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Supreme Court on Freebies : सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मुफ्त रेवड़ियों का मुद्दा महत्वपूर्ण, बहस हो; मामले पर राजनीतिक दल हैं खामोश

मुफ्त रेवड़ियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को भी सुनवाई होगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि ये एक गंभीर मुद्दा है और इस पर चर्चा होनी चाहिए। संसद में इस पर बहस होनी चाहिए।

By Piyush KumarEdited By: Published: Tue, 23 Aug 2022 09:50 PM (IST)Updated: Tue, 23 Aug 2022 09:50 PM (IST)
Supreme Court on Freebies : सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मुफ्त रेवड़ियों का मुद्दा महत्वपूर्ण, बहस हो; मामले पर राजनीतिक दल हैं खामोश
मुफ्त रेवड़ियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को भी सुनवाई होगी।(फाइल फोटो)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली : मुफ्त रेवड़ियों को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक बार बार-बार चिंता जता रहे हैं लेकिन ज्यादातर राजनीतिक दल शीर्ष अदालत में रेवड़ियों के मुद्दे पर सुनवाई का विरोध कर रहे हैं या फिर चुप्पी साधे बैठे हैं। हालांकि, कोर्ट ने राजनीतिक दलों से सुझाव नहीं मांगे हैं, लेकिन आम आदमी पार्टी, द्रमुक और वाइएसआर कांग्रेस पार्टी ने तो अर्जी दाखिल कर कोर्ट के इस मामले में सुनवाई करने का विरोध किया है। परंतु, कांग्रेस, भाजपा समेत दूसरे दलों की ओर से कोई सक्रियता नहीं दिखाई गई है। इस बात को महसूस करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को टिप्पणी की कि सभी दल रेवड़ियां चाहते हैं।

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सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को भी सुनवाई होगी

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि ये एक गंभीर मुद्दा है और इस पर चर्चा होनी चाहिए। संसद में इस पर बहस होनी चाहिए। इसी सोच के साथ कोर्ट ने मामले में विशेषज्ञ समिति गठित करने की बात की थी और सुझाव मंगाए थे। मामले में सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को भी सुनवाई होगी। प्रधान न्यायाधीश एनवी रमणा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से उनके द्वारा दाखिल किए गए सुझावों के बाबत पूछा। सिब्बल इस मामले में पक्षकार नहीं हैं लेकिन कोर्ट ने एक सांसद और पूर्व मंत्री होने के नाते उनके अनुभवों को देखते हुए उनसे इस पर सुझाव देने को कहा था।

जस्टिस रमणा ने कहा कि कोई भी इस बात से इन्कार नहीं कर सकता कि ये मुद्दा नहीं है लेकिन कुछ लोग कह रहे हैं कि यह कोर्ट के सुनने का मुद्दा नहीं है। पीठ ने कहा कि वह किसी सरकारी नीति के खिलाफ नहीं है। जन कल्याण और अर्थव्यवस्था दोनों के हितों को देखते हुए कोर्ट ने इस मुद्दे पर विचार करना शुरू किया है। इस पर चर्चा हो। कमेटी बने। फिर देखते हैं कि क्या विचार आते हैं।

इस मुद्दे से एक तंत्र के जरिये निपटा जाना चाहिए: सिब्बल

कपिल सिब्बल ने कहा कि पीठ सही कह रही है ये मुद्दा विचार का है लेकिन सवाल उठता है कि इसे कैसे किया जाए। फाइनेंसियल रिस्पांसबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट (एफआरबीएम) एक्ट है जिसके मुताबिक राजकोषीय घाटा तीन प्रतिशत से कम होना चाहिए। अगर राजकोषीय घाटा तीन प्रतिशत से ज्यादा हुआ तो अगले वर्ष का आवंटन कम कर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे से एक तंत्र के जरिये निबटा जाना चाहिए न कि राजनीतिक ढंग से। इस मुद्दे को वित्त आयोग को देखना चाहिए।

सामाजिक कल्याण को लेकर किसी को आपत्ति नहीं: तुषार मेहता

केंद्र सरकार ने फिर किया मुफ्त रेवडियों का विरोध केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुफ्त रेवड़ियों का विरोध करते हुए कहा कि सामाजिक कल्याण को लेकर किसी को आपत्ति नहीं है। परेशानी तब होती है जब कोई दल साड़ी, टीवी आदि बांटता है। मतदाता को सही-सही जानकारी होनी चाहिए। क्या आप ऐसे झूठे वादे कर सकते हैं जिन्हें पूरा करने की आपके वित्तीय साधन इजाजत नहीं देते या जिनसे अर्थ व्यवस्था चौपट होती हो?आयोग के प्रमुख को लेकर भी सवाल जस्टिस रमणा ने कहा कि सवाल यह भी है कि आयोग का अध्यक्ष कौन होगा।

चुनाव आयोग के कार्रवाई करने की दलील पर कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग सिर्फ चुनाव के दौरान ही कार्रवाई कर सकता है। मान लो कि कोई दल वादा करता है कि अगर उसे चुना गया तो वह सभी को हांगकांग या सिंगापुर भेजेगा। इसे चुनाव आयोग कैसे रोकेगा। मुफ्त रेवड़ियों का वर्गीकरण कठिन पीठ ने वकील गोपाल शंकर नारायण द्वारा मुफ्त रेवड़ियों के वर्गीकरण की दलील देने पर कहा कि यह कठिन है। उदाहरण के लिए अगर किसी ने साइकिल दी तो इसके बारे में रिपोर्ट है कि इससे साइकिल पाने वाले जिंदगी बदल गई। ग्रामीण क्षेत्र में लोगों के लिए साइकिल या नाव बड़ी चीज हो सकती है।

यह मुद्दा अभिव्यक्ति की आजादी के तहत आता है: अभिषेक मनु सिंघवी

हम यहां बैठकर इस पर विचार नहीं कर सकते। आप की दलील, चुनावी भाषण अभिव्यक्ति की आजादी का मुद्दा आम आदमी पार्टी (आप) की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि याचिका में कोर्ट से चुनावी भाषणों को नियंत्रित करने की मांग की गई है। ये मुद्दा संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) (अभिव्यक्ति की आजादी) के तहत आता है। इसे कानून के जरिये नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन कोर्ट इस पर नियंत्रण नहीं लगा सकता। सिंघवी ने कहा कि अगर संसद या राज्य इस बारे में कानून बनाते हैं तो वे उसे कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं लेकिन अगर कोर्ट आदेश देगा तो वे क्या करेंगे। इतनी बहस के बाद कोर्ट ने कहा आगे की सुनवाई बुधवार को होगी। 


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