सुप्रीम कोर्ट ने किया साफ, केवल आंतरिक गड़बड़ी के आधार पर लागू नहीं किया जा सकता है आपातकाल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देश में अब सिर्फ आंतरिक गड़बड़ी के आधार पर आपातकाल लागू नहीं किया जा सकता है। इसे देश की सुरक्षा को खतरे में डालने वाले सशस्त्र विद्रोह (armed rebellion) की सीमा तक पहुंचना चाहिए। पढ़ें यह रिपोर्ट...
नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को कहा कि आपातकाल के प्रावधानों में उनका दुरुपयोग रोकने के संवैधानिक संशोधन आपातकाल की ज्यादतियों से हासिल अनुभवों का परिणाम हैं। आपातकाल ने दिखाया कि अनियंत्रित शक्तियां और बेलगाम विवेकाधिकार आजादी का विनाश करने के लिए अनुकूल हालात पैदा करते हैं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने कहा कि अनुच्छेद-352 (emergency powers under Article 352) के तहत आपातकालीन शक्तियों को सीमित करने वाले 1978 के 44वें संविधान संशोधन में 'आंतरिक गड़बड़ी' को 'सशस्त्र विद्रोह' में तब्दील कर दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि अब सिर्फ आंतरिक गड़बड़ी के आधार पर आपातकाल लागू नहीं किया जा सकता। इसे देश की सुरक्षा को खतरे में डालने वाले सशस्त्र विद्रोह (armed rebellion) की सीमा तक पहुंचना चाहिए। गुजरात सरकार की अधिसूचनाओं को चुनौती देने वाली याचिका पर अपने फैसले में पीठ ने कहा कि इतिहास (बहुत पुराना नहीं) से सीखे पाठ हमें चेताते हैं कि इस तरह के कानून में गंभीर दुरुपयोग की आशंका होती है। शीर्ष अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति ने देश में आपातकाल लागू करने के लिए अनुच्छेद-352 (emergency powers under Article 352) के तहत प्राप्त शक्तियों का तीन बार इस्तेमाल किया है।
शीर्ष अदालत (Supreme Court) ने कहा कि पहली बार 1962 में भारतीय क्षेत्र पर चीनी आक्रामण के कारण इसे लागू किया गया था जिसे 1968 में हटा लिया गया था। 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के समय आपातकाल (Emergency) घोषित किया गया था, यह लागू ही था कि 25 जून, 1975 को राष्ट्रपति ने एक और आपातकाल की घोषणा (Emergency) कर दी जिसमें कहा गया था कि आंतरिक गड़बडि़यों (internal disturbance) की वजह से देश की सुरक्षा खतरे में है। बाद में इन दोनों घोषणाओं को मार्च, 1977 में वापस ले लिया गया था। गौरतलब है कि आपातकाल को लेकर राजनीतिक दल अक्सर कांग्रेस को घेरते रहे हैं।