Move to Jagran APP

आरोपित को सजा सुनाए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी, कहा- शक के आधार पर नहीं ठहराया जा सकता दोषी

पीठ ने कहा यह स्थापित कानून है कि संदेह चाहे कितना भी मजबूत क्यों न हो पुख्ता सुबूत की जगह नहीं ले सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में अभियोजन पक्ष घटनाओं की श्रृंखला को स्थापित करने में पूरी तरह से विफल रहा है।

By Amit SinghEdited By: Published: Fri, 12 Aug 2022 04:45 AM (IST)Updated: Fri, 12 Aug 2022 04:45 AM (IST)
आरोपित को सजा सुनाए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी, कहा- शक के आधार पर नहीं ठहराया जा सकता दोषी
संदेह के आधार पर आरोपित को दोषी नहीं ठहराया जा सकता

नई दिल्ली, एजेंसियां: सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए एक व्यक्ति राम निवास को बरी करते हुए गुरुवार को कहा कि किसी आरोपित को संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, चाहे वह (संदेह) कितना भी पुख्ता क्यों न हो। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि एक आरोपित को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कि उसे उचित संदेह से परे दोषी साबित नहीं किया जाता।

loksabha election banner

पीठ ने कहा, 'यह स्थापित कानून है कि संदेह चाहे कितना भी मजबूत क्यों न हो, पुख्ता सुबूत की जगह नहीं ले सकता।' शीर्ष अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में अभियोजन पक्ष घटनाओं की श्रृंखला को स्थापित करने में पूरी तरह से विफल रहा है। पीठ ने कहा, 'इस मामले में हम पाते हैं कि सत्र न्यायाधीश और हाई कोर्ट के फैसले और आदेश बरकरार रखने योग्य नहीं हैं।'

शीर्ष अदालत पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली एक अपील पर विचार कर रही थी। सत्र अदालत ने राम निवास को 2005 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी और हाई कोर्ट ने मार्च, 2009 में उसकी अपील खारिज कर दी थी। राम निवास के वकील ऋषि मल्होत्रा की दलील थी कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह स्पष्ट था कि जिस शव का पोस्टमार्टम किया गया था उसे पुख्ता तौर पर मृतक दलीप सिंह का नहीं माना जा सकता था। पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर ने माना था कि शव पहचान करने योग्य नहीं था।

इसके विपरीत राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता ने पेश किया कि उच्च न्यायालय और निचली अदालत ने एक साथ आरोपी को आरोपित अपराधों का दोषी पाया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि पूरा करने के लिए सबूतों की एक श्रृंखला होनी चाहिए ताकि आरोपी की बेगुनाही के अनुरूप निष्कर्ष के लिए कोई उचित आधार न छोड़े और यह दिखाना चाहिए कि सभी संभावनाओं में आरोपी द्वारा ही कार्य किया गया हो।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.