Hapur lynching case: सुप्रीम कोर्ट ने सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल करने का आदेश देने से किया इन्कार
सुप्रीम कोर्ट ने हापुड़ मॉब लिंचिंग मामले में सुनवाई करते हुए यूपी सरकार को सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल करने के संबंध में आदेश देने से इन्कार कर दिया।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। हापुड़ में भीड़ द्वारा पीट पीट कर मार डालने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस को अतिरिक्त आरोपपत्र दाखिल करने का आदेश देने से मंगलवार को इन्कार कर दिया। हालांकि कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अपनी मांग ट्रायल कोर्ट के समक्ष रखने की छूट दी है।
इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार ने मामले में हलफनामा दाखिल कर कोर्ट से कहा है कि घटना धार्मिक भावनाओं के कारण नहीं हुई और न ही जांच में इसका कोई मौखिक या दस्तावेजी सबूत मिला है। इसके अलावा घटना के पीछे कोई साजिश या अपराध का सामान्य इरादा पाए जाने का भी कोई सबूत नहीं मिला है। प्रदेश सरकार ने गत सोमवार को दाखिल किये गए अपने ताजा हलफनामे मे ये बातें कही हैं।
पिछले साल जून में भीड़ ने दो व्यक्तियों की पिटाई की थी जिसमें एक की मौत हो गई थी और एक घायल हो गया था। इस घटना को कथित तौर पर गोरक्षकों द्वारा अंजाम दिए जाने का आरोप है।
मंगलवार को मामले पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता समयदीन की वकील वृंदा ग्रोवर ने कोर्ट से कहा कि घटना में मारे गए कासिम के भाई सलीम और नदीम का धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने 15 मई को बयान दर्ज हुआ है। ऐसे में जांच कर रही पुलिस को आदेश दिया जाए कि वह दोनों के बयानों के आधार पर मामले में पूरक आरोपपत्र दाखिल करे।
दूसरी तरफ से उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील वी शेखर और एश्वर्या भाटी ने मांग का विरोध करते हुए कहा कि दोनों के 164 के बयान दर्ज हो चुके हैं इसलिए अब मामले पर सुनवाई की जरूरत नहीं रह जाती है। उन्होंने कोर्ट से यह भी कहा कि प्रदेश सरकार ने मामले की जांच की स्टेटस रिपोर्ट भी दाखिल कर दी है और गत सोमवार को हलफनामा भी दाखिल किया है।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई व अनिरुद्ध बोस की अवकाशकालीन पीठ ने याचिकाकर्ता की मांग ठुकराते हुए कहा कि ऐसा आदेश नहीं दिया जा सकता। हालांकि कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता गत 15 मई को दर्ज किये गये बयानों का हवाला ट्रायल कोर्ट के समक्ष रख सकते हैं और ट्रायल कोर्ट कानून के मुताबिक उचित आदेश दे सकती है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने की छूट देते हुए मामले को गर्मी की छुट्टियों के बाद सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया।
उधर उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दाखिल किये गए ताजा हलफनामे में याचिकाकर्ताओं की ओर से लगाए गए आरोपों को गलत और सत्य से परे बताया गया है। हापुड़ के एसपी की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक मेरठ रेंज के आईजी की निगरानी में घटना की निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच की गई है।
अदालत में आरोपपत्र दाखिल हो चुका है और अदालत उस पर संज्ञान भी ले चुकी है। यह भी कहा है कि मृतक के परिजनों को तीन लाख और घायल को एक लाख रुपये की आर्थिक मदद भी दी गई है। पुलिस ने आरोप लगाया है कि याचिकाकर्ता ने कोर्ट को भ्रमित करने के लिए मामले के तथ्यों को तोड़मरोड़ कर रखा है। हलफनामे में कहा गया है कि घटना के पीछे धार्मिक भावनाएं कारण नहीं थी और न ही इस बारे में कोई मौखिक या दस्तावेजी सबूत मिले हैं।
इसके अलावा घटना के पीछे साजिश या घटना को अंजाम देने का सामान्य आशय होने के संकेत न तो एफआइआर में थे और न ही जांच में ऐसा कुछ पाया गया। अभियुक्तों के खिलाफ आईपीसी की धारा 147, 148,302,307 और 153ए के तहत आरोपपत्र दाखिल हुआ है।
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