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इच्‍छामृत्‍यु पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले से खुश नहीं हैं बुजुर्ग दंपति, जानें- क्या है इनकी मांग

हजारों दंपति ऐसे हैं, जिनकी कोई संतान नहीं होगी। ऐसे लोगों का बुढ़ापे में कोई सहारा नहीं होता। क्‍या बदलते भारतीय सामाजिक ढांचे को ध्‍यान में रखते हुए कानून में बदलाव नहीं होने चाहिए?

By Tilak RajEdited By: Published: Fri, 09 Mar 2018 03:17 PM (IST)Updated: Fri, 09 Mar 2018 07:26 PM (IST)
इच्‍छामृत्‍यु पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले से खुश नहीं हैं बुजुर्ग दंपति, जानें- क्या है इनकी मांग
इच्‍छामृत्‍यु पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले से खुश नहीं हैं बुजुर्ग दंपति, जानें- क्या है इनकी मांग

नई दिल्‍ली, जेएनएन। मृत्‍यु का आना निश्चित है! लेकिन कोई ये नहीं बता सकता कि उसकी मृत्‍यु कब और कैसे आएगी? बुढ़े होकर मरेंगे या किसी दुर्घटना का शिकार होकर मारे जाएंगे। साधारण परिस्थितियों में मृत्‍यु बुढ़ापे में किसी गंभीर रोग से ग्रसित होने के कारण होती है। गंभीर रोग से ग्रसित होने के बाद किसी शख्‍स को किन तकलीफों से गुजरना पड़ता होगा, इसके बारे में सोचकर ही रूह कांप जाती है। साथ ही मन में एक सवाल कौंधने लगता है कि क्‍या हमें भी इस असहनीय दर्द से गुजरना पड़ेगा? एक ऐसा दर्द जिसका अंत मौत के साथ होगा...!

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असहनीय दर्द या इच्‍छामृत्‍यु

सवाल उठता है कि क्‍या हमें अपनी इच्‍छा से बिना असहनीय दुख-दर्द सहन किए मरने का अधिकार नहीं होना चाहिए? इसी अधिकार की मांग कर रहा है मुंबई शहर की एक दंपति। मुंबई के चारणी रोड के समीप स्थित ठाकुरद्वार में रहने वाले वयोवृद्ध दंपति नारायण लावते (88) और उनकी पत्नी इरावती (78) का कहना है कि किसी गंभीर रोग से उनके ग्रसित होने तक उन्हें मृत्यु का इंतजार करने के लिए मजबूर करना अनुचित है। इन्‍होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग की है। इनका तर्क है कि जब मौत की सजा का सामना कर रहे लोगों के प्रति दया दिखाने की राष्ट्रपति के पास शक्तियां हैं, तब राष्ट्रपति हमें अपना जीवन समाप्त करने की इजाजत दे कर हम पर दया क्‍यों नहीं कर सकते?

सम्‍मान के साथ विदाई

नारायण लावते और उनकी पत्‍नी इरावती बेऔलाद हैं। इनके सगे भाई-बहन भी अब इस दुनिया में नहीं हैं। ऐसे में दंपति को लगता है कि उनके जीने की अब कोई वजह नहीं बची है। अब शरीर भी उनका साथ नहीं देता है। इस उम्र में उनकी समाज के लिए कोई उपयोगिता नहीं रह गई है। ऐसे में यदि कोई अन्य उनकी देखभाल करने के लिए आगे आता है, तो वह संसाधनों की बर्बादी होगी। इसलिए उनको इच्‍छा मृत्‍यु की इजाजत मिली चाहिए, ताकि वे सम्‍मान और बिना किसी तकलीफ के इस संसार से विदाई ले सकें।

देश की सर्वोच्‍च अदालत ने भी अब ये बात स्‍वीकार कर ली है कि सबको सम्‍मान पूर्वक जीने के साथ-साथ मरने का भी अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने इसीलिए इच्छा मृत्यु को मंजूरी दे दी है। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए शर्त के साथ इच्छा मृत्यु को मंजूरी दी है। इसको लेकर कोर्ट ने सुरक्षा उपाय की गाइडलाइन्स जारी की है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में मरणासन्न व्यक्ति द्वारा इच्छामृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत (लिविंग विल) को मान्यता देने की बात कही गई है। लेकिन लावते दंपति सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से संतुष्‍ट नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर इच्छामृत्यु की मांग करने वाले लावते दंपति ने कहा, 'हम सुप्रीम कोर्ट से फैसले से पूरी तरह सहमत नहीं हैं। 75 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को यह अधिकार दिया जाना चाहिए। वे पुलिस और डॉक्टरों से इन लोगों के विवरण की पुष्टि कर सकते हैं। सरकार को एक नीति के साथ आगे आना चाहिए।'

बदल रहा समाज

हमारा समाज लगातार बदल रहा है। हजारों दंपति ऐसे हैं, जिनकी कोई संतान नहीं होगी। ऐसे लोगों का बुढ़ापे में कोई सहारा नहीं होता। क्‍या बदलते भारतीय सामाजिक ढांचे को ध्‍यान में रखते हुए कानून में बदलाव नहीं होने चाहिए? अगर कोई उम्र के एक पड़ाव पर आकर गंभीर रोगों से ग्रसित हो जाता है, तो क्‍या उसे इच्‍छामृत्‍यु की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए? लावते दंपति जैसे लोगों को क्‍या सम्‍मान से मरने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए? क्‍या सरकार को ऐसे दंपतियों के अकेलेपन को दूर करने के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनानी चाहिए? ऐसी योजना जिससे इच्‍छामृत्‍यु की मांग करने वालों के मन में जीने की चाह मरे नहीं? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनपर गंभीर चिंतन की आवश्‍यकता है।


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