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सुप्रीम कोर्ट ने कहा- सजा पर रोक नहीं होने पर दागी चुनाव लड़ने के योग्य नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आपराधिक मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति को दो साल या इससे ज्यादा की सजा होती है और अगर उसकी दोषसिद्धि पर रोक नहीं लगाई जाती है तो ऐसा व्यक्ति जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत चुनाव लड़ने के अयोग्य है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 09 Dec 2020 10:15 PM (IST)Updated: Wed, 09 Dec 2020 10:15 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- सजा पर रोक नहीं होने पर दागी चुनाव लड़ने के योग्य नहीं
एर्नाकुलम संसदीय सीट पर नायर का नामांकन पत्र निरस्त होने का मामला।

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आपराधिक मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति को दो साल या इससे ज्यादा की सजा होती है और अगर उसकी दोषसिद्धि पर रोक नहीं लगाई जाती है तो ऐसा व्यक्ति जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत चुनाव लड़ने के अयोग्य है। शीर्ष अदालत ने 2019 के लोकसभा चुनाव में केरल के एर्नाकुलम संसदीय सीट पर सरिता एस नायर का नामांकन पत्र निरस्त करने के निर्वाचन अधिकारी के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनाए गए फैसले में यह टिप्पणी की।

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एर्नाकुलम संसदीय सीट पर नायर का नामांकन पत्र निरस्त होने का मामला

न्यायालय ने सरिता नायर की अपील खारिज कर दी। निर्वाचन अधिकारी ने केरल में सौर घोटाले से संबंधित आपराधिक मामले में नायर को दोषी ठहराए जाने और उसे सजा होने के तथ्य के मद्देनजर उसका नामांकन पत्र निरस्त कर दिया था। इस सीट पर कांग्रेस के हिबी एडेन विजयी हुए थे। नायर ने वायनाड संसदीय सीट पर कांग्रेस के राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए दाखिल नामांकन पत्र इसी आधार पर निरस्त किए जाने को चुनौती देते हुए अपील दायर की थी। यह अपील दो नवंबर को न्यायालय ने खारिज कर दी थी।

सीजेआई की पीठ ने कहा- सजा के अमल का निलंबन दोषसिद्धि की स्थिति नहीं बदलता

मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे, एएस बोपन्ना और वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने नायर की इस दलील को अस्वीकार कर दिया कि उसका नामांकन पत्र निरस्त करना गलत था, क्योंकि उसकी तीन साल की सजा को अपीली अदालत ने निलंबित कर दिया था। पीठ ने कहा कि सजा के अमल का निलंबन दोषसिद्धि की स्थिति नहीं बदलता है और इसलिए ऐसा व्यक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य ही रहेगा।

सजा के अमल पर रोक लगाना अयोग्यता के दायरे से बाहर निकलने के लिये पर्याप्त नहीं

शीर्ष अदालत ने केरल उच्च न्यायालय की इस व्यवस्था के लिए आलोचना की कि नायर की याचिका में तीन त्रुटियों-उचित सत्यापन, अधूरी प्रार्थना और पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ आरोप-का सुधार नहीं किया जा सकता था। शीर्ष अदालत ने कहा कि ये त्रुटियां सुधार योग्य थीं और याचिकाकर्ता को इन्हें दूर करने का अवसर दिया जाना चाहिए था। न्यायालय ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(3) के प्रावधान से स्पष्ट है कि सजा के अमल पर रोक लगाना अयोग्यता के दायरे से बाहर निकलने के लिये पर्याप्त नहीं है।

जब तक दोषसिद्धि पर रोक नहीं होगी अयोग्यता प्रभावी रहेगी

न्यायालय ने कहा कि सजा के अमल का निलंबन दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389 के संदर्भ में पढ़ना होगा। इस प्रावधान के अंतर्गत सजा नहीं बल्कि सजा पर अमल निलंबित किया गया है। शीर्ष अदालत ने नायर का नामांकन निरस्त करने के निर्वाचन अधिकारी के निर्णय को सही ठहराते हुए कहा कि जब तक दोषसिद्धि पर रोक नहीं होगी, धारा 8(3) के अंतर्गत अयोग्यता प्रभावी रहेगी।


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