कोलेजियम व्यवस्था को लेकर सुप्रीम कोर्ट की दो टूक, कहा- बेपटरी नहीं की जानी चाहिए वर्तमान प्रणाली
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि कुछ व्यस्त लोगों के बयानों के आधार पर वर्तमान कोलेजियम प्रणाली को बपटरी नहीं किया जाना चाहिए। अदालत ने जोर देकर कहा कि शीर्ष अदालत सर्वाधिक पारदर्शी संस्थानों में से एक है।
नई दिल्ली, प्रेट्र: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि 'कुछ व्यस्त लोगों' के बयानों के आधार पर वर्तमान कोलेजियम प्रणाली को बपटरी नहीं किया जाना चाहिए। अदालत ने जोर देकर कहा कि शीर्ष अदालत सर्वाधिक पारदर्शी संस्थानों में से एक है। कोलेजियम प्रणाली को लेकर न्यायपालिका में विभाजन और सरकार के साथ विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शीर्ष अदालत के कुछ ऐसे पूर्व न्यायाधीश इस प्रणाली के बारे में क्या कह रहे हैं, वह उस पर टिप्पणी नहीं करना चाहती, जो पूर्व में सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम के सदस्य रह चुके हैं।
पूर्व के फैसलों पर टिप्पणी आजकल का फैशन
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा, 'पूर्व के फैसलों (कोलेजियम के) पर टिप्पणी करना आजकल फैशन बन गया है, जब वे (पूर्व जज) कोलेजियम का हिस्सा थे। हम उनकी टिप्पणियों के बारे में कुछ भी नहीं कहना चाहते। वर्तमान में काम कर रही कोलेजियम प्रणाली को बेपटरी मत कीजिए। कोलेजियम कुछ व्यस्त लोगों के आधार पर काम नहीं करता। कोलेजियम को उसके कर्तव्यों के मुताबिक काम करने दीजिए, हम सबसे पारदर्शी संस्थानों में से एक हैं।' शीर्ष अदालत आरटीआइ कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज की दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के विरुद्ध याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हाई कोर्ट ने 12 दिसंबर, 2018 को हुई सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की बैठक का एजेंडा मांगने संबंधी उनकी याचिका खारिज कर दी थी। उस बैठक में कुछ जजों को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत करने का फैसला लिया गया था।
वेबसाइट पर अपलोड किए जाने चाहिए SC के फैसले
भारद्वाज की ओर से पेश वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि शीर्ष अदालत के पूर्व जज जस्टिस एमबी लोकुर 2018 में सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम का हिस्सा थे। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि उस वर्ष 12 दिसंबर की कोलेजियम बैठक में लिए गए फैसलों को शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया जाना चाहिए था। 12 दिसंबर, 2018 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में जस्टिस लोकुर, एके सीकरी, एसए बोबडे और एनवी रमना (सभी सेवानिवृत्त) वाले कोलेजियम ने शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की नियुक्ति और हाई कोर्टों के मुख्य न्यायाधीशों व न्यायाधीशों के स्थानांतरण के संबंध में कथित तौर पर कुछ निर्णय लिए थे, लेकिन उन प्रस्तावों को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया था।
सूचना के अधिकार कानून के दायरे में कोलेजियम का फैसला
जस्टिस लोकुर की सेवानिवृत्ति के बाद कोलेजियम का संयोजन बदल गया था और उसने 10 जनवरी, 2019 को केंद्र को जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और संजीव खन्ना की पदोन्नति की सिफारिश करने का एक और निर्णय लिया था और कहा कि 12 दिसंबर, 2018 को पूर्व में की गईं सिफारिशों को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका क्योंकि उन पर नए सिरे से विचार करने का निर्णय लिया गया था। 10 जनवरी की बैठक में कोलेजियम ने उपलब्ध अतिरिक्त सामग्री की रोशनी में पहले के प्रस्तावों पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया था। कथित घटनाओं का क्रम बताने वाले भूषण ने पीठ को बताया कि याचिकाकर्ता 12 दिसंबर, 2018 को कोलेजियम की बैठक से संबंधित केवल तीन विशिष्ट दस्तावेज की मांग कर रही है। उन्होंने कहा, 'यहां सवाल यह है कि क्या कोलेजियम का फैसला सूचना के अधिकार कानून के दायरे में आता है। बाद में 10 जनवरी, 2019 को हुई बैठक में 12 दिसंबर, 2018 को लिए गए फैसले का जिक्र है।'
सूचना का अधिकार एक मौलिक अधिकार
इस बिंदु पर पीठ ने कहा कि 2018 की बैठक में लिए गए निर्णय मौखिक थे न कि लिखित। इस पर भूषण ने पूछा, ''कहां कहा गया है कि यह लिखित फैसला नहीं बल्कि मौखिक फैसला था?'' उन्होंने कहा कि क्या देश के लोगों को यह जानने का अधिकार नहीं है कि कोलेजियम की किसी विशेष बैठक में क्या निर्णय लिए गए हैं? सुप्रीम कोर्ट के लोक सूचना अधिकारी को यह बताने को कहें कि 12 दिसंबर, 2018 का फैसला लिखित नहीं था। भूषण ने पूछा कि क्या सुप्रीम कोर्ट आरटीआइ कानून के परे है और दावा किया कि सूचना का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह याचिका पर आदेश पारित करेगी और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
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