सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यौन अपराध मामलों में एफआइआर में देरी से हौसले बढ़ते हैं अपराधियों के
यौन अपराध के मामलों में मनगढ़ंत बातें मुकदमा दर्ज होने और कार्रवाई में देरी करती हैं। इनसे समाज में गलत संदेश जाता है और अपराध करने की प्रवृत्ति बढ़ती है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। यौन अपराध के मामलों में मनगढ़ंत बातें मुकदमा दर्ज होने और कार्रवाई में देरी करती हैं। इनसे समाज में गलत संदेश जाता है और अपराध करने की प्रवृत्ति बढ़ती है। यह बात मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने यौन अपराध के एक मामले में महिला को बरी करते हुए कही।
नाबालिग लड़की को तीन साल के कारोवास की सजा सुनाई
महिला को हाईकोर्ट ने 1996 के एक मामले में नाबालिग लड़की को एक आदमी के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए दबाव डालने का दोषी मानते हुए तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी। जबकि जमानत पर रिहा का कहना था कि मामले में वह निर्दोष है। उसे जांचकर्ता और लड़की परिजनों ने गलत ढंग से फंसाया था। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ 2011 में सुप्रीम कोर्ट में आई महिला का कहना था कि उसे उस आदमी ने साजिश करके फंसाया था जिसके खिलाफ उसने (महिला ने) पूर्व में दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराया था।
बयानों में विरोधाभास और दोषपूर्ण जांच के चलते महिला को किया बरी
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस कृष्णमुरारी की पीठ ने जांच के दौरान पुलिस के दर्ज बयानों में विरोधाभास और दोषपूर्ण जांच के चलते महिला को बरी करने का फैसला किया। पीठ ने कहा, सरकारी पक्ष ने मामले में दर्ज बयानों और हालातों पर गौर नहीं किया। इसके चलते अपीलकर्ता को संदेह का लाभ नहीं मिल सका। महिला की ओर से कोर्ट में पेश अधिवक्ता दुष्यंत पाराशर घटना के पांच दिन बाद दर्ज एफआइआर में बयानों का विरोधाभास साफ झलक रहा था। बावजूद इसके मामला 24 साथ तक चलता रहा।