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सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ को सौंपा गरीब सवर्णों को दस फीसद आरक्षण मामला

सुप्रीम कोर्ट ने सवर्ण गरीबों को दस फीसद आरक्षण देने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को पांच जजों की संविधान पीठ को सौंप दिया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Wed, 05 Aug 2020 08:37 PM (IST)Updated: Thu, 06 Aug 2020 03:08 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ को सौंपा गरीब सवर्णों को दस फीसद आरक्षण मामला
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ को सौंपा गरीब सवर्णों को दस फीसद आरक्षण मामला

नई दिल्ली, एएनआइ। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के सवर्ण गरीबों को आर्थिक आधार पर नौकरियों और स्कूल व कॉलेज में प्रवेश के लिए दस फीसद आरक्षण देने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को पांच जजों की संविधान पीठ को सौंप दिया है। मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने बुधवार को यह मामला एक बड़ी बेंच को सौंपते हुए कहा कि केंद्र सरकार के इस फैसले को चुनौती देने वाली 35 याचिकाओं पर सुनवाई अब संविधान पीठ ही करेगी।

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'जनहित अभियान' और 'यूथ फॉर इक्वालिटी' समेत गैर सरकारी संगठनों ने केंद्र सरकार के जनरल कैटेगरी के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को दस फीसद आरक्षण देने के फैसले को चुनौती दी है। इससे पहले सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार के इस फैसले पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया था।

केंद्र सरकार ने इससे पहले अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि संविधान (103वें संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत दस फीसद आरक्षण का प्रावधान उन 20 करोड़ लोगों के लिए किया गया है जो जनरल कैटेगरी के हैं और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। यह फैसला उनको गरीबी की रेखा से ऊपर लाने के लिए किया गया है। जबकि इस फैसले का विरोध करने वाली याचिकाओं में दलील दी गई है कि भारत के संविधान में आरक्षण का प्रावधान आर्थिक आधार पर नहीं किया गया है और इस आधार पर इसे केवल जनरल कैटेगरी तक सीमित नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने वर्ष 1992 के इंदिरा साहनी मामले में नौ जजों की पीठ के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि नवीनतम संशोधन संविधान के मूल मानकों का उल्लंघन है। चूंकि आरक्षण का आधार आर्थिक नहीं हो सकता है। इसके साथ ही उन्होंने दलील दी है कि यह कोटा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को दिए जाने वाले मौजूदा 50 फीसद आरक्षण से अधिक भी हो रहा है जो गैरकानूनी है।


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