'पहले अवैध घुसते हैं, फिर अधिकारों की मांग की जाती है', घुसपैठियों पर भड़का सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने घुसपैठियों पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि पहले वे अवैध रूप से घुसते हैं और फिर अधिकारों की मांग करते हैं। कोर्ट ने रोहिंग्याओं की गि ...और पढ़ें

सुप्रीम कोर्ट की घुसपैठियों पर सख्त टिप्पणी
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को घुसपैठियों पर कड़ी टिप्पणियां करते हुए उनके लिए की जा रही मांगों पर सवाल उठाया। कोर्ट ने कहा पहले अवैध रूप से चुपचाप अंदर घुस आते हैं, उसके बाद उनके लिए अधिकारों की मांग की जाती है। कहा कि क्या उनका स्वागत किया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि भारत में भी बहुत गरीब हैं, उनके भी अधिकार हैं, क्या उनके बारे में नहीं सोचा जाना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जोयमाल्या बाग्ची की पीठ ने ये टिप्पणियां पांच रोहिग्याओं की गिरफ्तारी के बाद उनकी जानकारी न मिलने का मुद्दा उठाने वाली रीता मनचंदा की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान की।
सुप्रीम कोर्ट की घुसपैठियों पर सख्त टिप्पणी
याचिका पर बहस कर रही वकील से चीफ जस्टिस ने सीधा सवाल किया कि क्या भारत सरकार ने उन्हें शरणार्थी का दर्जा दिया है कोई आदेश हो तो दिखाइये। वकील ने नकारात्मक जवाब दिया तो कोर्ट ने कहा कि अगर शरणार्थी का दर्जा नहीं है तो घुसपैठिये हैं।
कोई घुसपैठिया है, अवैध रूप से प्रवेश करता है, तो क्या उसे यहां रखना हमारा दायित्व है? वकील ने कहा कि वह निर्वासन के खिलाफ नहीं है लेकिन इसकी कानूनी प्रक्रिया है उसका पालन किया जाना चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि उत्तर भारत में सीमा बहुत संवेदनशील है।
अगर कोई घुसपैठिया आता है, तो क्या यह कहकर स्वागत करेंगे कि हम आपको सभी सुविधाएं देना चाहते हैं? कोर्ट ने पूछा कि उन्हें वापस भेजने में क्या समस्या है। वकील ने कहा कि कानून के अनुसार वापस भेजा जाना चाहिए। ऐसी दलीलों पर नाराजगी जताते हुए पीठ ने कहा कि पहले आप घुस आते हैं, अवैध रूप से सीमा पार करते हैं।
अवैध प्रवेश के बाद अधिकारों की मांग पर सवाल
सुरंग खोदते हैं या बाड़ पार करते हैं और अवैध रूप से भारत में प्रवेश करते हैं। उसके बाद कहते हैं कि अब जब मैं प्रवेश कर चुका हूं, तो आपके कानून मुझ पर भी लागू होने चाहिए। भोजन, आश्रय और बच्चों को शिक्षा की मांग करते हैं। कोर्ट ने सवाल किया कि क्या कानून को इस तरह खींचा जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट के 2020 के पूर्व आदेश का हवाला देकर कहा कि रो¨हग्याओं को केवल प्रक्रिया के अनुसार ही निर्वासित किया जाना चाहिए। तब कोर्ट ने सवाल किया कि क्या भारतीय नागरिकों की जरूरतों की कीमत पर अप्रवासियों को देश के संसाधनों तक पहुंच दी जानी चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि भारत में भी बहुत गरीब लोग हैं, क्या उनका अधिकार नहीं है। क्या उन्हें लाभ और सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए। उन पर ध्यान क्यों न दिया जाए।
रोहिंग्याओं की गिरफ्तारी मामले में सुनवाई
पीठ ने कहा कि ये ठीक है कि कोई अवैध आया है, तो भी उस पर थर्ड-डिग्री का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि यहां प्रभावित व्यक्ति नहीं आया है यह जनहित याचिका है। इसमें भारत सरकार से दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, कि कब आदेश हुआ, क्या कार्रवाई हुई।
फाइल का पूरा ब्योरा मांगा जा रहा है। जनहित याचिका वाला एक स्ट्रेंजर कैसे ये दस्तावेज मांग सकता है। कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई 16 दिसंबर तक स्थगित करते हुए कहा कि उस दिन रो¨हग्याओं से संबंधित मामले पर सुनवाई होनी है तभी इस पर विचार होगा।
कोर्ट ने गत 31 जुलाई को रो¨हग्याओं की कानूनी स्थिति पर विचार के लिए सवाल तय किये थे। कोर्ट ने कहा था कि पहला मुद्दा ये है कि रो¨हग्या शरणार्थी हैं या घुसपैठिए। अगर अवैध रूप से प्रवेश किया है तो क्या उन्हें निर्वासित करने की सरकार की कार्रवाई उचित थी।

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