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शर्तें लगाकर व्यर्थ ना करें दिव्यांगों को मिलने वाला लाभ, सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षक की वरिष्ठता घटाने का आदेश किया रद

Supreme Court on benefit of disabled persons सुप्रीम कोर्ट ने शारीरिक रूप से दिव्यांग कर्मचारियों को मिलने वाला लाभ लेने के लिए लगाई जाने वाली शर्तों पर चिंता जताई है। जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्‍या बातें कही. ...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Fri, 19 Aug 2022 11:00 PM (IST)Updated: Sat, 20 Aug 2022 01:16 AM (IST)
शर्तें लगाकर व्यर्थ ना करें दिव्यांगों को मिलने वाला लाभ, सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षक की वरिष्ठता घटाने का आदेश किया रद
सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांग कर्मचारियों की परेशानियों पर चिंता व्यक्त की है।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शारीरिक रूप से दिव्यांग कर्मचारियों की परेशानियों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि दिव्यांगों को मिलने वाला लाभ लेने के लिए ऐसी शर्त नहीं लगाई जा सकती, जिससे वह निरर्थक हो जाए। दिव्यांग कर्मचारी को सर्कुलर के तहत नियुक्ति स्थान चुनने के लाभ से वरिष्ठता घटने की शर्त लगा कर वंचित नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी सर्कुलर का लाभ लेकर ट्रांसफर लेने वाले दिव्यांग शिक्षक की वरिष्ठता घटाने का आदेश रद कर दिया।

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शिक्षक की मूल वरिष्ठता बहाल करे

अदालत ने राजस्थान सरकार को निर्देश दिया कि वह शिक्षक की मूल वरिष्ठता बहाल करे। यह आदेश न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और जेके माहेश्वरी की पीठ ने राजस्थान के दिव्यांग शिक्षक की याचिका पर दिया। कोर्ट ने दिव्यांगों के अधिकारों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का जिक्र किया है। इसे भारत ने भी अंगीकार किया है। कोर्ट ने कहा कि राज्य का दायित्व है कि वह संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को प्रभावी ढंग से लागू करे।

बराबरी के अधिकार के हकदार

शारीरिक रूप से अशक्त लोगों के लिए लाए गए नियम, कानून, आदेश और सर्कुलर 'दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन' के अनुकूल होने चाहिए। इसके अलावा दिव्यांग जन संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत प्राप्त बराबरी के अधिकार के हकदार हैं। अनुच्छेद 19 के तहत व्यक्ति को कोई रोजगार और व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता है। अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में गरिमापूर्ण ढंग से जीवन जीने का अधिकार शामिल है।

ऐसी शर्त नहीं लगाई जा सकती

कोर्ट ने कहा, दिव्यांग व्यक्ति आसानी से आ-जा नहीं सकता। उसकी इन बाधाओं पर विचार करते हुए राज्य सरकार (राजस्थान) ने पसंद की जगह नियुक्ति देने का सर्कुलर निकाला। सरकारी आदेश के जरिये दिव्यांग को मिलने वाला लाभ लेने के लिए ऐसी शर्त नहीं लगाई जा सकती, जिससे वह निरर्थक हो जाए।

दिव्यांग के प्रति ज्यादा संवेदनशील होना चाहिए

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट को दिव्यांग के प्रति ज्यादा संवेदनशील होना चाहिए। हाई कोर्ट ने सामान्य व्यक्ति और अशक्त व्यक्ति के मूवमेंट में अंतर पर गौर नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करने का हाई कोर्ट का आदेश रद कर दिया। याचिकाकर्ता की वरिष्ठता घटाने का 11 सितंबर, 2007 का आदेश भी रद कर दिया। राजस्थान सरकार को उसकी वरिष्ठता मूल स्थिति से बहाल करने को कहा।

क्या है मामला

शारीरिक रूप से दिव्यांग नेतराम यादव 1993 में दिव्यांग की ओबीसी श्रेणी में वरिष्ठ शिक्षक चयनित हुआ। उसे बीकानेर के हनुमानगढ़ दीपलाना में नियुक्ति मिली। उसका घर अलवर में था, जो नौकरी की जगह से करीब 550 किलोमीटर दूर था। राजस्थान सरकार ने 20 जुलाई, 2000 को एक सर्कुलर निकाला। इसमें दिव्यांगों को नियुक्ति के समय आवेदन किए गए स्थान या उसके आसपास तबादला देने की बात थी। याचिकाकर्ता के आवेदन पर उसका स्थानांतरण अलवर के पास हो गया। इससे उसकी वरिष्ठता घट गई।

हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका

2016 में नेतराम को जूनियर लेक्चरर पद पर प्रोन्नति मिली। 2017 में प्रधानाध्यापक पद पर प्रोदन्नति के लिए अस्थाई पात्रता सूची प्रकाशित हुई। इसमें उसका नाम नहीं था। उसने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। हाई कोर्ट में सरकार ने कहा कि किसी कर्मचारी को उसके अनुरोध पर स्थानांतरित किया जाता है, तो उसे जिले के सबसे जूनियर व्यक्ति के नीचे रखे जाने का नियम है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह नियम जिलेवार वरिष्ठता को प्रभावित करता है, लेकिन राज्य स्तरीय वरिष्ठता पर कोई परिवर्तन नहीं होगा।


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