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Supreme Court: 'संदेह के लाभ के हकदार' के तहत 1985 के हत्या मामले में न्यायालय ने दो लोगों को किया बरी

सुप्रीम कोर्ट ने 1985 के एक हत्या के मामले में पिछले 35 वर्षों से कार्यवाही का सामना कर रहे दो लोगों को संदेह का लाभ दिया और रिहाई का आदेश दिया। न्यायालय ने मामले में उनकी दोषसिद्धि की पुष्टि करने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया।

By AgencyEdited By: Devshanker ChovdharyPublished: Thu, 26 Jan 2023 06:11 PM (IST)Updated: Thu, 26 Jan 2023 06:11 PM (IST)
Supreme Court: 'संदेह के लाभ के हकदार' के तहत 1985 के हत्या मामले में न्यायालय ने दो लोगों को किया बरी
'संदेह के लाभ के हकदार' के तहत 1985 के हत्या मामले में न्यायालय ने दो लोगों को किया बरी।

नई दिल्ली, एएनआई। सुप्रीम कोर्ट ने 1985 के एक हत्या के मामले में पिछले 35 वर्षों से कार्यवाही का सामना कर रहे दो लोगों को संदेह का लाभ दिया और बरी कर दिया। न्यायालय ने मामले में उनकी दोषसिद्धि की पुष्टि करने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया। जानकारी के अनुसार, जस्टिस एस रवींद्र भट और दीपांकर दत्ता की पीठ ने 29 जनवरी, 1986 को निचली अदालत के फैसले और 9 जुलाई, 2014 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया।

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सुप्रीम कोर्ट ने मामले में क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'अदालत की राय है कि अपीलकर्ताओं ने नारायण की हत्या करने का आरोप संदेह से परे साबित नहीं किया जा सकता है, इसलिए वे संदेह के लाभ के हकदार थे और हैं।' अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के 29 जनवरी 1986 के निर्णय में निहित दोषसिद्धि और सजा के आदेश को खारिज कर दिया गया है, इसके परिणामस्वरूप, सुप्रीम कोर्ट द्वारा 9 जुलाई 2014 को पारित निर्णय और आदेश, दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखते हुए, अलग रखा जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार

अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता जो अपीलीय निर्णय और आदेश दिए जाने के बाद से सुधार गृह में बंद हैं, अगर किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं, तो उन्हें तुरंत रिहा कर दिया जाएगा। बता दें कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश द्वारा 29 जनवरी 1986 को दो व्यक्तियों मुन्ना और शिव लाल को हत्या का दोषी ठहराया गया था, जिसकी पुष्टि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 9 जुलाई, 2014 को की थी।

इलाहाबाद कोर्ट के आदेश को पलटा

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दोनों लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। कोर्ट ने कहा कि जांच प्रक्रिया में मात्र दोष ही बरी होने का आधार नहीं हो सकता है, यह न्यायालय का कानूनी दायित्व है कि वह प्रत्येक मामले में सावधानीपूर्वक जांच करे कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य जांच अधिकारी द्वारा की गई खामियों को दूर करते हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि सबूत रिकॉर्ड पर लाए गए हैं या नहीं।

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