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जासूसी कांड में बरी हुए इसरो के पूर्व वैज्ञानिक,SC का आदेश: 50 लाख का मुआवजा दें

कोर्ट ने जासूसी कांड के आरोप में दोषमुक्त हुए नंबी नारायणन की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि उन्हें बेवजह गिरफ्तार किया गया।

By Manish NegiEdited By: Published: Fri, 14 Sep 2018 12:11 PM (IST)Updated: Fri, 14 Sep 2018 04:10 PM (IST)
जासूसी कांड में बरी हुए इसरो के पूर्व वैज्ञानिक,SC का आदेश: 50 लाख का मुआवजा दें
जासूसी कांड में बरी हुए इसरो के पूर्व वैज्ञानिक,SC का आदेश: 50 लाख का मुआवजा दें

नई दिल्ली, प्रेट्र। लंबी लड़ाई के बाद इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नांबी नारायणन 1994 के जासूसी कांड में बरी हो गए। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उन्हें इस मामले से बरी करते हुए उनकी गिरफ्तारी और प्रताड़ना को अनावश्यक व मानसिक क्रूरता करार दिया। शीर्ष कोर्ट ने मामले में केरल पुलिस के अधिकारियों की संलिप्तता की जांच के लिए पूर्व न्यायाधीश जस्टिस डीके जैन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की है। राज्य सरकार से आठ सप्ताह के भीतर पूर्व वैज्ञानिक को 50 लाख रुपये बतौर मुआवजा भुगतान करने को कहा है।

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मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने शुक्रवार को कहा कि नारायणन को इस मामले में मानसिक रूप से प्रताडि़त किया गया। 76 वर्षीय पूर्व वैज्ञानिक ने केरल हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि पूर्व डीजीपी सिबय मैथ्यू और दो रिटायर एसपी केके जोशुआ और एस. विजयन के खिलाफ कार्रवाई करने की जरूरत नहीं है। सीबीआइ ने इन पुलिस अधिकारियों को वैज्ञानिक की गैरकानूनी गिरफ्तारी के लिए जिम्मेवार ठहराया था।

मामले में निचली अदालत से आरोप मुक्त होने के बाद 1998 में शीर्ष कोर्ट ने नारायणन एवं अन्य को एक लाख रुपये का मुआवजा मंजूर किया था। राज्य सरकार को इस राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया था। बाद में पूर्व वैज्ञानिक ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) से संपर्क किया था। उन्होंने मानसिक यंत्रणा और प्रताड़ना के लिए राज्य सरकार से मुआवजा दिलाने की मांग की थी। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद आयोग ने मार्च 2001 में राज्य सरकार से 10 लाख रुपये मुआवजा देने को कहा था।

क्या है मामला
1994 में सुर्खियों में रहा यह मामला भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के कुछ गोपनीय दस्तावेज दूसरे देश को सौंपने से संबंधित है। इस मामले में दो वैज्ञानिक और मालदीव की दो महिलाओं सहित चार अन्य भी शामिल बताए गए थे। शुरू में राज्य पुलिस मामले की जांच कर रही थी। बाद में इसे सीबीआइ को सौंपा गया जिसने पाया कि कोई जासूसी हुई ही नहीं।

करुणाकरण को देना पड़ा था इस्तीफा
उस समय इस कांड को लेकर राजनीतिक गलियारे में भी घमासान मचा था। कांग्रेस के एक गुट ने तत्कालीन मुख्यमंत्री के. करुणाकरण पर निशाना साधा था। इसी विवाद के कारण करुणाकरण को इस्तीफा देना पड़ा था।

जिम्मेवार अधिकारियों से वसूला जाए मुआवजा : नारायणन
पूर्व वैज्ञानिक नारायणन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि जो अधिकारी उनकी गिरफ्तारी के जिम्मेवार थे उन्हें ही मुआवजे का भुगतान करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए। इसके साथ ही उन्हें जुर्माना किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि शीर्ष कोर्ट द्वारा गठित जांच समिति के लिए समयसीमा निर्धारित की जानी चाहिए। इस मामले में विशेष जांच टीम की अगुआई करने वाले पूर्व डीजीपी मैथ्यू ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कोई टिप्पणी करने से मना कर दिया।

मामले में शामिल लोगों का नाम उजागर करूंगी : पद्मा
केरल के पूर्व मुख्यमंत्री के. करुणाकरण की बेटी ने शीर्ष कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि वह जांच समिति के सामने हाजिर होने के लिए तैयार हैं। यदि समिति ने उन्हें समन किया तो वह पेश होंगी और इस मामले के पीछे जो लोग थे उनका नाम उजागर करेंगी।

घटनाक्रम

अक्टूबर 1994 : मालदीव की महिला मरियम राशिदा को इसरो के राकेट इंजन की ड्राइंग की खुफिया जानकारी पाकिस्तान को बेचने के आरोप में तिरुअनंतपुरम में गिरफ्तार किया गया।

नवंबर 1994 : इसरो के वैज्ञानिक और क्रायोजेनिक प्रोजेक्ट के निदेशक नारायणन, दो वैज्ञानिकों डी. शशिकुमारन और उपनिदेशक के. चंद्रशेखर गिरफ्तार हुए। रूसी अंतरिक्ष एजेंसी का एक भारतीय प्रतिनिधि एसके शर्मा, एक लेबर ठेकेदार और राशिदा की मालदीव की दोस्त फौजिया हसन को भी गिरफ्तार किया गया था।

जनवरी 1995 : इसरो के वैज्ञानिक और बिजनसमैन को जमानत पर रिहा किए गए। मालदीव के नागरिकों की हिरासत बरकरार रही।

अप्रैल 1996 : सीबीआइ ने केरल की कोर्ट में रिपोर्ट पेश की जिसमें बताया यह मामला फर्जी है और आरोपों के पक्ष में कोई सबूत नहीं हैं।

मई 1996 : कोर्ट ने सीबीआइ की रिपोर्ट मंजूर की और इसरो जासूसी मामले गिरफ्तार आरोपितों को रिहा कर दिया। केरल सरकार ने फिर से जांच कराने का फैसला लिया, हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले को बरकरार रखा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया।


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