न्यायधीशों की सुरक्षा जांच से छूट मामला, पद-प्रतिष्ठा से ऊपर है सुरक्षा : सुप्रीमकोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को हवाई अड्डों पर सुरक्षा जांच से छूट देने के आदेश को निरस्त कर दिया है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को हवाई अड्डों पर सुरक्षा जांच से छूट देने का राजस्थान हाईकोर्ट का आदेश रद करते हुए कहा है कि सुरक्षा पद और प्रतिष्ठा का मुद्दा नहीं हो सकती। हाईकोर्ट ने मामले में स्वत: संज्ञान लेकर कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार में दखल दिया है।
सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि कानून के शासन पर आधारित लोकतंत्र में सरकार विधायिका के प्रति जवाबदेह है और उसके जरिये जनता के प्रति। अन्याय से निबटने के लिए हाईकोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 226 में मिली शक्तियां बहुत विस्तृत हैं। जब भी मानवाधिकार का उल्लंघन हो इनका इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन न्याय की ये धारणा कानून के तहत न्याय से है। न्याय फैसला करने वाले किसी व्यक्ति की समझ पर निर्भर नहीं करता। न्यायाधीशों से उम्मीद की जाती है कि वे संवैधानिक सिद्धांतों पर आधारित उद्देश्य परक और कानून में बताए गए मानकों को लागू करेंगे।
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ये बातें मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को रद करते हुए कही हैं। राजस्थान हाईकोर्ट ने श्रीनगर एयरपोर्ट पर सुरक्षा चूक के एक मामले में स्वयं संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की और 13 मई 2005 को सरकार को आदेश दिया कि वह हवाई अड्डों में सुरक्षा जांच से छूट देने वाली सूची में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश व हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को भी शामिल करे। इतना ही नहीं सरकार को नेशनल सिक्योरिटी पालिसी पर भी विचार करने का आदेश दिया था। भारत सरकार ने इस आदेश को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी थी और सुप्रीमकोर्ट ने शुरुआत में ही 20 जनवरी 2006 को हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी। हालांकि इस बीच सरकार ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को सुरक्षा जांच से छूट की सूची में शामिल कर लिया है।
बुधवार को सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश रद करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने ऐसा आदेश पारित कर अपनी न्यायिक पुर्नरीक्षण की शक्तियों का अतिक्रमण किया है। सुरक्षा का मुद्दा उन सरकारी एजेंसियों को तय करने दिया जाना चाहिये, जिनका ये दायित्व है। खुफिया सूचना एकत्र कर आंतरिक और बाहरी खतरे का आंकलन करते हुए सुरक्षा नीति तय करने में न्यायपालिका की विशेषज्ञता नहीं है। सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि एयरपोर्ट पर सुरक्षा खामी निसंदेह चिंता का विषय है और इसकी सावधानी से जांच होनी चाहिये। लेकिन ये काम अथारिटीज का है। कोर्ट का काम नही है कि वह न्यायिक पुर्नरीक्षण की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए यह सुझाव दे कि कौन सी नीति ठीक रहेगी। सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा नीति बनाने का आदेश न्यायिक समीक्षा के अधिकार का अतिक्रमण है। न्यायिक पुर्नरीक्षण की शक्ति का इस्तेमाल सिर्फ सरकार की प्रशासनिक कार्रवाहियों के कानूनी पहलू देखना है। कोर्ट सिर्फ तभी उसमें दखल दे सकता है जबकि कार्यवाही कानून या संविधान का उल्लंधन करती हो।
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सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि अगर कोर्ट इन प्रतिबंधों का पालन नहीं करेगा तो न्यायपालिका की संस्था के प्रति आलोचना को निमंत्रण देगा। फैसले न्यायिक प्रक्रिया में समाज और सरकार के विश्वास और आस्था के कारण लागू किये जाते हैं। संस्थागत शुचिता उसकी प्रतिष्ठा पर निर्भर होती है और ये बहुत सालों में स्थापित होती है।
इस मामले में सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए कहा था कि सुरक्षा जांच से सिर्फ उन्हीं लोगों को छूट दी जा सकी है जो चौबीसों घंटे सरकार के सुरक्षा घेरे में रहते हैं और जिनके सामान के साथ किसी भी तरह की खतरनाक चीज के हवाई जहाज में जाने की संभावना नहीं होती। विदेशी डिगनीटरीज को द्विपक्षीय व्यवस्था के तहत छूट दी जाती है। सरकार ने हाईकोर्ट के जजों को सुरक्षा जांच से छूट देने से इन्कार कर दिया था ।
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