नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उस जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें केंद्र और सभी राज्यों को अधीनस्थ न्यायपालिका और हाई कोर्टों में लंबित मामलों से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए न्यायाधीशों की संख्या दोगुनी करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे लोकलुभावन और सरल कदमों से समाधान नहीं निकल सकता।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने मौखिक रूप से कहा, 'केवल न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाना समाधान नहीं है, आपको अच्छे न्यायाधीशों की जरूरत है।' अदालत की इस टिप्पणी के बाद याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी जनहित याचिका वापस ले ली। इससे पहले जब उपाध्याय ने अपनी दलीलें शुरू कीं तो पीठ ने कहा कि इस तरह के समाधान से हल नहीं निकलेगा।
सीजेआई ने कहा, 'इलाहाबाद हाई कोर्ट में 160 सीटें ही भरना मुश्किल है और आप 320 के लिए कह रहे हैं। आप बांबे हाई कोर्ट गए हैं? वहां एक भी जज नहीं बढ़ाया जा सकता क्योंकि वहां बुनियादी ढांचा ही नहीं है।' जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि विषय पर बिना विस्तृत अध्ययन वाली ऐसी याचिका दाखिल करने पर वकील को जुर्माने का भुगतान करने के लिए तैयार रहना चाहिए।इसके बाद उपाध्याय ने अपनी दलीलों के समर्थन में विधि आयोग की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसके मुताबिक देश में लंबित लगभग पांच करोड़ मुकदमों को निपटाने के लिए जज और जनसंख्या के अनुपात में उल्लेखनीय वृद्धि होनी चाहिए।
सीजेआई ने अमेरिका का उदाहरण भी दिया जहां जज-जनसंख्या का अनुपात भारत से कहीं बेहतर है। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'इस तरह की याचिका पर न तो ब्रिटेन और न ही अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट वकीलों की यह बात भी नहीं सुनता कि मामलों को स्वीकार किया जाना चाहिए या नहीं। यह हमारे यहां की प्रणाली की वजह से है।' उन्होंने उपाध्याय से कुछ रिसर्च करके फिर से याचिका दाखिल करने के लिए कहा।