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लंबे वक्त से जेल काट रहे कैदियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का सुझाव, कहा- जमानत और रिहाई पर अलग सोच के साथ विचार करे सरकार

लंबे समय से जेल काट रहे विचाराधीन कैदियों को जमानत देने और उनकी रिहाई के बारे में नीति पर विचार करने का सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया। कोर्ट ने कहा कि जो एक बार के ही अपराधी हैं उनकी जमानत और रिहाई पर विचार होना चाहिए।

By Amit SinghEdited By: Published: Fri, 05 Aug 2022 09:12 PM (IST)Updated: Fri, 05 Aug 2022 09:12 PM (IST)
लंबे वक्त से जेल काट रहे कैदियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का सुझाव, कहा- जमानत और रिहाई पर अलग सोच के साथ विचार करे सरकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा अलग सोच के साथ विचार करने की जरूरत

माला दीक्षित, नई दिल्ली। आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर मनाए जा रहे अमृत महोत्सव में लंबे समय से जेल काट रहे विचाराधीन कैदियों को जमानत देने और उनकी रिहाई के बारे में नीति पर विचार करने का सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को सुझाव दिया है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने लंबे समय से जेल काट रहे विचाराधीन कैदियों को जमानत देने और सजा होने के बाद अपीलों पर सुनवाई के इंतजार में दस-दस साल से ज्यादा कैद काट चुके सजायाफ्ता कैदियों की रिहाई के बारे में सुनवाई करते हुए कहा कि कोई हल निकाले।

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कोर्ट ने कहा कि जो एक बार के ही अपराधी हैं यानी आदतन अपराधी नहीं है और उन पर एक से ज्यादा केस नहीं हैं वो अगर आरोपित अपराध में होने वाली अधिकतम सजा का एक बड़ा हिस्सा काट चुके हैं तो उनकी जमानत और रिहाई पर विचार होना चाहिए। यह जेलों की भीड़ कम करने और अदालतों में मुकदमो की संख्या घटाने की दिशा में एक सकारात्मक पहल होगी। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और एमएम सुंद्रेश की पीठ ने ऐसे कैदियों के मामले में सुनवाई के दौरान सुझाव दिए। कोर्ट पिछले करीब दो साल से ऐसे मामलों पर सुनवाई कर रहा है और लगातार हाई कोर्ट व सरकार से इस बाबत कदम उठाने को कह रहा है।

पीठ ने कहा कि उनके आदेश को दो साल बीत चुके हैं कुछ राज्यों की स्थिति में सुधार हुआ है कुछ में नहीं हुआ है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में अभी भी बड़ी संख्या में 20 से 30 साल पुराने क्रिमनल केस लंबित हैं। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार राज्यों सरकारों के साथ इस पर विचार विमर्श करे। कोर्ट ने सुझाव दिया कि जो लोग आरोपित अपराध की अधिकतम सजा का एक तिहाई या 40 फीसद सजा भुगत चुके हैं उन पर गंभीर मामला नहीं है, उनसे अच्छे आचरण का बांड भरा कर उन्हें जमानत दी जा सकती है।

कोर्ट ने कहा कि अगर हर मुकदमे में अपील होगी तो पांच सौ साल तक भी केस खतम नहीं होंगे। मामले पर अलग हट कर अलग सोच के साथ (आउट आफ द बाक्स) विचार किये जाने की जरूरत है। जिन मामलों में सात साल या दस साल की सजा का प्राविधान है और अभियुक्त जेल में हैं एक तिहाई हिस्सा सजा काट चुका है, वहां अच्छे आचरण का बांड भरवा कर उसे रिहाई दी जा सकती है। कोर्ट के सुझावों पर एएसजी ने कहा कि वे इस पर विचार करेंगे। कोर्ट ने कहा कि दो तरह के मामले हैं एक श्रेणी विचाराधीन कैदियों की है और दूसरी श्रेणी उन कैदियों की है जिन्हें निचली अदालत से सजा हो गई है और उच्च अदालत में उनकी अपीलें लंबित हैं और वे जेल काट रहे हैं। ऐसे मामलों में भी एक निश्चित अवधि तक जेल काट लेने पर जमानत दी जानी चाहिए।

तीसरी श्रेणी उम्रकैदियों की है। इन मामलों में अगर दोषी 14 साल कैद काट चुका है तो उसकी प्रिमेच्योर रिहाई और माफी अर्जी पर विचार होना चाहिए। हालांकि कोर्ट ने कहा कि इस सारी चीजों में पीड़त के पक्ष पर भी विचार होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि सरकार इस दिशा में कुछ करेगी। एएसजी ने चार सप्ताह का समय मांगा। कोर्ट ने मामले को 14 सितंबर को फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह बुधवार को इस बारे में एक आदेश दे सकते हैं।

उत्तर प्रदेश में जेल में बंद कैदियों और उनकी लंबित अपीलों के बारे में हाई कोर्ट और राज्य सरकार के आंकड़ों में भिन्नता को देखते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार को इसे ठीक करने का समय दे दिया। लंबे समय से जेल में बंद विचाराधीन कैदियों की रिहाई को लेकर हाल ही में प्रधानमंत्री भी चिंता जता चुके हैं। नेशनल लीगल सर्विस अथारिटी भी अपनी ओर से इस दिशा में प्रयास कर रही है। जो उम्रकैदी 14 साल की जेल काट चुके हैं उनकी प्रिमेच्योर रिहाई की अर्जी पर विचार का एक तंत्र बनाए जाने और उस पर जल्दी विचार की व्यवस्था पर नालसा काम कर रही है। कानून मंत्री ने भी पिछले दिनों कहा था कि इस दिशा में काम हो रहा है।


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