पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में खनन का अधिकार किसी को भी नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में खनन का अधिकार न तो केंद्र सरकार को है और न ही राज्य सरकार को। शीर्ष अदालत ने कोयला खदानों की नीलामी के केंद्र के फैसले के खिलाफ झारखंड सरकार की याचिका पर यह टिप्पणी की।
नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में खनन का अधिकार न तो केंद्र सरकार को है और न ही राज्य सरकार को। शीर्ष अदालत ने व्यवसायिक उपयोग के लिए कोयला खदानों की नीलामी के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ झारखंड सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया केंद्र सरकार को राज्य में कोयला खदानों को नीलाम करने का अधिकार है परंतु, नीलाम किए जाने वाला क्षेत्र, पर्यावरण के प्रति संवेदनशील जोन में आता है या नहीं, यह पता लगाने के लिए अदालत विशेषज्ञों की टीम भेज सकती है।
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार से हलफनामा दायर एक हफ्ते के भीतर यह बताने को कहा है कि जिस इलाके को लेकर चुनौती दी गई है, क्या वह पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र में आता है या नहीं। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, 'फिलहाल हम यह तय करने नहीं बैठे हैं कि खनन का अधिकार केंद्र को है या झारखंड सरकार को। अगर खनन वाला क्षेत्र पर्यावरण के प्रति संवेदनशील इलाके में आता है तो वहां न तो केंद्र को और न ही राज्य सरकार को खनन का अधिकार है।'
पीठ ने कहा कि हम यह तय करने के लिए विशेषज्ञ नहीं हैं कि क्या इलाका पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र है या नहीं। हम इसका पता लगाने के लिए विशेषज्ञों की टीम भेज सकते हैं। झारखंड सरकार के वकीलों एफएस नरीमन और अभिषेक मनु सिंघवी ने नीलामी का विरोध किया और क्षेत्र को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील जोन बताया। सिंघवी ने कहा कि जिस इलाके में कोयला खदान की नीलामी की गई है, वहां बड़ी संख्या में आदिवासी रहते हैं और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील इलाका है।
इस पर अदालत ने सिंघवी से यह साबित करने के लिए कहा कि संबंधित क्षेत्र पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र है। केंद्र सरकार की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि संबंधित इलाका पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र में नहीं आता और उन्होंने इस संबंध में हलफनामा दायर करने की भी पेशकश की। इस पर पीठ ने केंद्र से एक हफ्ते के भीतर हलफनामा दायर करने को कहते हुए सुनवाई दो हफ्ते के लिए टाल दी। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार की याचिका पर 14 जुलाई को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था।