चढ़ावे का इस्तेमाल आतंकवाद और कैसिनों में होता है तो कानून कर सकता है इसे नियंत्रित : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि चढ़ावे का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए और कैसिनो चलाने के लिए होता है तो कानून इसे नियंत्रित कर सकता है।
नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मंदिरों में चढ़ावा देना धार्मिक गतिविधि हो सकती है। लेकिन अगर इस धन का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए और कैसिनो चलाने के लिए होता है, तो कानून इसे नियंत्रित कर सकता है। अदालत ने कहा कि नर बलि और सती की पुरानी प्रथा कानून के तहत हत्या है और इसे आवश्यक धार्मिक प्रथा के आधार पर नहीं बचाया जा सकता है।
उच्चतम न्यायालय की नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने सोमवार को धार्मिक स्वतंत्रता के दायरे से संबंधित मुद्दों पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। न्यायालय इस मुद्दे पर भी विचार कर रहा है कि क्या कोई व्यक्ति किसी आस्था विशेष से संबंधित नहीं होने के बाद भी उस धर्म की धार्मिक परंपराओं पर सवाल उठाते हुए जनहित याचिका दायर कर सकता है? प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने धर्म और विभिन्न पंथों से संबंधित मौलिक अधिकारों के बारे में सात सवाल तैयार किए हैं। यह पीठ इन मुद्दों से निबटने के लिए एक न्यायिक नीति भी तैयार करेगी।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बहस शुरू करते हुए संविधान के अंतर्गत धार्मिक रिवाजों और उनके प्रचार के मौलिक अधिकारों के बारे में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि सरकार और न्यायालय को धर्म के पंथनिरपेक्ष हिस्से को नियंत्रित करने का अधिकार है। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति आर भानुमति, अशोक भूषण, एल नागेश्वर राव, एमएम शांतनगौदर, एस अब्दुल नजीर, आर सुभाष रेड्डी, बीआर गवई और सूर्यकांत शामिल हैं।
पीठ ने 10 फरवरी को संविधान के तहत धार्मिक स्वतंत्रता और आस्था से संबंधित मुद्दों से जुड़े सात सवाल तैयार किए थे। इनमें यह सवाल भी शामिल है कि क्या कोई व्यक्ति किसी धर्म या धार्मिक पंथ विशेष का सदस्य नहीं होते हुए भी उस धर्म से जुड़ी आस्थाओं पर जनहित याचिका के माध्यम से सवाल उठा सकता है?
एक सवाल है कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत व्यक्तियों के अधिकार और अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक संप्रदाय के अधिकारों के बीच अंतर क्या है? एक और सवाल यह है कि क्या अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक संप्रदाय का अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अलावा अन्य मौलिक अधिकारों के अधीन है।
सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उठे मुद्दे
वकीलों के एक वर्ग ने 14 नवंबर, 2019 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले को अस्पष्ट बताया था। उनका कहना था कि कुछ तथ्यों के बिना इन मुद्दों को तय नहीं किया जा सकता है। इसके बाद इन मुद्दों को नए सिरे से तैयार किया गया है। ये मुद्दे सबरीमाला मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उठे हैं।