Supreme Court: राजनीतिक पार्टियों की मुफ्त वाली योजनाओं पर लगेगी लगाम! सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को समाधान खोजने का दिया निर्देश
देश में राजनीति पार्टियों की ओर से फ्री वाली योजनाओं की घोषणा करने पर अब लगाम लगेगी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों को मुफ्त में उपहार देने से रोकने के लिए समाधान खोजने का निर्देश दिया है। इस पर 3 अगस्त को सुनवाई होगी।
नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों को मुफ्त में उपहार देने से रोकने के लिए समाधान खोजने का निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने मामले को अगली सुनवाई के लिए 3 अगस्त की तारीख निर्धारित की है।
Supreme Court directs Centre to find a solution to stop political parties from giving freebies during elections. Court posts the matter for further hearing on August 3.
— ANI (@ANI) July 26, 2022
वित्त आयोग से बातचीत करे सरकार
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह राजनीतिक दलों के मुद्दे पर वित्त आयोग के साथ बातचीत करे और मुफ्त में खर्च किए गए पैसे को ध्यान में रखकर जांच करे कि क्या इसे विनियमित करने की संभावना है।
मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमणा की अध्यक्षता वाली और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ नेकेंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सालिसिटर जनरल के.एम. नटराज से कहा कि 'कृपया वित्त आयोग से पता करें। इसे अगले सप्ताह किसी समय सूचीबद्ध करेंगे। बहस शुरू करने का अधिकार क्या है।'
याचिका पर कोर्ट ने कपिल सिब्बल से पूछा उनके विचार
सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति रमना ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जो किसी अन्य मामले के लिए अदालत कक्ष में मौजूद थे, से राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों के दौरान घोषित मुफ्त उपहारों पर सवाल उठाने वाली एक जनहित याचिका पर उनके विचार पूछे।
मुफ्तखोरी को नियंत्रित करना मुश्किल है
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'श्री सिब्बल यहां एक वरिष्ठ सांसद के रूप में हैं। आपका क्या विचार है?' सिब्बल ने जवाब दिया कि मुफ्तखोरी एक गंभीर मामला है, लेकिन राजनीतिक रूप से इसे नियंत्रित करना मुश्किल है। वित्त आयोग को विभिन्न राज्यों को धन आवंटन करते समय उनका कर्ज और मुफ्त योजनाओं को ध्यान में रखना चाहिए।
'केंद्र से निर्देश जारी करने की उम्मीद नहीं की जा सकती'
सिब्बल ने कहा, 'केंद्र से निर्देश जारी करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है।' उन्होंने कहा कि वित्त आयोग इस मुद्दे की जांच करने के लिए उपयुक्त प्राधिकरण है।
केंद्र से पीठ ने पूछा सवाल
चुनाव आयोग के वकील ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार इस मुद्दे से निपटने के लिए एक कानून ला सकती है, हालांकि नटराज ने सुझाव दिया कि यह चुनाव आयोग के क्षेत्र में आता है। इस पर पीठ ने पूछा कि 'केंद्र इस पर एक स्टैंड लेने से क्यों झिझक रहा है?'
अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई कर रही थी शीर्ष अदालत
शीर्ष अदालत अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें चुनाव के दौरान मुफ्त में मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा की गई घोषणाओं के खिलाफ याचिका दायर की गई थी।
अगले सप्ताह होगी सुनवाई
सुनवाई के दौरान, उपाध्याय ने दलील दी, 'अगर मैं यूपी का नागरिक हूं, तो मुझे यह जानने का अधिकार है कि हमारे ऊपर कितना कर्ज है'। उन्होंने तर्क दिया कि चुनाव आयोग को राज्य और राष्ट्रीय दलों को ऐसे वादे करने से रोकना चाहिए। शीर्ष अदालत ने दलीलें सुनने के बाद मामले की अगली सुनवाई अगले सप्ताह निर्धारित की।
इस साल अप्रैल में, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि चुनाव से पहले या बाद में मुफ्त योजनाओं की पेशकश करना राजनीतिक दल का एक नीतिगत निर्णय है, और यह राज्य की नीतियों और पार्टियों द्वारा लिए गए निर्णयों को विनियमित नहीं कर सकता है।
संविधान के अनुच्छेदों का होता है उल्लंघन
उपाध्याय ने अपनी याचिका में शीर्ष अदालत से यह घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई है कि चुनाव से पहले जनता के धन से अतार्किक मुफ्त का वादा, जो सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए नहीं है, संविधान के अनुच्छेद 14, 162, 266 (3) और 282 का उल्लंघन करता है। याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों पर एक शर्त लगाई जानी चाहिए कि वे सार्वजनिक कोष से तर्कहीन मुफ्त का वादा या वितरण नहीं करेंगे।
चुनाव आयोग ने जवाब दिया कि 'इसका परिणाम ऐसी स्थिति में हो सकता है जहां राजनीतिक दल अपने चुनावी प्रदर्शन को दिखाने से पहले ही अपनी मान्यता खो देंगे'। शीर्ष अदालत ने 25 जनवरी को याचिका पर नोटिस जारी किया था।