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सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली को हरी झंडी दी

सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की नियुक्ति करने के लिए कॉलेजियम प्रणाली को हरी झंडी दे दी है और इस पर सुधार किए जाने को लेकर फैसला सुरक्षित कर लिया है। इससे पहले न्यायधीशों की नियुक्ति मामले में केंद्र सरकार ने नियुक्ति प्रक्रिया (मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर) की ड्राफ्टिंग करने से इंकार

By Manish NegiEdited By: Published: Thu, 19 Nov 2015 12:46 AM (IST)Updated: Thu, 19 Nov 2015 04:47 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली को हरी झंडी दी

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की नियुक्ति करने के लिए कॉलेजियम प्रणाली को हरी झंडी दे दी है और इस पर सुधार किए जाने को लेकर फैसला सुरक्षित कर लिया है।

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इससे पहले न्यायधीशों की नियुक्ति मामले में केंद्र सरकार ने नियुक्ति प्रक्रिया (मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर) की ड्राफ्टिंग करने से इंकार कर दिया था। अटार्नी जनरल ने सरकार का पक्ष रखते हुए इस मामले में दिशानिर्देश जारी करने की अपील की। न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम व्यवस्था में सुधार पर विचार कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से नियुक्ति प्रक्रिया का नया मसौदा तैयार करने को कहा।

पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने बुधवार को अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी का प्रस्ताव स्वीकार करते हुए सरकार को देश भर से आए सुझावों के आधार पर नियुक्ति प्रक्रिया (मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर) का नया मसौदा तैयार करने की अनुमति दे दी। फिलहाल न्यायाधीशों की नियुक्ति 1999 में बने मैमोरेंडम आफ प्रोसीजर (एमओपी) के आधार पर होती हैं।

न्यायाधीशों की नियुक्ति की व्यवस्था बदलने वाले एनजेएसी कानून को निरस्त करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा कॉलेजियम व्यवस्था में सुधार के लिए कमर कसी है। कोर्ट ने कॉलेजियम व्यवस्था में सुधार पर आम जनता सहित सभी पक्षों से सुझाव मंगाए थे। जिसके जवाब में कानून मंत्रालय को करीब साढ़े तीन हजार सुझाव प्राप्त हुए।

पढ़े: जजों की नियुक्ति प्रक्रिया बेहतर बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मांगी जनता से सलाह

बुधवार को कोर्ट के समक्ष करीब 15000 पेज के सुझाव आए। केन्द्र सरकार ने नियुक्ति व्यवस्था में सुधार पर सुझाव देते हुए कहा कि नियुक्ति के लिए आवेदन और नामांकन प्रक्रिया अपनाकर व्यवस्था में पारदर्शिता लाई जा सकती है। सरकार ने कहा कि निचली अदालतों के वकीलों को कभी हाई कोर्ट जज बनने का मौका नहीं मिलता क्योंकि वे हाईकोर्ट नहीं जाते हैं। सरकार ने कोर्ट को यह भी बताया कि सरकार हाईकोर्ट जजों की सेवानिवृत आयु 62 वर्ष से बढ़ा कर 65 वर्ष करने पर विचार कर रही है।

अटार्नी जनरल मुकुल ने पीठ से कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया का नया मसौदा तैयार होना चाहिए। पीठ ने प्रस्ताव स्वीकार करते हुए उन्हें प्राप्त सुझावों के आधार पर एमओपी का मसौदा तैयार करने की स्वीकृति दे दी। हालांकि वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने इसका जोरदार विरोध किया।

सुब्रमण्यम ने कहा कि सरकार को यह काम कैसे सौंपा जा सकता है जबकि कोर्ट ने एनजेएसी को सिर्फ एक्जीक्यूटिव की दखलंदाजी रोकने के लिए रद किया था। अटार्नी का प्रस्ताव स्वीकार करके तो सरकार को ही एमओपी बनाने की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने सुब्रमण्यम की आशंकाओं पर कहा कि अभी सरकार महज मसौदा तैयार करके देगी उस पर अंतिम फैसला कोर्ट ही लेगा। पीठ ने अटार्नी जनरल को मसौदे में रखे जाने वाले मुख्य प्रावधानों का खाका भी बताया। पीठ ने कहा कि उसमें कॉलेजियम की मदद के लिए एक स्वतंत्र सिकरेट्रियेट होना चाहिए। इससे नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने को ठोस आधार मिलेगा। नियुक्ति के लिए चुने गये उम्मीदवारों के खिलाफ आने वाली शिकायतों का आंकलन न्यायपालिका और सरकार बराबरी से करे। पीठ ने कहा कि न्यायाधीशों और वकीलों के खिलाफ पेशे से जुड़ी शिकायतों का आंकलन न्यायपालिका को और उम्मीदवार की ईमानदारी की जांच सरकार को करनी चाहिये।

इससे पहले वरिष्ठ अधिवक्ता फली नारिमन ने कोलीजियम में सुधार के सुझाव देते हुए कहा कि कोलीजियम की मदद के लिए स्वतंत्र सचिवालय बनाने और नियुक्ति के योग्य न्यायिक उम्मीदवारों का डेटाबेस बनाने से न्यायिक नियुक्तियों में मेधावियों का दायरा बढ़ेगा और कोलीजियम की हो रही आलोचना खत्म होगी। इस बीच रोहतगी ने हाईकोर्ट मे जजों के खाली पड़े पदों का भी मुद्दा उठाते हुए कहा कि इससे मुकदमों का निपटारा प्रभावित हो रहा है। इस बीच पीठ ने कहा कि 9 न्यायाधीशों द्वारा तय कोलीजियम व्यवस्था में 5 न्यायाधीशों द्वारा बदलाव के अधिकार पर उठाए गए सवालों पर वे बाद में विचार करेंगे।

पढ़े : कॉलेजियम पर फैसले तक जजों की नियुक्ति नहीं


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