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SC ने सुनाया अहम फैसला- पत्नी क्रूरता की दोषी, पति को तलाक की इजाजत

सुप्रीम कोर्ट ने ये अहम टिप्पणी की कि ''अत्याचार को कभी सटीक रुप से परिभाषित नहीं किया जा सकता है ये समय और परिस्थिति के अनुसार तय होता है।''

By Srishti VermaEdited By: Published: Tue, 25 Apr 2017 09:17 AM (IST)Updated: Tue, 25 Apr 2017 09:43 AM (IST)
SC ने सुनाया अहम फैसला- पत्नी क्रूरता की दोषी, पति को तलाक की इजाजत
SC ने सुनाया अहम फैसला- पत्नी क्रूरता की दोषी, पति को तलाक की इजाजत

नई दिल्ली(जेएनएन)। सुप्रीम कोर्ट ने एक केस में पति के द्वारा दाखिल किये गए तलाक की अर्जी की सुनवाई में पत्नी को अपने पति के प्रति क्रूरता का दोषी ठहराया है। कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वो अपनी पत्नी को एक करोड रुपए मूल्य का फ्लैट व 50 लाख रुपए एकमुश्त गुजारा राशि दे।

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दरअसल पत्नी, अपने पति के खिलाफ झूठा केस दर्ज कराकर उसे प्रताड़ित करती थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके गोयल और दीपक गुप्ता की पीठ ने फैसला सुनाने के बाद यह अहम टिप्पणी की कि ''अत्याचार को कभी सटीक रुप से परिभाषित नहीं किया जा सकता है ये समय और परिस्थिति के अनुसार तय होता है।'' मामले में स्पष्ट है कि पत्नी ने पति, ससुराल वाले व पति के सहयोगियों पर धृष्टतापूर्वक मानहानि व झूठे आरोप लगाए जिससे समाज में उनकी प्रतिष्ठा को चोट पहुंचा है। हिंदी विवाह परंपरा के मुताबिक यदि उचित कारणों से शिकायत दर्ज कराए गए हों तो ये क्रूरता नहीं हैं लेकिन यदि यह पाया जाए कि एक दूसरे के खिलाफ लगाए गए आरोप झूठे हैं तो इसे क्रूरतापूर्ण कृत्य माना जाता है।

बता दें कि इस दंपति की शादी 1989 में हिंदी परंपरा के अनुसार हुई थी। 1990 में इन्हें एक बेटे का जन्म हुआ। 1999 तक ये दोनों पति-पत्नी साथ रहे लेकिन 19 मार्च 2000 को पति ने पत्नी से तंग आकर घर छोड़ दिया और तलाक अर्जी दे दी। पति का पत्नी पर ये आरोप था कि वो उसके और उसके परिवार के खिलाफ दहेज और मारपीट के खिलाफ झूठे शिकायतें करने का आरोप लगाती है। कई बार मीडीया रिपोर्टों में पत्नी के खुद को जिंदा जलाने की भी बात सामने आईं। उसने राज्य मानवाधिकार आयोग, हाइ कोर्ट के मुख्य न्यायधीश और राज्य के मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखे लेकिन जांच के बाद आरोप झूठा पाया गया। इसके बाद पत्नी ने पति पर आरोप लगाया कि वो उसके घर में जबरन घुसकर हमला करना चाहता था।

इस पर कोर्ट ने कहा कि हो सकता है कि पत्नी ने पति के द्वारा तलाक की अर्जी दाखिल करने की बात से खफा होकर ये झूठा आरोप लगाया। लेकिन उसे कोई हक नहीं मिल जाता कि वो पति के खिलाफ कोई मानहानि का आरोप लगाए। जब पुलिस ने एएफआईआर निरस्त करने की मांग की तो पत्नी चुप रही। लेकिन अब 11 साल बाद उसने विरोध याचिका दायर की है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उक्त कानून की धारा 13 के तहत पति द्वारा दाखिल तलाक की अर्जी मंजूर की जाती है।

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