याचिकाकर्ता पर अदालत का समय बर्बाद और भ्रामक याचिका दायर करने पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया 25 हजार का जुर्माना
सुप्रीम कोर्ट में दायर इस याचिका में दावा किया गया कि राजनीतिक दल चुनाव के दौरान प्रतीकों का दुरुपयोग कर रहे हैं और चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों को चुनाव चिन्ह आवंटित करने से रोक दिया जाए ।
नई दिल्ली, एएनआई। सुप्रीम कोर्ट ने अदालत का समय बर्बाद और भ्रामक याचिका दायर करने के लिए एक याचिकाकर्ता पर शख्त कार्रवाई की है। कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी।
सुप्रीम कोर्ट में दायर इस याचिका में दावा किया गया कि राजनीतिक दल चुनाव के दौरान प्रतीकों का दुरुपयोग कर रहे हैं और चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों को चुनाव चिन्ह आवंटित करने से रोक दिया जाए। साथ ही दावा किया गया कि रिटर्निंग ऑफिसर को चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को चुनाव चिन्ह आवंटित करना चाहिए। कोर्ट ने इसी याचिका पर शख्ती दिखाते हुए याचिकाकर्ता पर 25000 रुपये का जुर्माना लगा दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और अभय एस. ओका की बेंच ने इस पर हैरानी जताते हुए कहा कि अगर चुनाव चिन्ह नहीं मिलेगा, तो कोई पार्टी अपना प्रचार कैसे करेगी? जजों ने पूछा कि आखिर हाई कोर्ट के आदेश में क्या गलती थी, जो याचिकाकर्ता यहां तक आ गया। इस पर याचिकाकर्ता ने दलील दी कि कानून चिन्ह प्रत्याशी को मिलना चाहिए। लेकिन पार्टियों को स्थायी रूप से चिन्ह मिले हुए हैं।
प्रांरभिंक जांच मामले में सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
वहीं, दूसरे मामले में किसी भी शिकायत के संदर्भ में अदालत द्वारा प्रारंभिक जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत किसी शिकायत पर प्रारंभिक जांच करने के लिए बाध्य नहीं है। इसके बाद भी अगर अदालत ऐसा करने का फैसला करती है तो उसे उन तथ्यों का अंतिम सेट तैयार करना चाहिए जो उस मामले में ठीक हों।
ICAA मामले पर सुनवाई
वहीं, दूसरे मामले में सुप्रीम कोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने 22 सितंबर को इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (ICAA) द्वारा जारी एक नियम के खिलाफ चुनौती पर सुनवाई जारी रखी है। इसमें सदस्यों को 'टैक्स ऑडिट असाइनमेंट की स्पेसीफाइड नंबर' से अधिक स्वीकार करने से रोक दिया गया था
सुप्रीम कोर्ट द्वारा विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित समान रिट याचिकाओं को वापस लेने और इस विषय पर आधिकारिक रूप से कानून का उच्चारण करने का निर्णय लेने के लगभग दो साल बाद अब इस मामले पर फैसला सुनाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस जे.के. माहेश्वरी ने सुनवाई की है।
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