दिल्ली दंगों के आरोपितों को जमानत देने पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, नजीर नहीं माना जाएगा दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला
दिल्ली पुलिस की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हाई कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि हाई कोर्ट ने अभियुक्तों को जमानत देते हुए आदेश में यूएपीए कानून को ही पलट दिया। आदेश में तो एक प्रकार से आरोपितों को बरी कर दिया गया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली दंगों के तीन आरोपितों देवांगना कालिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत देते हुए हाई कोर्ट में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (UAPA) की व्याख्या पर सशंकित सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके व्यापक परिणाम हो सकते हैं। लिहाजा यह मामला महत्वपूर्ण है और इस पर कोर्ट विचार करेगा। वहीं, यह भी आदेश दिया कि हाई कोर्ट के फैसले को नजीर न माना जाए। यानी जिस आधार पर फैसला हुआ है, कोई भी पक्षकार अदालत में उसका हवाला नहीं दे सकेगा। शीर्ष अदालत ने तीनों आरोपितों को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब भी मांगा है। साथ ही हाई कोर्ट के आदेश से जमानत पाकर बाहर आ चुके तीनों आरोपित फिलहाल बाहर रहेंगे क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उस मुद्दे पर दखल नहीं दिया है।
ये आदेश जस्टिस हेमंत गुप्ता और वी. रामासुब्रमण्यम की पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली दिल्ली पुलिस की याचिका पर सुनवाई के बाद दिए। हाई कोर्ट ने गत 15 जून को तीनों अभियुक्तों देवांगना, नताशा और आसिफ को जमानत देते हुए अपने फैसले में मामले को लेकर तीखी टिप्पणियां की थीं। दिल्ली पुलिस की याचिका पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जबकि मामले पर जुलाई के तीसरे सप्ताह में सुनवाई होगी।
हाई कोर्ट ने तो एक तरह से आरोपितों को बरी कर दिया : मेहता
दिल्ली पुलिस की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हाई कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि हाई कोर्ट ने अभियुक्तों को जमानत देते हुए अपने आदेश में यूएपीए कानून को ही पलट दिया। आदेश में तो एक प्रकार से आरोपितों को बरी कर दिया गया है। मेहता ने कहा कि हिंसा में 53 लोग मारे गए जिसमें ज्यादातर पुलिसकर्मी थे और 700 से ज्यादा घायल हुए। ये हिंसा उस वक्त हुई थी जब अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आए थे। हाई कोर्ट ने आदेश में कहा कि सरकार विरोध प्रदर्शन दबाने की चिंता में प्रदर्शन के संवैधानिक अधिकार और आतंकवादी गतिविधियों में फर्क नहीं कर पा रही है। विरोध प्रदर्शन और आतंकी गतिविधियों की रेखा धुंधली हो रही है। मेहता ने कहा कि क्या प्रदर्शन के अधिकार में लोगों को मारने और बम फेंकने का अधिकार होता है। बहुत से लोग मारे गए और हाई कोर्ट कह रहा है कि हिंसा नियंत्रित हो गई थी और इस मामले में यूएपीए लागू नहीं होगा। यानी अगर कोई बम प्लांट करता है और बम निरोधक दस्ता उसे निष्कि्रय कर देता है तो क्या अपराध की तीव्रता कम हो जाएगी। मेहता की दलीलों पर पीठ ने कहा, हम आपसे सहमत हैं कि यह मामला महत्वपूर्ण है और इसके व्यापक परिणाम हो सकते हैं इसलिए कोर्ट इस पर विचार करेगा। नोटिस जारी किया जा रहा है और दूसरे पक्ष को भी सुना जाएगा।
पीठ ने कहा, हाई कोर्ट में यूएपीए कानून को नहीं दी गई थी चुनौती
अभियुक्तों की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल ने कहा, इसमें संदेह नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट को यूएपीए की व्याख्या और उसके परिणामों पर विचार करना चाहिए। लेकिन यहां हम जमानत अर्जी के मुद्दे पर विचार कर रहे हैं। सिब्बल की दलीलों पर पीठ ने कहा, हम आश्चर्यचकित हैं कि जमानत अर्जी पर 100 पेज का फैसला दिया गया और उसमें पूरे कानून पर चर्चा हुई है। पीठ ने कहा बहुत से सवाल उठते हैं क्योंकि हाई कोर्ट में यूएपीए कानून की वैधानिकता को चुनौती नहीं दी गई थी। हाई कोर्ट के सामने जमानत अर्जी थी।
मेहता बोले, हाई कोर्ट के फैसले में ऐसे कई मुद्दे जिन पर विचार जरूरत
तुषार मेहता ने कहा कि अभियुक्त जमानत के बाद बाहर आ चुके हैं उन्हें बाहर रहने दिया जाए, लेकिन आदेश पर अंतरिम रोक लगाई जाए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के रोक आदेश के अपने मायने होते हैं। उन्होंने कहा, हाई कोर्ट का कहना है कि प्रदर्शन के पीछे यह विश्वास था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) एक समुदाय के खिलाफ है। अगर ऐसा माना जाएगा तो पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या करने वाली महिला ने भी इस विश्वास के साथ ऐसा किया कि एक समुदाय के साथ नाइंसाफी हुई थी। मेहता ने कहा कि हाई कोर्ट के फैसले में बहुत से ऐसे मुद्दे हैं जिन पर विचार किए जाने की जरूरत है।