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सुप्रीम कोर्ट ने हर शनिवार को उत्तराखंड में वकीलों की हड़ताल को ठहराया गैर-कानूनी

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के तीनों जिलों में हर शनिवार होने वाली वकीलों की हड़ताल को गैर-कानूनी ठहराने वाले हाईकोर्ट के आदेश पर अपनी मुहर लगाई।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Fri, 28 Feb 2020 10:45 PM (IST)Updated: Fri, 28 Feb 2020 10:45 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने हर शनिवार को उत्तराखंड में वकीलों की हड़ताल को ठहराया गैर-कानूनी
सुप्रीम कोर्ट ने हर शनिवार को उत्तराखंड में वकीलों की हड़ताल को ठहराया गैर-कानूनी

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। देश के विभिन्न हिस्सों में आए दिन होने वाली वकीलों की हड़ताल पर सुप्रीम कोर्ट सख्त है। कोर्ट ने उत्तराखंड के तीन जिलों देहरादून, हरिद्वार, और ऊधमसिंह नगर में पिछले 35 सालों से हर शनिवार को होने वाली वकीलों की हड़ताल को गैरकानूनी करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(ए)) की आड़ में हड़ताल और अदालतों के बहिष्कार को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।

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किसी को भी हड़ताल पर जाने का अधिकार नहीं

अभिव्यक्ति की आजादी का यह अधिकार अन्य लोगों के अधिकारों को प्रभावित नहीं कर सकता विशेषतौर पर संविधान मे मिले त्वरित न्याय के अधिकार को प्रभावित नहीं कर सकता। कोर्ट ने कहा कि किसी को भी हड़ताल पर जाने या अदालतों के बहिष्कार का अधिकार नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आदेश का पालन न होना न्यायालय की अवमानना माना जाएगा

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के तीनों जिलों में हर शनिवार होने वाली वकीलों की हड़ताल को गैर-कानूनी ठहराने वाले हाईकोर्ट के आदेश पर अपनी मुहर लगाते हुए कहा है कि हाईकोर्ट के आदेश का पालन किया जाए। आदेश का उल्लंघन कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी और उससे सख्ती से निपटा जाएगा।

कोर्ट ने वकीलों की हड़ताल पर अंकुश लगाने के लिए बार काउंसिलों से मांगे पुख्ता सुझाव 

इतना ही नहीं वकीलों की हड़ताल को गैर-कानूनी ठहराने के सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों और बार काउंसिल आफ इंडिया के 29 सितंबर 2002 के प्रस्ताव के बावजूद देश के विभिन्न हिस्सों में आए दिन होने वाली वकीलों की हड़ताल पर स्वत: संज्ञान लेते हुए न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और एमआर शाह की पीठ ने बार काउंसिल आफ इंडिया और सभी राज्य बार काउंसिलों को नोटिस जारी कर इस पर अंकुश लगाने के लिए पुख्ता सुझाव मांगे हैं। कोर्ट ने सभी से छह सप्ताह में जवाब मांगा है।

देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह जिला अदालतों में 35 वर्षो से हर शनिवार को वकील हड़ताल पर रहते थे

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला उत्तराखंड हाईकोर्ट के 25 सितंबर 2019 के फैसले को चुनौती देने वाली जिला बार एसोसिएशन देहरादून की याचिका खारिज करते हुए सुनाया है। हाईकोर्ट ने उत्तराखंड के देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह जिला अदालतों में पिछले 35 वर्षो से हर शनिवार होने वाली वकीलों की हड़ताल को गैर-कानूनी ठहराते हुए कई दिशा निर्देश जारी किये थे।

देहरादून जिला बार एसोसिएशन ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी थी चुनौती

हाईकोर्ट ने वकीलों को तत्काल प्रभाव से हड़ताल वापस लेने और काम पर लौटने का आदेश देते हुए आदेश का पालन न करने वाले वकीलों के खिलाफ बार काउंसिल को कार्रवाई करने का आदेश दिया था। देहरादून जिला बार एसोसिएशन ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

मुकदमों में देरी का एक कारण वकीलों की बेवजह हड़ताल भी है- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई पर ही छोटी-छोटी बातों पर वकीलों की हड़ताल पर नाराजगी जताई थी। अजीबोगरीब आधार पर वकील अक्सर हड़ताल करते थे जैसे कि पाकिस्तान में स्कूल में बम विस्फोट और नेपाल में भूकम्प पर हड़ताल। कोर्ट ने शुक्रवार को दिये अपने फैसले में कहा है कि पहले भी सुप्रीम कोर्ट अपने फैसलों में कह चुका है कि त्वरित न्याय अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (स्वतंत्रता) के मौलिक अधिकार का हिस्सा है। कोर्ट ने कहा कि कृष्णकांत ताम्रकर के केस में कोर्ट कह चुका है कि मुकदमों में देरी का एक कारण वकीलों की बेवजह की हड़ताल भी है। विधि आयोग की 266वीं रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट वकीलों की हड़ताल को गैरकानूनी ठहरा चुका है इसलिए हड़ताल पर जाना न्यायालय की अवमानना है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मामला बहुत चौकाने वाला है

कोर्ट ने उत्तराखंड के मामले में कहा कि मामला बहुत चौकाने वाला है हर महीने चार दिन वकील हड़ताल पर रहते हैं अगर इन दिनों काम हो तो त्वरित न्याय के उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है। हर केस के जल्द निपटारे में मदद मिलेगी। कोर्ट ने कहा कि त्वरित न्याय मौलिक अधिकार है। यह उन लोगों के हित मे होगा जो जेल में बंद हैं और अपने मुकदमें के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि जब पूरी संस्था मुकदमों के ढेर की समस्या का सामना कर रही हो तो ऐसे में हर महीने चार दिन की हड़ताल कैसे झेली जा सकती है।

कोर्ट ने खारिज की बार एसोसिएशन की दलीलें 

कोर्ट ने एसोसिएशन की अभिव्यक्ति की आजादी के तहत हड़ताल को सही बता रही बार एसोसिएशन की दलीलें खारिज करते हुए कहा कि यह अधिकार जस्टिस डिलीवरी सिस्टम और मुवक्किलों के त्वरित न्याय के अधिकार की कीमत पर नहीं हो सकता। इस अधिकार के तहत हड़ताल पर जाने और अदालतों का बहिष्कार करने को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता। इसलिए उत्तराखंड के तीनों जिलों में हर शनिवार हड़ताल और अदालतों का बहिष्कार कतई ठीक नहीं है। हाईकोर्ट का आदेश पूरी तरह सही है और उसका पालन होना चाहिए। आदेश का पालन न होना न्यायालय की अवमानना मानी जाएगी।

बार काउंसिल सुनिश्चित करे कि वकील किसी तरह का गैर-पेशेवर व्यवहार न करें

फैसले में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसले वकीलों की हड़ताल के बारे में सख्त चेतावनी जारी होने के बावजूद लगता है कि संदेश नहीं पहुंचा। कोर्ट के फैसले और बार काउंसिल के प्रस्ताव के बावजूद बार काउंसिल आफ इंडिया और राज्य बार काउंसिल की ओर से इस पर रोक लगाने के लिए कोई पुख्ता कदम नहीं उठाए गए। कोर्ट ने कहा कि बार काउंसिल का कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि वकील किसी तरह का गैर-पेशेवर व्यवहार न करें।


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