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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सरकार नागरिक संपत्ति हमेशा अपने कब्जे में नहीं रख सकती, जानें क्‍या है पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकारें अनिश्चितकाल तक नागरिकों की संपत्तियों को जब्त करके अपने कब्जे में नहीं रख सकती हैं। ऐसी कोई भी घटना या ऐसा करने की अनुमति देना किसी भी तरह से किसी गैरकानूनी कृत्य से कम नहीं है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 24 Nov 2020 11:01 PM (IST)Updated: Tue, 24 Nov 2020 11:01 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सरकार नागरिक संपत्ति हमेशा अपने कब्जे में नहीं रख सकती, जानें क्‍या है पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सरकारें नागरिकों की संपत्तियों को जब्त करके कब्जे में नहीं रख सकती हैं।

 नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकारें अनिश्चितकाल तक नागरिकों की संपत्तियों को जब्त करके अपने कब्जे में नहीं रख सकती हैं। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ऐसी कोई भी घटना या ऐसा करने की अनुमति देना किसी भी तरह से किसी गैरकानूनी कृत्य से कम नहीं है। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और एस रवींद्र भट की खंडपीठ ने मंगलवार को केंद्र सरकार को बेंगलुरु के बायपन्नहल्ली स्थित चार एकड़ जमीन को तीन महीने के अंदर उसके कानूनी मालिक बीएम कृष्णमूर्ति के किसी वारिस को लौटाने का आदेश देते हुए यह फैसला सुनाया है। 

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यह जमीन करीब 57 सालों से केंद्र सरकार के कब्जे में थी। खंडपीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि वैसे तो संपत्ति का अधिकार संविधान में मौलिक अधिकार नहीं बताया गया है। लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों को अनिश्चितकाल तक नागरिकों की संपत्ति को अपने कब्जे में रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार पर 75 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया जो उसे कृष्णमूर्ति के कानूनी वारिसों को चुकाना पड़ेगा। 

इस फैसले के संबंध में जस्टिस भट ने कहा कि संपत्ति का अधिकार एक बेशकीमती अधिकार है जिसमें आर्थिक स्वतंत्रता की गारंटी हासिल होती है। अदालत ने अपने फैसले में जमीन के लंबे इतिहास का जिक्र करते हुए इस बात का संज्ञान लिया कि केंद्र सरकार ने इस जमीन को 1963 में हासिल किया था। वीके रविचंद्रा और अन्य की ओर से कर्नाटक हाईकोर्ट में दायर याचिका के जरिये केंद्र के जमीन को खाली छोड़ने की इजाजत मांगी गई थी


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