद रजिस्ट्री सभी राज्यों को ईमेल के जरिये नोटिस भेजेगी। और राज्य उसका दो सप्ताह में जवाब देंगे। कोर्ट ने मानवाधिकार अदालतों के गठन का जिक्र करते हुए कहा कि आगे मामले पर सुनवाई के दौरान इस पर भी विचार किया जाएगा। कोर्ट इस मामले में 22 जनवरी को फिर सुनवाई करेगा। इस दौरान कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश और सुनवाई पर अंतरिम रोक लगा दी है।


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